‘‘आइए स्वामीजी, इधर आसन ग्रहण कीजिए,’’ अशोक ने गेरुए वस्त्रधारी तांत्रिक अवधूतानंद का स्वागतसत्कार करते हुए अपने जीजा की ओर देखा और बोला, ‘‘भाई साहब, यह स्वामीजी हैं और इन को प्रणाम कर आशीर्वाद लीजिए. आप की सभी समस्याओं का समाधान इन की मुट्ठी में कैद है.’’
‘‘प्रणाम, महाराज. अशोक के मुख से आप के चमत्कारों की महिमा सुन कर ही मैं आश्वस्त हो गया था कि आप ही चुनाव रूपी भवसागर में हिचकोले खाती मेरी नैया को पार लगा सकते हैं. आप की जयजयकार हो…आप…’’
‘‘ठीक है, ठीक है,’’ महाराज ने नशे में डूबी सुर्ख आंखों से नेताजी की ओर देखा और बोले, ‘‘बात आगे बढ़ाओ, हमारा समय बहुत कीमती है…’’
‘‘महाराज, कृपा कीजिए, किसी तरह चुनाव जीत जाऊं…मैं आप की झोली मोतियों से भर दूंगा.’’
‘‘देखो, चुनाव के बाद की बात बाद में, पहले अनुष्ठान की बात करो. अशोक ने तुम्हारी जन्मकुंडली हमें दिखाई थी… फिलहाल तुम्हारे सितारे गर्दिश में हैं. संभावना 50 प्रतिशत तक की है, लेकिन अगर तुम 5 लाख खर्च करने को तैयार हो तो हमारी तंत्र विद्या से 50 का आंकड़ा 100 में तबदील हो जाएगा. सारी विरोधी शक्तियां निष्क्रिय एवं शिथिल होती चली जाएंगी और हमारा डंडा और तुम्हारा झंडा आसमान की बुलंदियों को छूता चला जाएगा.’’
‘‘महाराज, मैं धन्य हो गया, लेकिन चुनाव में पहले ही बहुत खर्चा हो रहा है… अभी अगर आप ढाई लाख में कृपा करें तो…’
‘‘असंभव,’’ महाराज ने सुर्ख नेत्रों से अशोक को घूरा, ‘‘क्यों बच्चा, तुम तो कह रहे थे कि सारी बात तय हो चुकी है, फिर…’’
‘‘आप चिंता न करें महाराज, मेरे जीजाजी थोड़े कंजूस हैं. मुट्ठी खोलते हुए इन्हें घबराहट सी होने लगती है,’’ कहते हुए अशोक ने गुस्से से जीजा की ओर देखा, ‘‘यह तो महाराज की अपार कृपा है कि यहां तक आने को राजी हो गए, वरना कितने नेता, अभिनेता दिनरात इन के डेरे के इर्दगिर्द मंडराते रहते हैं. अब निकालिए 5 लाख की तुच्छ धनराशि…महाराज के चरणों में उसे अर्पित कर चैन की बांसुरी बजाइए…परसों समाधि से उठने के बाद महाराज ने कहा था कि आप सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतेंगे, अपितु मंत्रीपद को भी सुशोभित करेेंगे लेकिन उस के लिए अलग से 5 लाख खर्च करने होंगे.’’
‘‘नहीं, अभी नहीं,’’ महाराज ने मंदमंद मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम लोभीलालची नहीं, मस्तमौला फकीर हैं, अभी सिर्फ 5 लाख से ही अनुष्ठान आरंभ करेंगे… नेताजी, आप का शुभ नाम?’’
‘‘जी…सूरज प्रकाश.’’
‘‘वाह, खूब…बहुत खूब…पूरब दिशा की लालिमा आप के समूचे व्यक्तित्व की परिक्रमा करती प्रतीत हो रही है. इसी क्षण से चुनाव संपन्न होने तक आप को बस, पूरब दिशा की ओर ही देखते रहना है. प्रात: सूर्योदय के समय सूर्य नमस्कार कर जल अर्पित करें. याद रहे, जब भी घर से बाहर निकलें, सूर्य के दर्शन अवश्य करें…इस के बाद ही कदम आगे बढ़ाएं.’’
‘‘महाराज, सूर्य तो स्थिर नहीं रहते. सुबह सामने वाले दरवाजे की ओर होते हैं तो दोपहर को बगीचे की तरफ नजर आते हैं और शाम को पिछली तरफ चले जाते हैं…वह तो हमेशा घूमते ही रहते हैं, ऐसे में…’’
‘‘अरे, मूर्ख,’’ महाराज तनिक क्रोध में बोले, ‘‘सूर्य एक ही स्थान पर स्थिर हैं. घूम तो हमारी पृथ्वी रही है, इसी कारण लोगों को दिशाभ्रम हो जाता है. अब जैसा हम ने बताया है, बिलकुल वैसा ही कर.’’
