हमें फूलकांटों की पहचान होती
कभी दिल न तुम से लगाते
तुम्हारे ही कारण हमें रंग भाए
बहुत बोझ थे, हम ने उठाए
जो मालूम होता, तुम बेवफा हो
जख्मों को अपने यों न दिखाते
न खबर थी न खत ही मिला था
नहीं जान पाए तुम्हें क्या गिला था
पत्थर के तुम हो, अगर जान जाते
तुम्हारी हंसी पर फिदा हम न होते
बहुत दूर तुम थे बहुत दूर हम थे
नदारद थीं खुशियां बहुत पास गम थे
तुम्हें भूल जाने की हिम्मत जो होती
यों छिपछिप के आंसू बहाए न होते
हमें फूलकांटों की पहचान होती
कभी तुम से दिल यों न लगाते.
– राकेश नाजुक
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