रूपाली के इस आग्रह को मिताली टाल न सकी और उस के साथ चल दी.
रूपाली को उस की दोस्त के घर छोड़ कर मिहिर ने एक रेस्तरां के सामने गाड़ी रोक दी और मिताली से बोला, ‘चलो, कौफी पी कर घर चलेंगे.’
‘मिहिर, देर हो जाएगी और अभी मुझे अपनी फ्रैंड के घर भी जाना है.’
‘मिताली, ज्यादा देर नहीं लगेगी. प्लीज, चलो न.’
मिहिर के इस आग्रह को मिताली मान गई.
दोनों कोने की एक खाली टेबल पर आ कर बैठ गए.
मिहिर यह सोच कर अपने दिल की बात नहीं कह पा रहा था कि यह उन दोनों की दूसरी मुलाकात है और मिताली कहीं उसे सड़क छाप आशिक न समझ ले.
‘मिहिर, आप ने वह ब्रैसलेट रूपाली को नहीं दिया?’ मिताली सहज ही बोली.
‘मिताली,’ मिहिर बोला, ‘मैं ने वह ब्रैसलेट और ताजमहल उस लड़की के लिए खरीदा है जिसे मैं बहुत प्यार करता हूं और शादी भी करना चाहता हूं. पर…’
‘पर क्या, मिहिर?’
‘पर मिताली, वह मुझे प्यार करती है या नहीं? यह मैं नहीं जानता.’
‘तो क्या अभी तक आप ने अपने दिल की बात उस लड़की से नहीं कही?’ मिताली ने कौफी का आखिरी घूंट भरते हुए पूछा.
‘नहीं, डरता हूं, कहीं वह नाराज न हो जाए. वैसे तुम बताओ मिताली, क्या वह लड़की मेरा प्रेम स्वीकार कर लेगी?’
‘मैं क्या बताऊं मिहिर, पता नहीं उस लड़की के दिल में आप के प्रति क्या है? अच्छा, अब हमें चलना चाहिए,’ मिताली उठ खड़ी हुई.
मिहिर ने मिताली को उस के घर छोड़ दिया और जब तक वह अंदर नहीं चली गई तब तक उसे देखता रहा.
दूसरे दिन मिताली से मिलने मिहिर उस के घर गया तो पता चला कि वह अपनी सहेलियों के साथ सुबह ही एक हफ्ते के लिए शिमला घूमने गई है. मिहिर निराश लौट आया.
मिताली के वापस आने से पहले ही मिहिर की छुट्टियां समाप्त हो गईं और वह वापस होस्टल चला आया. अब मिहिर जब भी खाली होता, उस के कानों में मिताली की खनकती हंसी गूंजती रहती. वह यह सोच कर अपने मन को समझा लेता कि इस बार घर लौटेगा तो अपने दिल की बात मिताली से जरूर कह देगा.
इंतजार की घड़ी कितनी ही लंबी हो खत्म होती ही है. आखिर मिहिर की परीक्षाएं समाप्त हो गईं और उसी दिन वह घर के लिए चल पड़ा.
मिहिर जब घर पहुंचा तो शाम का धुंधलका छाने लगा था. उसे देख रूपाली खुश होती हुई बोली, ‘भैया, आप बड़े ही ठीक मौके पर आए हैं. मुझे मिताली के घर तक जाना है, आप गाड़ी से छोड़ देंगे क्या?’
मिताली का नाम सुनते ही मिहिर के शरीर में बिजली सी दौड़ गई. वह बोला, ‘हां, मैं थका नहीं हूं. बस, एक कप कौफी पी कर चलता हूं.’
रूपाली को कौफी लाने के लिए बोल कर मिहिर तैयार होने चला गया. तैयार होते समय वह मन ही मन सोच रहा था कि आज वह मिताली से अपने प्यार का इजहार कर ही देगा. चलते वक्त उस ने वह ताजमहल और ब्रैसलेट भी ले लिया जो वह संभाल कर घर में रख गया था.
रास्ते भर रूपाली मिहिर से उस के दोस्तों और होस्टल के बारे में बातें करती रही. मिहिर भी उस के हर सवाल का जवाब दे रहा था.
मिताली का घर बिजली की रंगबिरंगी झालरों से जगमगाता देख कर मिहिर ने छोटी बहन से पूछा, ‘रूपाली, क्या आज मिताली के घर कोई फंक्शन है?’
