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कपिल ने अपने पास का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘पीछे नहीं, यहां बैठो. लोग मुझे कहीं तुम्हारा ड्राइवर न समझ बैठें.’’ लड़की फिर हंस पड़ी और अगली सीट पर जल्दी से बैठ गई.

हरीबत्ती हो चुकी थी और पीछे वाले बेचैनी से हौर्न पर हौर्न बजा रहे थे. कपिल ने जल्दी से कार आगे बढ़ा दी. कपिल के दिमाग में बहुत सारी बातें एकसाथ चल रही थीं. कुछ दिनों पहले ही समाचारपत्रों में यौन अपराध संबंधी कई समाचार आए थे. साउथ दिल्ली और रोहिणी में कई लड़कियां धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई थीं. इन में से अधिकतर लड़कियां शिक्षित व अच्छे घरों की थीं. यही नहीं, एक तो 2-3 वर्ष पहले मिस इंडिया भी रह चुकी थी. कालेज की लड़कियों को फैशन या मादक द्रव्यों की आदत के कारण ऊपरी आमदनी के अतिरिक्त कमाई का आसान रास्ता और क्या हो सकता है?

जब से फिल्म ‘आस्था’ परदे पर आई है, तब से पता चला कि शादीशुदा औरतें भी मौका पा कर, अपना जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए, देहव्यापार करने लगी हैं.

कपिल ने सोचा, तो क्या यह लड़की भी उन में से एक है? क्या यह उपलब्ध है? क्यों न जानने की कोशिश की जाए? शारीरिक रिश्तों में विविधता का अपना अलग ही आकर्षण होता है. टोह लेने के लिए कपिल ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मारिया,’’ लड़की ने कहा. ‘‘अच्छा नाम है,’’ कपिल मुसकराया, ‘‘पढ़ती हो?’’

‘‘पढ़ती थी, पर अब कालेज छोड़ दिया,’’ मारिया ने नीचे देखते हुए कहा. ‘‘क्यों?’’ कपिल ने पूछा

‘‘पिता टीबी के मरीज हैं, नौकरी नहीं करते,’’ मारिया ने कहा, ‘‘और मां को दमा है. छोटा भाई स्कूल में पढ़ता है. सारे घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है.’’ ‘‘बड़े दुख की बात है,’’ कपिल ने देखा, मारिया बहुत उदास दिखाई दे रही है.

अचानक मारिया मुसकरा दी, ‘‘सर, दुनिया है, सब चलता है… दुखी होने से क्या होगा?’’ ‘‘सो तो ठीक है,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘पर फिर करती क्या हो?’’

‘‘बस, ऐसे ही,’’ मारिया ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, ‘‘गुजारा कर लेती हूं…कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है.’’ ‘‘कैसा काम?’’ कपिल ने कुरेदा.

‘‘सर,’’ मारिया ने एक क्षण रुक कर कपिल को देखा और धीरे से कहा, ‘‘क्या आप 500 रुपए उधार देंगे?’’ कपिल का अनुमान सही था कि वह लड़की उपलब्ध है. उस के जीवन में यह पहला अनुभव है. शरीर में फुरफुरी दौड़ गई. जो केवल पढ़ा और सुना था, वास्तविक बन कर सामने आ गया था.

‘‘यह क्या तुम्हारी फीस है?’’ कपिल ने पूछा. ‘‘नहीं, हजार, 2 हजार रुपए भी मिल जाते हैं, पर आज बहुत जरूरत है. 500 रुपए से काम चला लूंगी…राशन नहीं लूंगी तो खाना नहीं बनेगा.’’

कपिल ने मारिया के शरीर पर नजर दौड़ाई. जो कुछ देखा, बहुत अच्छा लगा, फिर पूछा, ‘‘कोई ठिकाना है क्या?’’ ‘‘है तो,’’ मारिया ने कहा, ‘‘साउथ दिल्ली में एक गैस्टहाउस है, पर किराए के अतिरिक्त वहां के प्रबंधकों को भी कुछ अलग से देना पड़ता है.’’

कपिल ने मन ही मन अनुमान लगाया कि ऐसे सौदे में क्रैडिट कार्ड से काम नहीं चलेगा. इस समय जेब में लगभग 1,200 रुपए हैं, क्या इतना काफी होगा? इस से पहले कि कपिल आगे पूछता, उस के मोबाइल फोन की ‘पिप…पिप… पिप…’ ने चौंका दिया.

‘‘हैलो,’’ उस ने कहा. ‘‘हाय पप्पा,’’ बेटी मृदुला के स्वर में उत्साह था.

‘‘हाय, मेरी प्यारी गुडि़या,’’ कपिल ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘कैसे याद आ गई? अभीअभी तो घर से निकला हूं. रुपए चाहिए तो मां से ले लो.’’ ‘‘अरे, नहीं पप्पा,’’ मृदुला ने कहा, ‘‘आप को याद दिला रही थी, मम्मा का जन्मदिन आ रहा है, एक सुंदर सा कार्ड और एक बहुत बढि़या उपहार खरीदने चलना है. आज चलेंगे न?’’

कपिल ने मारिया की ओर देखा. वह चुपचाप बैठी थी. बेटी मृदुला भी इतनी ही बड़ी होगी. अचानक एक अपराधबोध की भावना ने जन्म लिया, क्या जो वह करने जा रहा है, उचित है?

