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आजादी का अपना एक अलग ही नशा होता है. यदि ना होता तो क्या स्वतंत्रता के लिए इतने सिर कुरबान होते? अनुभा से अब तक केवल सुना ही सुना था. लेकिन यह भी सच है कि सुने हुए को साकार करने के लिए भी बहुत हिम्मत की जरूरत होती है. और लगता है कि अनुभा ने वह हिम्मत जुटाने की सोच ही ली है.

दरअसल, 25 वर्ष की अनुभा एक बैंक में क्लर्क है और अपने घर से मीलों दूर नौकरी करती है. उस की रंगत भले ही सांवली है, पर नैननक्श बड़े ही तीखे. कद 5 फुट, 3 इंच. देह कसावदार, उस पर खुले बालों में देख कर कोई भी उस का दीवाना हो जाए. औफिस में कई लोग उस पर लट्टू हैं, पर वह दबंग किस्म की है तो सामने से कहने में हिचकते हैं. लेकिन उस के पास भी कोमल दिल है.

अनुभा के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी है, इसलिए उसे घर पर रुपएपैसे की मदद भेजने की जरूरत नहीं पड़ती. खुद अनुभा भी एक पीजी में रहती है, इसलिए रहनेखाने का खर्चा भी बहुत अधिक नहीं होता. तो फिर अनुभा अपनी कमाई का आखिर करे तो क्या करे?

अनुभा को यदि कोई व्यसन नहीं है, तो कोई विशेष महंगा शौक भी नहीं है. लेकिन पर्यटन उस की कमजोरी है. उस ने अपने जैसे घुमक्कड़ों का एक समूह बना रखा है, जिस में चार दोस्त हैं. चारों ही एक से बढ़ कर एक घुमंतू...

3-4 महीने बीततेबीतते उन के पांवों में खुजली चलने लगती और फिर एक शाम यारों की महफिल जुटती. आपसी सहमति से मौसम के अनुकूल स्थान पर मुहर लगती और टैक्सी वाले को फोन कर के बुक कर लिया जाता. सप्ताहभर के भ्रमण के बाद यह चौकड़ी रिचार्ज हो जाती और फिर से अपनेअपने काम में जुट जाती.

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