याद जब भी कभी उस को मेरी आती होगी
रेत पर लिख कर मेरा नाम मिटाती होगी
मौजें आआ के उसे छू कर गुजरती होंगी
वो मगर उन की छुअन जान न पाती होगी
ढूंढ़ती होंगी मुझे दो खुलीखुली पलकें
मोती गालों पर वो रहरह के गिराती होगी
खोल के ख्वाबों की लट, ओढ़ के लहरों का लिबास
मन के सागर में हसीं रात नहाती होगी
उस के सूखे हुए होंठों पर कोई गीली हंसी
आती होगी जो कभी, भीग जाती होगी
एक मछली की तरह अपने मिलन की वो घड़ी
हाथ आआ के भी उस के, फिसल जाती होगी.
- सूर्यकुमार पांडेय
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