‘‘पापा,’’ मृदुला ने बेसब्री से पूछा, ‘‘सुन रहे हैं?’’ ‘‘सुन रहा हूं, गुडि़या रानी,’’ कपिल ने उत्तर दिया, ‘‘पर आज नहीं, कल चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ कपिल ने फोन बंद कर दिया. कुछ देर तक कार चलती रही. दोनों चुप थे.

‘‘सर,’’ सहसा मारिया ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘आप ने क्या सोचा?’’ ‘‘तुम्हारे गैस्टहाउस वाले मैनेजर को कितना रुपया देना होगा?’’ कपिल ने पूछा. मारिया से संबंध बनाने की

इच्छा ने फिर जोर मारा. सोचा, क्या उचित है और क्या अनुचित, बाद में देखा जाएगा. मारिया ने कहा, ‘‘कुछ ज्यादा रुपया नहीं लगेगा.’’

‘‘फिर भी,’’ कपिल ने कहा, ‘‘वहां पहुंच कर मूर्ख नहीं बनना है, वैसे जगह सुरक्षित तो है न?’’ यह प्रश्न वह रोज सुनती थी और उत्तर उस ने तोते की तरह रट रखा था. इस से पहले कि वह उत्तर देती, कपिल का मोबाइल फोन फिर से रिंग हुआ.

‘‘हैलो,’’ कपिल ने आहिस्ता से कहा. ‘‘हाय,’’ पत्नी नूमा का परिचित स्वर सुनाई दिया.

‘‘हाय,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘क्या कोई आदेश देना बाकी रह गया?’’ ‘‘एक अच्छी खबर है,’’ नूमा ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘सोचा, तुम्हें दफ्तर पहुंचने से पहले ही सुना दूं.’’

‘‘तुम से अच्छी खबर की उम्मीद तो नहीं है,’’ कपिल ने मंद मुसकान से कहा, ‘‘मुझे बहुत डर लगता है.’’ ‘‘हिश्श…’’ नूमा ने कहा, ‘‘बेशर्म कहीं के. बल्लू का फोन अभीअभी आया था.’’

‘‘बल्लू का?’’ कपिल के स्वर में हर्ष और आश्चर्य का मिश्रण था, ‘‘क्या कहा, उस ने?’’ ‘बल्लू’ यानी बलराम, उन का पुत्र सेना में कप्तान था और जोधपुर के पास सीमा पर तैनात था.

‘‘बोला…’’ नूमा ने गद्गद कंठ से कहा, ‘‘इस बार मेरे जन्मदिन पर अवश्य आएगा. एक सप्ताह की छुट्टी मिल गई है.’’ ‘‘वाह,’’ कपिल ने खुश हो कर कहा, ‘‘ठीक है, खूब जश्न मनाएंगे.’’

‘‘सुनो,’’ नूमा ने कहा. ‘‘हां, सुन रहा हूं, पर जल्दी कहो, ट्रैफिक बहुत है,’’ कपिल ने कहा.

‘‘तो ठीक है, जब घर आओगे, तभी कहूंगी.’’ ‘‘अब कह भी दो,’’ कपिल ने कहा.

‘‘बल्लू के लिए जो लड़कियां हम ने चुनी हैं, उन के अभिभावकों से हम मिलने का समय ले लेते हैं.’’ ‘‘ठीक है,’’ कपिल ने कहा, ‘‘तुम जो ठीक समझो, वही करो. अब फोन बंद करता हूं.’’

कपिल ने फोन बंद कर दिया और सोचा, इतना सुनहरा अवसर मिला है और सब बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. खैर, दफ्तर भी फोन करना है कि आने में देर होगी. इतना दुर्लभ अवसर चूकना नहीं चाहिए?

‘‘तो फिर किधर चलना है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘मुझे खेद है. यह फोन बहुत तंग कर रहा है.’’ मारिया ने मादक मुसकान से कहा, ‘‘तो फिर फोन बंद कर दीजिए या बैटरी निकाल लीजिए.’’

‘‘बहुत समझदार और चतुर हो,’’ कपिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘बस, एक फोन दफ्तर में करना है, ताकि बाकी समय चैन से गुजरे.’’ इस से पहले कि कपिल दफ्तर का नंबर लगाता, फोन बज उठा.

‘‘अब कौन है?’’ कपिल ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘सर,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘मैं मनोहर बोल रहा हूं.’’

मनोहर महाप्रबंधक का निजी सचिव था. उस के स्वर में घबराहट थी. ‘‘हां, बोलो मनोहर, क्या बात है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘जल्दी बोलो, मुझे

एक जरूरी काम है, आने में देर हो सकती है.’’ ‘‘सर, आप तुरंत यहां आ जाइए,’’ मनोहर ने जरा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मजदूरों ने साहब का घेराव कर रखा है और नारे लगा रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कपिल ने क्रोध से कहा, ‘‘क्या सबकुछ आज ही होना है? ठीक है, मैं आ रहा हूं. तुम पुलिस को सूचना दे दो. शायद जरूरत पड़ जाए.’’ ‘‘जी, सर,’’ मनोहर ने कहा, ‘‘पर आप जल्दी से जल्दी आइए.’’

कपिल ने खेदपूर्वक एक बार फिर मारिया को देखा और सोचा, क्या गजब की लड़की है, क्या फिर मुलाकात होगी? ‘‘मुझे खेद है,’’ कपिल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आज का मुहूर्त शायद ठीक नहीं है. तुम्हें कहां छोड़ दूं?’’

मारिया के चेहरे से कुछ पढ़ पाना कठिन था, न तो मायूसी का भाव था और न ही खेद का. उस ने हौले से कहा, ‘‘यहीं उतार दीजिए.’’

 

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