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डा. मिहिर ने जैसे ही अपने चेहरे के सामने से किताब हटाई और सामने बैठे मरीज की तरफ देखा तो वह चौंक गए.

चौंकी तो मिताली भी थी पर उस ने अपनेआप को संयत कर लिया था.

‘‘अरे मिहिर, आप?’’ मिताली बोली, ‘‘मैं ने तो सोचा भी नहीं था कि आप यहां हो सकते हैं.’’

‘‘कहो, मिताली, कैसी हो और क्या हुआ तुम्हें जो एक डाक्टर की जरूरत पड़ गई?’’ डा. मिहिर सामान्य स्वर में बोले.

‘‘मिहिर, मैं तो ठीक हूं पर यहां मैं अपने पति नवीन को दिखाने आई हूं,’’ मिताली बोली, ‘‘पिछले 3-4 माह से उन की तबीयत कुछकुछ खराब रहती थी पर इधर कुछ दिनों से काफी अधिक अस्वस्थ रहने लगे हैं,’’ कह कर मिताली ने

डा. मिहिर का परिचय नवीन से करवाया, ‘‘नवीन, डा. मिहिर का घर कानपुर में मेरी बूआ के घर के बगल में है. मेरे फूफाजी और मिहिर के डैडी बचपन के दोस्त हैं.’’

डा. मिहिर ने नवीन का चेकअप किया व कुछ टेस्ट करवाने का परामर्श दिया जिस की रिपोर्ट ले कर अगले दिन आने को कहा.

मिताली व नवीन चले गए पर डा. मिहिर का मन उचट गया. एक बार उन के मन में आया कि वह घर लौट जाएं लेकिन जब अपने मरीजों का ध्यान आया जो कई दिन पहले नंबर लगवा चुके थे और काफी दूरदूर से आए थे तो उन्होंने अपनेआप को संभाल लिया और चपरासी से मरीजों को अंदर भेजने के लिए कह दिया.

शाम के समय मिहिर को किसी दोस्त के घर पार्टी में जाना था पर वह वहां न जा कर सीधे घर आ कर चुपचाप बिस्तर पर लेट गए.

डा. मिहिर को बारबार एक ही बात चुभ रही थी कि जिस मिताली के कारण अपना घर, डैडी का अच्छाखासा नर्सिंग होम छोड़ कर उसे इस अनजान शहर में आ कर अपनी प्रैक्टिस जमानी पड़ी वही मिताली उन के शांत जीवन में कंकड़ फेंकने के लिए यहां भी आ गई.

‘‘साहब, चाय लेंगे या कौफी?’’ हरिया ने अंदर आ कर पूछा.

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं लूंगा,’’ मिहिर ने छोटा सा जवाब दिया तो वह चला गया.

उस के जाते ही मिहिर का मन अतीत के सागर में गोते लगाने लगा.

मिताली को पहली बार मिहिर ने रस्तोगी अंकल की बेटी रानी के जन्मदिन की पार्टी में देखा था. यों तो वह रानी के घर वालों के मुंह से मिताली की सुंदरता की चर्चा पहले भी सुन चुका था पर उस दिन जो देखा तो बस देखता ही रह गया था.

हालांकि मिहिर भी कम सुंदर न था. उस पर संपन्न परिवार का इकलौता लड़का, साथ में डाक्टरी की पढ़ाई. पार्टी में आई तमाम लड़कियों की नजरें उस पर टिकी थीं और वे उस से बातें करने को आतुर थीं. पर मिहिर जिस से बात करना चाहता था वह अपनी सहेलियों से बातें करने में व्यस्त थी.

काफी देर बाद मिहिर को मिताली से बात करने का मौका मिला.

‘आप का नाम मिताली है?’ बातचीत शुरू करने के उद्देश्य से मिहिर ने पूछा.

‘हां, पर आप को मेरा नाम कैसे पता चला?’ मिताली ने उसे आश्चर्य से देखते हुए प्रतिप्रश्न किया.

‘सिर्फ नाम ही नहीं, मैं तो आप के बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं,’ मिहिर ने कहा तो मिताली की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘अच्छा, और क्याक्या जानते हैं आप मेरे बारे में?’ उस ने पूछा.

‘यही कि आप रानी के मामा की बेटी हैं और एम.बी.ए. की छात्रा हैं. संगीत सुनना, बैडमिंटन खेलना, कविताएं लिखना आप की हौबी है,’ मिहिर बोला.

‘हां, आप कह तो सच रहे हैं पर मेरे बारे में इतना सबकुछ आप कैसे जानते हैं? क्या मैं आप का परिचय जान सकती हूं?’ मिताली ने कहा.

‘मैं रानी का पड़ोसी हूं. मेरा नाम मिहिर है. मैं मेडिकल अंतिम वर्ष का छात्र हूं. आजकल छुट्टियों में घर आया हूं,’ मिहिर ने अपना परिचय दिया.

तभी मिताली को किसी ने पुकारा और वह वहां से चली गई. मिहिर भी घर लौट आया. उस की आंखों की नींद व मन का चैन उड़ चुका था. दिनरात, सोते- जागते, उठतेबैठते बस उसे मिताली ही नजर आती थी.

उस दिन मिहिर अपनी छोटी बहन रूपाली के साथ शापिंग करने गया था. रूपाली बुटीक में अपने लिए कपड़े पसंद कर रही थी. मिहिर बोर होने लगा तो वह बाहर आ गया. अचानक उस की नजर सामने की गिफ्ट शाप की तरफ गई तो वह चौंक पड़ा. वहां मिताली कुछ खरीद रही थी. मिहिर उस ओर बढ़ चला.

‘हाय, मिताली, कैसी हो और यहां कैसे?’ मिताली के करीब जा कर मिहिर ने पूछा.

‘अरे मिहिर, आप और यहां. दरअसल आज मेरी एक फैं्रड का जन्मदिन है. मैं उसी के लिए गिफ्ट खरीदने आई हूं, और आप?’ मिताली ने उस से कहा.

‘मैं अपनी बहन रूपाली के साथ आया हूं. वह सामने की दुकान से कपड़े खरीद रही है. बोर होने लगा तो अंदर से बाहर आ गया और तुम यहां दिख गईर्ं.’

मिताली ने एक टेबल लैंप पैक करवा लिया. वह पैसे देने के लिए मुड़ी तो मिहिर ने उसे फिर शो केसों की तरफ बुला लिया और एक सफेद संगमरमर से बने ताजमहल की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘मिताली, देखो तो जरा यह कैसा लग रहा है?’

‘बहुत खूबसूरत है,’ मिताली बोली.

मिहिर ने सोचा, क्यों न वह अपने प्यार का इजहार मिताली को यह सुंदर उपहार दे कर करे? यह सोच कर उस ने वह ताजमहल और साथ में एक खूबसूरत पत्थर का बना कीमती ब्रेसलेट भी खरीद लिया.

तभी मिहिर को ढूंढ़ते हुए वहां रूपाली भी आ गई और मिताली को देख कर उस से बातें करने लगी.

मिहिर मन ही मन खुश हुआ कि चलो वह सफाई देने से बच गया वरना न जाने कितनी देर तक उस की छोटी बहन उस से सिर्फ इसलिए लड़ती कि वह उसे बिना बताए क्यों चला आया.

‘अच्छा अब मैं चलती हूं,’ घड़ी की तरफ नजर डालते हुए मिताली बोली.

‘मिताली, हमारे साथ ही चलो न, मुझे मेरी दोस्त के घर छोड़ कर मिहिर भैया तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देंगे.’

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