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लेखक-श्री धरण सिंह

सौदामिनी यहीं पर पहली बार मां बनी थी. उस ने बेटे को जन्म दिया था. नाम रखा गया-हीरेन. वह हीरा ही तो था जिस के आने के बाद सौदामिनी का जीवन चमक उठा था. 5 एकड़ जमीन में उन के धान के खेत लहलहा उठे थे, शेष 5 एकड़ में सुपारी, केले, नारियल इत्यादि के वृक्ष खड़े थे. सब्जियों की भी क्यारियां लगा रखी थीं उन्होंने.

अगले 5 वर्षों में उन के और 2 संतानें हुईं, बेटा नरेन और बेटी दीपशिखा. खेतखलिहानों में कूदतेफांदते वे बड़े हुए थे. चूंकि गांव में ही प्राइमरी स्कूल खुल गए थे, सभी बच्चे वहीं सरकारी स्कूल में पढ़ने लगे. विश्वासनाथ को मछली मारने का बहुत शौक था. उन्हें जेटी के मछुआरों की तरफ से एक छोटी लकड़ी की बनी नाव मिल गई थी जिस में बैठ कर वे विजयनगर के सागर में जा कर मछलियां पकड़ा करते थे. बड़ा बेटा हीरेन अकसर अपने बापू के साथ मछली पकड़ने जाया करता. विश्वासनाथ को यों लगा जैसे पूर्वी पाकिस्तान में खो गए सुनहरे दिन यहां विजयनगर की जमीन पर वापस लौट आए हैं, खेत से धान, मछलियों, सब्जियों की आय...एक औसत दरजे का जीवन वे जी रहे थे.

‘‘दादा, अभी तक यहां बैठे हो...’’ अचानक अभिलाष की आवाज से अतीत की यादों का वह रेला एकाएक गुम हो गया, ‘‘नाश्ता कर लीजिए,’’ उस ने कहा.

अभिलाष ही वह व्यक्ति था जिस ने विश्वासनाथ के जीवन की धारा को मोड़ने में मदद की थी. उस दिन के बाद से विश्वासनाथ और दूसरे कुछेक विस्थापितों के जीवन की परिभाषाएं बदलती जा रही थीं. पंचसितारा होटल और रेस्तरां के मालिक विजयनगर के सागर किनारे की भूमि का मोलतोल करने आ पहुंचे थे जो विस्थापितों की मिल्कियत थी. होटल के एक प्रतिनिधि के साथ अभिलाष ही इस व्यापार की सूचना देने आया था. अभिलाष वैसे कृष्णानगर के उन के एक ममेरे भाई हरिपाद सरकार का बेटा था. विश्वास दा पुन: अतीत की यादों में खो गए. उन्होंने जब यह सुना कि उन की 15 बीघे जमीन के बदले उन्हें लगभग 2 करोड़ या उस से ज्यादा रुपए मिलेंगे तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उन की आंखें कुछ क्षण के लिए अपलक बड़ी हो गईं. जब बच्चों ने यह सुना, वे भी अचंभे में पड़ गए परंतु सौदामिनी को विश्वास नहीं हो रहा था.

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