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उस आदमी ने कहा,”आप उसे वहीं खोजें. बच्चा बाहर तो नहीं गया होगा.”

वह निशा के साथ बड़े पार्क में गया. निशा ने देखा कि बबलू बेंच पर बैठा रो रहा है. उधर से एक सुरक्षाकर्मी भी आता दिखा. निशा बबलू को देख कर जोरजोर से रोने लगी थी. उस ने उसे चूमा और सीने से लगा लिया था,”कहां चला गया था?”

बबलू ने कहा, “मैं तो यहीं था,” वह भी हिचकियां लेले कर रो रहा था.

“मैं तो हाइड ऐंड सिक खेल रह था,” बबलू पता नहीं क्यों अकेले में बातें किया करता है. निशा अकसर यह बात पीर मोहम्मद से पूछती थी. बबलू ने उसी पार्क में एक कुआं दिखाया जो लगभग 4 फुट ऊंचे ईंटों से घेरा गया था और लोहे के ग्रिल से ढंका हुआ था ताकि कोई बच्चा उस में न गिर जाए और न कोई उस पर चढ़ पाए. बबलू उस कुएं के पीछे छिप गया था.

निशा ने कहा,”बेटा, ऐसा नहीं करते. अकेले बच्चों को राक्षस ले जाता है. जब मम्मी आवाज लगा रही थी तो क्या आप ने सुना नहीं?”

“नहीं मम्मी, मैं तो हाइड ऐंड सिक खेल रहा था.”

इस के बाद निशा बबलू को ले कर पार्क से बाहर आई. साथ में वह आदमी भी आया था. उस की उम्र लगभग 40 की होगी. निशा ने उस से कहा,”आप का एहसान है, मुझे तो उस समय कुछ समझ ही नहीं आ रहा था आखिर मैं करूं तो क्या? एक तो नया शहर है. पता नहीं क्या उलटासीधा दिमाग में घूमने लगा था.”

व्यक्ति ने कहा, “आप नए हैं यहां?”

“जी…” निशा ने उसे बताया कि वह सैक्टर-बी में नई बनी सोसायटी में रहती है.

निशा ने उसे अपना फोन नंबर भी दिया. वह कुछ आगे बढ़ गई तभी उसे याद आया कि अरे, मैं ने तो उन का नाम भी नहीं पूछा.

उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो वह आदमी जा रहा था. उस ने आवाज लगाई और जब उस ने देखा तो निशा ने उस को हाथ हिलाया. वह ज्यादा दूर नहीं गया था. वह उस के पास आया तो निशा बोली,”सौरी, मैं ने तो आप का नाम ही नहीं पूछा, क्या नाम है आप का?”

“सरफराज खान.”

पीर मोहम्मद घर पहुंच चुका था. वह निशा पर कोई पाबंदी नहीं चाहता था. दूसरी बात यह भी थी कि वह घर से ज्यादा निकलती भी नहीं थी. दिल्ली शहर में जब वे रहते थे तो वहां उन के कुछ रिश्तेदार भी रहते थे. अगर निशा उन के घर जाती तो जाने से पहले वह पीर मोहम्मद को बता देती थी. औफिस से आने के बाद पीर मोहम्मद अगर सिंक में किचन के जूठे बरतन देखता तो उसे साफ कर देता था. चाय भी बना कर पी लेता था. आज जब निशा नहीं आई थी तो वह समझ गया था कि कुछ काम होगा उसे, क्योंकि निशा ने उन्हें बता दिया था कि वह बबलू को पार्क में ले जा रही है. निशा एक जिम्मेदार औरत है.

दरअसल, वह अपनी उम्र से ज्यादा समझदार हो गई थी. शादी कर के आई तो उस के कम खर्चे को ले कर पीर मोहम्मद अकसर दुखी भी हो जाता था. जब कभी दोनों बाजार जाते तो वह अपने लिए कुछ न खरीदती. पीर मोहम्मद उसे बारबार कहता कि कुछ तो खरीद लो, लेकिन वह नहीं खरीदती. पीर मोहम्मद को अंदर से रोने जैसा भाव हो जाता था.

निशा ने उसे देख कर कहा,”कब आए?”

“थोड़ी देर हुआ है. क्यों बबलू, आज तो मजा आया होगा?”

निशा ने कहा, “आप ने कुछ लिया?”

“हां, चाय बनाई थी, लेकिन तुम तो जानती हो कि तुम्हारे हाथ की चाय पीए बगैर लगता ही नहीं है कि चाय पी है.”

