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लेखक-श्री धरण सिंह

उसी समय किसी ने अभिलाष को होटल के भीतर बुला लिया था. वह जाने लगा, ‘‘दादा, ये कुरसियां बरामदे में रखवा दीजिए,’’ उस ने कहा. कुरसियां रखवाने के बाद सुस्ताने के उद्देश्य से वे बरामदे के चबूतरे पर बैठ गए और अपने हाथों सनराइज होटल के लौन में वे गुलाब और गेंदे के पौधों को सींच रहे थे, तभी होटल के मैनेजर अभिलाष ने उन्हें पुकारा, ‘‘विश्वास दा, अब बस करिए. देखिए, आप से कुछ लोग मिलने आए हैं.’’ उन्होंने झट से सींचना बंद किया और बरामदे की ओर बढ़े अभिलाष के साथ एक अधेड़ विदेशी पर्यटक और एक फिल्म कैमरामैन खड़ा था. दोनों ने उन्हें देख कर ‘हैलो’ कहा. विश्वास दा ने सिर झुकाया और प्रणाम किया. तभी अभिलाष बोल उठा, ‘‘दादा, ये विदेशी पर्यटक हैं और हैवलौक द्वीप पर कोई डाक्यूमैंट्री फिल्म बनाना चाहते हैं. मैं ने आप के बारे में बताया, ये लोग आप की फोटो लेंगे, जल्दी से कपड़े बदल कर आइए. विश्वास दा फौरन होटल के पीछे वाले आउटहाउस में चले गए. मैनेजर पर्यटक और कैमरामैन से बतियाता रहा. कुछ क्षण बाद अपना हुलिया बदल कर लौट आए. उन्होंने सफेद पायजामा और कुरता पहना हुआ था.

अमलतास के पेड़ के नीचे आर्मेट की कुरसियां रखी गई थीं. विदेशी पर्यटक ने दादा को कुरसी पर बैठने को कहा. ठीक उन की ओर मुंह किए कुरसियों पर दोनों पर्यटक महाशय और अभिलाष बैठे हुए थे. कैमरामैन कैमरे को स्टैंड में लगाए उन के पार्श्व में खड़ा था.

‘‘दादा, ये आप से पूछना चाहते हैं कि आज और बीते कल के जमाने के हैवलौक में क्या फर्क है? आप ने अपना संघर्ष कैसे किया? अपनी जमीन को होटलमालिकों को बेच कर क्या आप खुश हैं?’’ अभिलाष ने दादा  को बताया.

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