तुझे दिल से अपने निकाल कर
मैंने ख्वाहिशों को सुला दिया
तू लौट कर भी ना आ सके
मैंने आशियाँ ही जला दिया
चुभने लगे थे आंख में
जो ख्वाब तूने दिखाये थे
ये तो शुक्र है के सहर ने फ़िर
मुझे असलियत से मिला दिया
तेरा प्यार था के फरेब था
मुझे आज तक ना पता चला
कभी रो दिये तो हंसा दिया
कभी हंसते हंसते रुला दिया
कभी बेपनाह मोहब्बतें
कभी बेबसी की कहानियां
कभी मौत के दर ले गया
कभी ज़िन्दगी से मिला दिया
ये ना सोचना के मैं रोऊंगी
पछताऊंगी तुम्हें छोड़ कर
मुझे गम नहीं किसी बात का
जो भुला दिया, सो भुला दिया
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सरिता से और