हंसी रेशमी अधरों वाली
सजीसंवरी थी प्रातें
बिसरा मन का सूनापन
पाई थीं सतरंगी सौगातें

तनहा सी एक दुपहरी में
आए थे बादल मंडराते
भर अंक में की थी तुम ने

स्नेह की निर्झर बरसातें
ढलती थी सांझ सुरमई
पलपल प्यार को पाते
बातें करते कट जाती थीं

महकीचहकी वो रातें
किस से कहते कैसे कहते
मीत तुम्हारी वो बातें
कैसे सुनहले दिन बीते
कैसी बीतीं रुपहली रातें.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...