क्या जानते तुम?

मेरी कितनी शाखाएं?

हर एक कीमती

छूना सतर्क रह कर

टूटने पर दर्द मानती

लेकिन जो तना मजबूत

वह भी

संभालने में कुशल

लिपटने का शौक?

कला सिखाना चाहती

जड़ को ‘जड़’ न समझो

पाताल तक पहुंच

पत्ता भी अगर पीडि़त

व्याधि का उपचार

सहलाना जानती

अधेड़ वृक्ष!

फल अभी सरस

पैनी निगाह मेरी

कातिल का इरादा

हर पल पहचानती.

       – कविता गुप्ता

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