हां, मैं लड़की हूं
चिडि़या हूं बाबुल के आंगन की
अभीअभी सीखा है भरना उड़ान
नाप लूं अपने हिस्से का आसमान
मुझे उड़ने दो
कह सकूं कि हूं मैं
अपनी मरजी के सफर की
न कि हवा है जिधर की हूं उधर की
मुझे उड़ने दो
मां, मैं कली हूं तेरे चमन की
ओढ़ती हूं, बिछाती हूं तेरी कामनाओं को
खुशबू से महकाती हूं हवाओं को
मुझे खिलने दो
एक तबस्सुम के लिए ही सही
जी लूंगी तेरे आंचल की छांव में
फिर चाहे कांटे रहें राह में
मुझे खिलने दो
मेरे हमराह मैं नदी हूं तेरे मन की
हमकदम तेरी हार की, जीत की
मैं छवि समर्पण की, प्रीत की
मुझे बहने दो
किनारों के बीच, किनारों से परे
जहां से निकलूंगी, राह बना लूंगी
हर गम को खुशी हमराह बना दूंगी
मुझे बहने दो
हां, मैं लड़की हूं
मुझे उड़ने दो, खिलने दो
बहने दो, जीने दो.
- अनु