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लेकिन इसी कालेज में कुछ ऐसा भी चल रहा था जो कुछ बच्चों को अंधियारे के गर्द में ढकेल रहा था, जिस से अभिभावक और यहां आने वाले नए विद्यार्थी अनभिज्ञ थे. कालेज का मैनेजमैंट शायद सबकुछ जानते हुए भी मौन था क्योंकि मैनेजमैंट के लिए ये बच्चे और शिक्षा का यह केंद्र केवल एक व्यावसायिक संस्थान से अधिक कुछ भी नहीं था.

इस कालेज  में आहान का यह पहला सैमेस्टर था. वह अपने वालिद के सपनों को साकार रूप देना चाहता था, इसलिए वह इस कालेज में एनरोल हुआ था. वह बीई इलैक्ट्रौनिक का छात्र था. आहान अपना बीई कंप्लीट कर एक मल्टीनैशनल कंपनी में जाना चाहता था. चूंकि उस के पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और इस कालेज की फीस एक मोटी रकम थी जिसे अदा करने में वे असर्मथ थे, इसलिए उन्होंने बैंक से एजुकेशन लोन ले कर आहान का एडमिशन यहां इस कालेज में कराया था. इस सच से आहान भी वाकिफ था, इसलिए वह पूरे पक्के इरादे के संग इस कालेज में आया था कि वह कुछ ऐसा करेगा जिस से उस के पिता को उस पर नाज़ होगा और वे उस पर फख्र महसूस करेंगे.

इस साल सैशन की शुरुआत थोड़ी देर से हुई थी. आहान को यहां इस कालेज  में आए लगभग 2 महीने गुज़र चुके थे लेकिन अभी भी वह पूरी तरह से कालेज और यहां के तौरतरीके में खुद को ढाल नहीं पाया था और न ही कालेज के छात्रछात्राओं की गतिविधियों से पूरी तरह से अवगत हो पाया था. उसे अपने रूममेट्स से भी तालमेल बिठाने में दिक्कत आ रही थी क्योंकि उस के दोनों ही रूममेट्स रोहन और शशांक काफी र‌ईस परिवार से थे और उन के लिए पैसों का कोई महत्त्व नहीं था. वे बिंदास रूपए उड़ाते थे और आहान हाथ खींच कर चलता.

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