हर रिश्ते से बंधी थी
पर कोई भी रिश्ता
मेरा न था
रिश्तों में फासले तो थे पर
वे इतने खौफनाक भी हो सकते हैं
कभी सोचा न था
हमसफर बनाया था जिसे, हमसफर तो था
पर साथी न बन सका
रहते थे इक मकां में पत्थर की तरह
क्योंकि वो मकां था, घर न बन सका
घर न होने का दर्द
ऐसा भी होता है
कभी सोचा न था
गीली रेत पर लिखा था
अपना नाम उस के नाम के साथ
हवा का इक झोंका आया
रेत के साथ नाम भी उड़ा ले गया
नाम का वजूद मिटने का दर्द
ऐसा भी होता है
कभी सोचा न था
मुट्ठी में बंद रेत की तरह
कब फिसल गया वो
मालूम न था
रीति मुट्ठी लिए खड़े रहने का दर्द
दर्दनाक इतना भी होता है
कभी सोचा न था
होता है जो रिश्ता दिल के करीब
वही दे जाता है इतना दर्द
कहते हैं दिए जला कर रोशनी करो
पर दिए के नीचे के अंधेरे का दर्द
कितना होता है दिए को
ये सोचा न था.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन