उसे रोका अगर होता,
तो यूं बिगड़ा न होता,
जरा सी बात पर,
यूं कभी दंगा नहीं होता.
तुझे गर खून की कीमत कहीं अपने पता होती,
कभी खत यार को,
खून से लिखा न होता.
मोहब्बत की खनक दिल में गर तेरे न होती,
तू बन के दिल मेरा,
धड़का न होता.
दिलों के तार तुझ से हैं कहीं बेशक जुड़े वरना,
तेरे बारे में यूं इतना कभी सोचा न होता.
जहां पर प्यार होता है,
भरोसा हो ही जाता है,
मोहब्बत के बिना झगड़े का समझौता नहीं होता.
बिगड़ जाती है बनती बात भी नफरत के चश्मों से,
वरना यह गजल क्या,
एक मिसरा भी न होता.

- हरदीप बिरदी

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...