रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
कुछ पल खुशियां पाने को
आंसू को पीना सीखा है
तानेउलाहने सुन कर हम
बने रहे हर बार अनजान
वो हमें सताते रहे
हमें न समझा कभी इनसान
सब के पनघट का पानी
अभी तलक न रीता है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
मन की गहराई में जो उतरे
उलझन की लहरों ने घेरा
रात बीती रुसवाई में
बेबस निकला सुबहसवेरा
मौसम की सही अगन
घावों को नित सीना सीखा है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है
ठोकर खा कर इतना जाना
स्वार्थ की पसरी है धुंध
सबकुछ सहा खामोशी में
हम ने अपनी ली आंखें मूंद
वो सितम पे सितम रहे ढहाते
हम ही जानते जो हम पे बीता है
रिश्तों की मर्यादा में
घुटघुट के जीना सीखा है.
-राखी पुरोहित
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