निशा और पीर मोहम्मद का विवाह अरैंज्ड से लव मैरिज बन गया था. जब दोनों की शादी की बात चली तो दोनों ने एकदूसरे से मिले बगैर ही शादी कर ली. पीर मोहम्मद और निशा का एकदूसरे से फोन पर बातचीत से ही बहुत लगाव हो गया था. इतना लगाव कि उन्होंने एकदूसरे को देखना भी मुनासिब नहीं समझा था. पीर मोहम्मद के साथ रहतेरहते निशा के सालों गुजर गए थे. इन वर्षों में निशा ने पीर मोहम्मद से कुछ डिमांड न की, क्योंकि वह पीर मोहम्मद की माली हालात को अच्छी तरह समझती थी. दूसरी तरफ वह बहुत संकोची थी. उसे लगता कि कोई उस बात को बोल न दे. कोई ताना न मार दे. वह किसी बात को ले कर गंभीर हो जाती है. वह किसी भी बात को बहुत जल्दी दिल पर लगा लेती. बहुत संवेदनशील रहती थी वह.
साल 2 साल में कभी कपड़े खरीद लिए नहीं तो कोई डिमांड नहीं. कहीं घूमना भी नहीं जाना होता.

निशा को याद है जब उस की शादी हुई थी, तो पीर मोहम्मद ने कहा था कि वह उसे आगरा ले कर जाएगा, लेकिन उस के पास इतने पैसे ही नहीं हुए कि ले कर जाए. 3 महीने बाद वह अपने मायके चली गई थी. जब वापस आई तो 1 साल के बाद पीर मोहम्मद उसे घुमाने ले गया था. उस समय निशा 2 महीने से पेट से थी. पीर मोहम्मद दहेज तो नहीं लेना चाहता था, लेकिन सामाजिक रूढ़ियों में वह दवाब में आ गया था. उस के अंदर भी कुछ दहेज को ले कर एक लालच समा गया था था फिर भी अपनी तरफ से कुछ भी डिमांड नहीं कर सका. लेकिन शादी के बाद उस ने निशा के मातापिता को सरेआम बेइज्जत किया, पारिवारिक व सामाजिक रूढ़ियों के दबाव में क्योंकि कोई कितना भी आदर्शवादी बने, लेकिन इस व्यवस्था से निकलना मुश्किल हो जाता है. ऐसा नहीं है कि लोग नहीं निकले हैं. पीर मोहम्मद परिवर्तनवादी प्रक्रिया में जरूर था. सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस ने कुछ मांगा भी नहीं था, लेकिन घर वालों की तानाकशी के प्रभाव में आ ही गया था. लेकिन वह एक अच्छा इंसान है जो केयर तो करता है लेकिन उस में व्यक्ति को पहचानने की समझ नहीं. वह निशा से कहता कि किसी चीज की आवश्यकता है तो उसे कह दे. लेकिन निशा कहती कि जैसे मैं आप की दिल की बात समझ जाती हूं तो आप क्यों नहीं समझ पाते? यह दोनों का बहुत बड़ा विरोधाभाष लगता है.

शादी के बाद बाद वे 2-3 बार ही लोकल घूमने गए थे. इतने सालों में वे पीर मोहम्मद के साथ 2 बार ही सिनेमा देखने गई थी. लेकिन निशा पीर मोहम्मद को बहुत प्यार करती थी जबकि पीर मोहम्मद उस से उतना प्यार नहीं करता था. लेकिन वह उस के बगैर रह भी नहीं सकता था. जब निशा उस से नाराज हो जाती या बात करना बंद कर देती तब पीर मोहम्मद बैचन हो जाता.

प्यार बिलकुल अंधा होता है, जो व्यक्ति उस के अंदर उस में समाहित हो जाता है उस से निकलना एक सच्चे और संवेदनशील व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल होता है. शादी से पहले एक बार फोन पर पीर मोहम्मद ने निशा से कहा था, “इस बार जब तुम्हारे पापामम्मी आए तो अपना फोटो जरूर भेज देना.”

लेकिन जब उस के मम्मीपापा आए, तो फोटो नहीं ले कर आए थे. इस पर पीर मोहम्मद ने निशा से अपनी नाराजगी जाहिर की थी. सच्चा प्यार वही कर सकता है, जो संवेदनशील है. देश, अपने और समाज के प्रति इस के विपरीत कोई नहीं. प्यार किसी की जान नहीं लेता. प्यार न ही किसी के शरीर का भूखा होता है. प्यार तो समर्पण है एकदूसरे के लिए. प्यार किसी के प्रति इर्ष्या भी नहीं है. अगर कोई किसी को प्यार करता तो वह उस को दुख नहीं दे सकता. न उस को हानि पहुंचा सकता है. प्यार किसी का रूपरंग भी नहीं देखता है, लेकिन इस को जीवन में ढाल लेना ही जीवन को समझ लेना होता है. इसी प्रकार समाज और देश है. इस के प्रति सच्चा समर्पण किसी व्यक्ति को किसी भी स्तर से दुखी न करना है.

