हाय, ये लाजभरी कजरारी पलकें
मदअलसाई निंदियारी सपनीली आंखें
गोरे चिकने शानों पे बिखरीबिखरी घटा
घनघोर महकी स्याह रेशमी जुल्फें.
हाय, ये लपलपाती नाजुक पतली कटारी कमर
गजगामिनी इठलाती मतवाली हंसिनी चाल
नखशिख गदराया मखमली ‘पूनम’ सा यौवन
गुलाब की लचकती मस्ताई शोख कुंआरी डाल.
न यों रूठी रहो बौराए वसंती फालगुन में
शराबी रस में भीगो डूबो उतर आओ प्रेमांगन में
नशीले सिंदूरी मौसम के कसे आलिंगन चुंबन में
चुनरी चोली अंगिया के अर्द्धखुले कच्चे बंधन में.
खनकाओ चूडि़यां झनकाओ पायल
छलकाओ अमृत मधुकलश और कर दो घायल हाय,
दूधिया जोबन से सरका आंचल
गहरी नदिया निहार तनमन हुआ पागल.
पोरपोर उद्याम प्यास तेज श्वासप्रश्वास
मृदंग बनी धड़कन
अब क्या दूर क्या पास हाय,
ये सुर्ख शहदीले होंठ अंगूरी गुलाली गाल
होली में कैसी शर्मोहया,
नानुकर का कहां सवाल.
– सुभाष चंद्र झा