‘हां, भैया, मैं तो आप को बताना ही भूल गई कि आज मिताली की सगाई है,’ कह कर रूपाली गाड़ी से उतर कर आगे बढ़ गई और जातेजाते कह गई कि गाड़ी पार्क कर आप भी आ जाना.
मिहिर को लगा जैसे उस की आंखों के आगे अंधेरा छा रहा है. वह वहां ठहर न सका और उसी क्षण वापस लौट आया. उस के तमाम सपने शीशे की तरह टूट गए थे जो लगभग एक साल से मिताली को ले कर देखता आया था.
मिहिर ने अंत में वह शहर छोड़ने का फैसला कर लिया. उस के डैडी ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन मिहिर को वह शहर हर पल शूल की तरह चुभता था. अत: उस ने कानपुर छोड़ कर इस शहर में आ कर अपनी प्रैक्टिस जमाई.
‘‘साहब, खाना तैयार है, लगा दूं?’’ हरिया ने आ कर उस से पूछा तो मिहिर की तंद्रा भंग हुई और वह जैसे सपने से जाग गया.
‘‘नहीं, मुझे भूख नहीं है. तुम खा लो. हां, मेरे लिए बस, एक कप कौफी भर बना देना,’’ इतना कह कर डा. मिहिर उठे और कंप्यूटर खोल कर कुछ काम करने लगे.
अगले दिन रिपोर्ट ले कर मिताली व नवीन उस के क्लीनिक पर आए. रिपोर्ट देख कर उस ने बता दिया कि कोई गंभीर बीमारी नहीं है और दवाइयों का परचा लिख कर उन्हें दे दिया. जाते समय मिताली व नवीन मिहिर को अपने घर आने का निमंत्रण दे गए.
मिहिर के इलाज से नवीन ठीक हो रहा था. पति को ठीक होता देख कर मिताली भी अब पहले की तरह खिलीखिली रहने लगी थी. उसे खुश देख कर मिहिर को एक अजीब सी संतुष्टि का एहसास होता.
मिताली व नवीन कई बार मिहिर से घर आने को कह चुके थे. एक दिन वह उधर से निकल रहा था तो सोचा, चलो आज मिताली से ही मिल लें और बिना किसी पूर्व सूचना के मिताली के घर पहुंच गया. नवीन और मिताली अभी आफिस से नहीं लौटे थे. घर पर आया थी. अत: मिहिर ड्राइंगरूम में बैठ कर उन की प्रतीक्षा करने लगा.
बैठेबैठे मिहिर बोर होने लगा तो टेबल पर रखी पत्रपत्रिकाएं ही उलटने- पलटने लगा. तभी उस की नजर एक डायरी पर पड़ी और वह उस डायरी को उठा कर देखने लगा.
डायरी के पहले पन्ने पर ‘मिताली’ लिखा देख कर मिहिर के मन में उत्सुकता जागी और वह अंदर के पन्नों को खोल कर पढ़ने लगा. एक पृष्ठ पर लिखा था :
‘मैं ने मिहिर के बारे में सुना था. आज रानी के जन्मदिन की पार्टी में उस से मुलाकात भी हो गई. मैं ने अपने जीवनसाथी की जो कल्पना की थी उस पर मिहिर बिलकुल खरा उतरता है.’
कुछ पन्नों को छोड़ कर फिर लिखा था :
‘आज मैं मिहिर से दूसरी बार मिली. बातों में पता चला कि वह किसी और लड़की से प्यार करता है जिस के लिए उस ने आज ही प्यारा सा ताजमहल व ब्रैसलेट खरीदा है. कितनी नसीब वाली होगी वह लड़की जिसे मिहिर प्यार करता है…’
मिहिर आश्चर्यचकित रह गया. तो क्या मिताली भी उसे चाहती थी? खैर, इस में अब संदेह ही कहां था? उस की कायरता का नतीजा मिताली को और उसे भी भुगतना पड़ रहा है.
डायरी जहां से उठाई थी वहीं रख कर मिहिर आंखें बंद किए सोचता रहा कि यदि उस दिन रेस्तरां में हिम्मत कर मिताली से प्यार का इजहार कर दिया होता तो आज उसे अकेलेपन का विषाद तो नहीं झेलना पड़ता.
‘‘अरे, मिहिर आप. अचानक बिना पूर्व सूचना दिए?’’ मिताली कमरे में घुसती हुई बोली.
‘‘मिताली, मैं ने सोचा अचानक, बिना पहले से बताए तुम्हारे घर आ कर तुम्हें चौंका दूं. क्यों, कैसा लगा मेरा यह आइडिया?’’