लेकिन जब शादी में पीर मोहम्मद ने निशा को पहली बार देखा तो उसे लगा कि कैसी लड़की से शादी हो रही है, इस के तो सिर के बाल झङ गए हैं. निशा अपने बालों को सामने से ढंक कर रखती थी, जोकि उस पर बहुत भद्दा लगता था. शुरू में निशा में पीर मोहम्मद को कुछ विशेष आकर्षण नहीं दिखा था. लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि शादी हो चुकी थी. अब वह उस के बंधन में बंध चुका था, अगर वह उस को पहले देख लेता तो शायद शादी न करता. लेकिन वह उस से बेहद प्रेम करने लगा था, निशा उस से ज्यादा प्रेम करती थी.

पीर मोहम्मद को स्त्रियों के घने बाल बहुत अच्छे लगते थे. अपनी शादी के बाद वह सोचता है चि क्या उपाय करें, जिस से निशा के बाल घने हो जाएं. तब वस बाजार से अपनी हैसियत के अनुसार बाल घने और गंजापन दूर करने के लिए तरहतरह के तेल खरीद कर लाने लगा. उस के सिर पर मलिश भी करता. वह मालिश करता तो निशा को बुरा लगता था. लेकिन पीर मोहम्मद ने उसे बता दिया था कि उसे घने बाल अच्छे लगते हैं और छोटे बौब कट जैसे.

एक बात और थी कि पीर मोहम्मद भी कोई बहुत विशेष न था. लेकिन समाज हमेशा सुंदर बहू की कामना करता है चाहे लड़का कैसा भी हो. लेकिन निशा दब्बू लड़की नहीं थी. यह चाहत तो पीर मोहम्मद में थी. पर निशा सुंदर थी. दूसरी बात यह भी थी कि निशा उसे बहुत खराखरा सुना भी देती थी, उस के फुजूलखर्ची जोकि वह नहीं करता था लेकिन अनावश्यक कोई सामान मंगा ले आना. अपने खर्चे को ताक पर रख कर दूसरों को दे देना. पीर मोहम्मद दिखावटी भी था.

एक दिन निशा ने उस से कहा,”तुम्हारे साथ इतने वर्ष हो गए कभी कुछ डिमांड न की. क्या तुम बच्चे की ख्वाहिश भी पूरी नहीं कर सकते हो?”

लेकिन अब दोनों की स्थितियां बदल चुकी थीं. अब पीर मोहम्मद के पास पहले से बेहतर नौकरी थी. पीर अब 40 का हो गया था और निशा 34 की, लेकिन सचाई तो यह भी थी कि निशा ने उस के साथ बहुत समझौता किया था. पीर मोहम्मद एक अच्छा इंसान तो था लेकिन उस में शुरूशुरू में मेल ईगो भी था, कुछ घमंडी भी, जबकि उस के पास कुछ न था. पर उस ने अपने मेल ईगो धीरेधीरे समाप्त कर लिया.

निशा जब पार्क से आई, तो बबलू को ले कर बाथरूम में चली गई थी, क्योंकि भारत में जब से कोरोना फैला, लोगों में एक दूरी सी बन गई. अब सोशल डिस्टैंस ज्यादा ही हो गया है. हाथ धोना, मुंह धोना, कपड़े बदलना… खासकर बाहर से आने के बाद तो यह एक नियमित दिनचर्या है. निशा सोचती कि क्या यह सामाजिक दूरी पहले कम थी, जो कोरोना की आड़ में और ज्यादा हुई है? मुसलमानों से मिलनेजुलने में खासतौर पर शहरी वर्ग में एक संशय पहले ही था जो अब ज्यादा बढ़ गया है. सीएए और एनसीआर के विरोध के बाद खासतौर पर मुसलिम मोहल्लों को मुल्क विरोधी गतिविधियों के तौर पर जानना कुछ लोगों की मनोस्थिति थी जबकि कोरोना को रोकने का उपाय सरकार ढूंढ़ नहीं पा रही थी.

जल्दीजल्दी बबलू के हाथमुंह धो कर बाथरूम से निशा ने उसे बाहर भेज दिया था और पीर मोहम्मद ने उसे दूसरे कपड़े पहना दिए थे. अब बबलू उस के साथ खेलने लगा था.

