डोल गया शहर
बोल गया कहर,
कल एक शहर था जहां
आज खंडहर है वहां.
कल थी ऊंची मंजिलें जहां
आज है तबाही की दास्तां वहां,
डोलती थी जिंदगियां जहां
अब खामोश हैं लाशें वहां.
दर्द है, कराह है
खौफ है, डर है,
बिलखता हर इनसान.
जो जिंदा है
वो भी खौफ का मारा है,
अब वो न जीता है न मरता है
बस दिन गिनते रहता है.
बसा था बरसों में
उजड़ गया पलों में,
हार गया शहर
जीत गया कहर.
-शोभा ज. चुलेट
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79
सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और