‘‘बहुत अच्छा डा. साहब,’’ नवीन ने कहा, ‘‘आप हमारे घर आए. यह हमारे लिए गर्व की बात है.’’
मिताली ने आया को चायनाश्ता लाने का निर्देश दिया और खुद नवीन के बगल में आ कर बैठ गई.
कुछ देर इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर मिहिर ने कहा, ‘‘अब आप लोग मेरे घर कब आ रहे हैं? ऐसा करो मिताली, नवीनजी को ले कर इसी इतवार को आ जाओ.’’
‘‘मिहिर, इस इतवार को तो नवीनजी का बहुत व्यस्त कार्यक्रम है.’’
‘‘मिताली, तुम अकेले ही चली जाना,’’ नवीन बोले, ‘‘मैं फिर कभी चला जाऊंगा.’’
मिहिर घर लौट कर आया तो उस की बेचैनी और बढ़ गई थी.
मिताली इतवार को नियत समय पर मिहिर के घर पहुंच गई. घर में इधरउधर देख कर बोली, ‘‘मिहिर, और कोई दिखाई नहीं दे रहा है, क्या सब लोग कहीं गए हैं?’’
‘‘मिताली, मैं यहां अकेला रहता हूं. दरअसल, मैं जिस लड़की से प्यार करता था उस की शादी कहीं और हो गई. मैं ने निश्चय किया था कि उस के अलावा किसी और लड़की से मैं विवाह नहीं करूंगा और मैं ने ऐसा ही किया.’’
मिताली उसे देख कर हैरान रह गई. बोली, ‘‘पर मिहिर, कब तक व कैसे अकेले जीवन व्यतीत करेंगे आप?’’
‘‘मिताली, मैं अकेला बेशक हूं पर उस की यादें मेरे साथ हैं. वही मेरे जीने का सहारा है. यही नहीं मैं तो अब उसे अकसर प्रत्यक्ष अपनी आंखों से देखता हूं.’’
‘‘तो क्या वह भी इसी शहर में है?’’
‘‘हां, मिताली,’’ मिहिर बोला, ‘‘क्या तुम उस से मिलना चाहोगी, अच्छा चलो, मैं तुम्हें अभी उस से मिलवाता हूं,’’ और भाववेश में मिताली को ले जा कर मिहिर शीशे के सामने खड़ा कर के बोला, ‘‘देखो मिताली, यही है मेरा प्यार.’’
‘‘मिहिर, यह क्या मजाक है?’’ दूर छिटक कर मिताली गुस्से से बोली.
मिहिर ने उसे सबकुछ सचसच बता डाला और अलमारी से निकाल कर वह ताजमहल व ब्रैसलेट उस के सामने रख दिया.
हतप्रभ खड़ी मिताली कभी मिहिर को तो कभी ब्रैसलेट व सफेद संगमरमर के ताजमहल को देख रही थी जिस पर छोटेछोटे शब्दों में खुदा था, ‘मिताली के लिए’.
मिताली एक अजीब दुविधाजनक स्थिति लिए घर लौटी थी. एक तरफ नवीन था जिस के नाम का मंगलसूत्र उस के गले में पड़ा है. दूसरी तरफ मिहिर, जिस के प्यार का अंकुर कभी उस के मन में फूटा था, किंतु वह फूल पुष्पित न हो सका. और आज इतने सालों के बाद, न जाने कैसे अनायास ही उस में कोंपलें निकलने लगीं.
मिताली रात भर करवटें बदलती रही. सुबह उठी तो सो न पाने के कारण आंखें लाल और सिर में तेज दर्द हो रहा था. नवीन उस की हालत देख कर परेशान हो उठा. अभी तक नौकरानी नहीं आई थी. अत: वह खुद ही चाय बना लाया.
‘‘मिताली, शायद तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है,’’ चाय का प्याला उस की तरफ बढ़ाते हुए नवीन बोला.
‘‘तैयार हो जाओ, मैं आफिस चलते समय तुम्हें डा. मिहिर को दिखा दूंगा.’’
मिहिर के क्लीनिक में काफी भीड़ थी. अत: नवीन मिताली को छोड़ कर आफिस चला गया. मिताली का जब नंबर आया तो दोपहर हो चुकी थी. मिहिर ने मिताली की जांच की, कुछ दवाएं दीं और बोला, ‘‘चलो, आज हम दोनों बाहर लंच करते हैं.’’