मैं खुद में जिस घड़ी गमेतनहाई पाती हूं,
उम्मीदोआस की हर पल नई शम्मा जलाती हूं.
अता तुम ने किए जो भी खुलूसोप्यार के नगमे,
उन्हें जबजब भी सुनती हूं, मैं खुद ही मुसकराती हूं.
कभी खुद की खबर भी रह नहीं पाती है जानेमन,
तुम्हें पाने की हसरत में मैं ऐसे डूब जाती हूं.
कभी बातें पुरानी सी, कभी सपने सुहाने से,
जतन से रोज गुलदस्ता मोहब्बत का सजाती हूं.
तुम्हारे चेहरे में इतनी कशिश है कि ढूंढ़ने तुम को,
मैं दश्तोसहरा से आगे समंदर पार जाती हूं.
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सरिता से और