कुछ देर के बाद निशा पीर मोहम्मद के लिए चाय ले कर आई. वह बबलू के साथ खेल रहा था. बबलू को दूध और कुछ बिस्कुट दिए थे. दोनों चाय पीने लगे, तब निशा ने पीर मोहम्मद को पार्क वाली घटना बताई कि बबलू कैसे गुम हो गया था, गुम क्या उस की शरारत थी.

एक आदमी ने मदद की, सहयोग किया खोजने में. इस पर पीर मोहम्मद गुस्सा हुआ, लेकिन जल्दी ही शांत हो गया क्योंकि वह जानता था कि उस का गुस्सा निशा के सामने नहीं चल सकता. चलेगा तो उसे ही सौरी बोलना पड़ेगा नहीं तो निशा गुमशुम हो जाएगी. घर का सब काम करेगी लेकिन उस से पहले जैसा व्यवहार नहीं करेगी. निशा ने अपने को पहले से बहुत बदल लिया है फिर पीर मोहम्मद उस को समझ ही चुका था.

उस ने कहा “देखो यार, नया शहर है, हम किसी को ज्यादा जानते नहीं हैं. तुम ने मुझे फोन क्यों नहीं किया?”

निशा ने कहा, “मैं काफी डर गई थी और कुछ समझ ही नहीं आ रहा था.”

“चलो, कोई बात नहीं, अब खुश हो जाओ. क्या नाम था उस आदमी का?”

“सरफराज खान….”

“छुट्टी वाले दिन उस को खाने पर बुलाना. मेरे पास तो उस का फोन नंबर भी नहीं है,” पीर मोहम्मद ने कहा.

2 दिन के बाद सरफराज ने निशा को फोन किया और मिलने की इच्छा जाहिर की. निशा संकोच करते हुए उसे टाल न सकी, क्योंकि उस दिन का एहसान था. निशा ने उसे अगले दिन मिलने की बात कही. कहा कि वह सुबह बच्चे को स्कूल वैन तक छोड़ने आती है, उस के बाद मिलेगी. क्योंकि वह भी सैक्टर-बी में ही रहता था. निशा बबलू को छोड़ने के बाद उस से मिली. सरफराज बहुत खुश हुआ और वह उस के लिए चाय बना कर भी लाया. निशा ने देखा कि उस के फ्लैट में बहुत सी पैंटिंग थी. निशा ने पूछा,”क्या आप आर्टिस्ट हैं?”

उस ने कहा,”जी, पहले मैं विदेश में रहता था अब फिर कुछ वर्षों से यहां हूं. वहां कुछ व्यापर भी करता था. उस ने निशा की भी पैंटिंग दिखाई जो उस ने बनाई थी, जब उस के आंखों में आंसू आ गए थे जो बहुत आकर्षित कर रह था. निशा की बड़ीबड़ी आंखें जो बिलकुल दूध की भांति सफेद दिखती थी, अपनी सचाई को बखान कर रही थी. निशा ने जब वे पैंटिंग्स देखी तो बहुत ज्यादा खुश हुई.

निशा ने उस से पूछा,’यह कब की पैंटिंग हैं?”

उस ने कहा,”जब आप बबलू को खोज रही थीं और आप के आंखों में आंसू थे तब मैं ने फोटो लिया था.”

निशा ने कहा,”आप ने कब फोटो ले ली.”

उस ने कहा, “उसी शाम को. हम तो कलाकार हैं, चेहरा देख कर याद कर लेते हैं फिर भी फोटो ले लेते हैं ताकि कुछ गलत न हो. मैं एक फोटोग्राफर भी हूं.”

निशा ने कल्पना भी न की थी कि कोई व्यक्ति उस की इतनी अच्छी पैंटिंग बनाएगा. अब चाय खत्म हो चुकी थी.

सरफराज ने पूछा,”चाय कैसी लगी?”

निशा ने कहा, “पैंटिंग के मुकाबले तो बिलकुल रद्दी थी. सही बता रही हूं. मैं झूठी तारीफ नहीं करती.”

“फिर तो आप की हाथ की चाय पीनी पड़ेगी.”

“क्यों नहीं?”

“कभी हमारे घर आएं. पीर मोहम्मद भी आप से मिलना चाहते हैं?”

“लेकिन मुझे तो अभी पीनी है. प्लीज…प्लीज…”

निशा ने समय देखा, अभी सुबह के 9 बजे थे. बबलू की स्कूल वैन तो दोपहर 1 बजे आती है. सरफराज के आग्रह में बहुत आकर्षण था. उस में एक अनुरोध था, निशा मना नहीं कर पाई.

निशा को लगा कि यह ऐसे कह रहा है जैसे कल यह यहां नहीं होगा. निशा ने उस से पूछा, “आप अकेले रहते हैं?”

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