फिर उन्होंने खिड़की के बाहर नजरें घुमाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे राजनीतिक भविष्य का सूर्योदय होने का समय क्षणप्रतिक्षण निकट आता जा रहा है. तुम 5 लाख अशोक के हवाले करो और हमारी तंत्र विद्या का चमत्कार देखने की प्रतीक्षा करो,’’ इतना कह कर अशोक को कुछ संकेत कर के महाराज उठ खड़े हुए.
नेताजी ने फौरन 5 लाख रुपए की गड्डियां ला कर अशोक के हवाले कर दीं. महाराज जातेजाते नेताजी की विशाल कोठी पर नजरें डालते हुए बोले, ‘‘वत्स, तुम्हारी विजयपताका दिनरात इस अट्टालिका पर लहराएगी. जाओ, अब तनमनधन से अपनी समस्त शक्ति चुनाव रूपी हवनकुंड में झोंक दो. तुम अपना काम करो, हम अपना अनुष्ठान करेंगे. जिस दिन मंत्रीपद की शपथ ग्रहण करने जाओगे, उस से पहले ही दूसरी किस्त के रूप में 5 लाख रुपए की धनराशि पहले हमें भेंट कर देना, वरना…’’
‘‘अरे, महाराज, बस, आप कृपा कीजिए…मैं बखूबी समझ गया…मंत्रीपद मिलने के बाद मैं 5 क्या 10-15 लाख आप के चरणों पर न्योछावर कर दूंगा.’’
अगले दिन से ही सूरज उर्फ सूरज प्रकाश उर्फ नेताजी की मानो दिनचर्या ही बदल गई. प्रात: उठते ही सूर्य नमस्कार कर जल अर्पित करते. फिर दिन में जितनी बार भी घर से बाहर निकलते, सूर्य के दर्शन कर के ही कदम आगे बढ़ाते. कभी सामने वाले दरवाजे से बाहर निकलते, कभी बगीचे के पेड़ों के बीचोंबीच ताकझांक करते दिखाई देते तो कभी पीछे वाली खिड़की से सूर्य को प्रणाम कर के वहीं से बाहर कूद जाते. इस तरह चुनावी भागदौड़ और व्यस्तता के बीच 15-20 दिन कैसे गुजर गए, पता ही न चला. शहर में डंडों, झंडों, झंडियों और लाउडस्पीकरों की चिल्लपौं का नजारा देखते ही बनता था.
हर रोज रात के समय अशोक नेताजी की मक्खनबाजी करने पहुंच जाता और 5-7 हजार और झटक लेता. एक दिन नेताजी शंकित मन से पूछ ही बैठे, ‘‘क्यों साले साहब, तुम्हें पूरी उम्मीद है न कि हम चुनाव जीत जाएंगे…कहीं ऐसा न हो…’’
‘‘जीजाजी, शुभशुभ बोलिए, महाराज आप की समस्त बाधाएं दूर करने के लिए दिनरात तंत्रमंत्र की समस्त दैवी शक्तियों का आह्वान कर रहे हैं. जब महाराज की सिद्ध शक्तियां अपना चमत्कार दिखाएंगी तो आप स्वयं यकीन नहीं कर पाएंगे कि आप ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को इतने अधिक वोटों से कैसे पराजित किया. फिर आप की पार्टी तो राष्ट्रीय स्तर की है, तमाम छोटेबड़े नेता और कार्यकर्ता गलीगली कूचेकूचे में पूरे जोशोखरोश के साथ चुनावी दंगल की कमान संभाले हुए हैं.’’
जिस दिन चुनावी जंग का परिणाम घोषित होना था, सुबह से ही नेताजी का दिल धकधक कर रहा था. दोपहर को अशोक के कहने पर वह मतगणना स्थल पर गए और पार्टी के छोटेमोटे नेताओं का आश्वासन पा कर लौट आए कि जीत निश्चित है. इस के बाद नेताजी कोठी की ऊपरी मंजिल के अपने कमरे में आराम करने के लिए चले गए. लेटते ही उन की आंख लग गई.
शाम 5 बजे के लगभग ढोलढमाकों का कानफोड़ू शोरशराबा सुन कर नेताजी आंखें मलते हुए उठ बैठे. सहसा उन के कानों में स्वर गूंजे… ‘‘जीत गया भई जीत गया…सूरज वाला…’’
‘वाह, सूरज प्रकाश जीत गया… खूब…बहुत खूब…’ अपनी जीत की खुशी से आश्वस्त नेताजी ने दरवाजा खोल कर जैसे ही सामने सड़क से गुजरते जुलूस को देखा तो सिर चकराने लगा, दिल बैठने लगा. उन्होंने मुश्किल से खुद को संभाला और पास से गुजर रहे नौकर को पुकारा, ‘‘अरे जीतू, यह किस का जुलूस है, कौन जीता है?’’
‘‘बाबूजी, निर्दलीय चंद्र प्रकाश चुनाव जीत गया है, वह भी पूरे 8 हजार वोटों से. उगता सूरज उसी का तो चुनाव चिह्न है. बड़े अफसोस की बात है, आप चुनाव हार गए,’’ जीतू ने हमदर्दी जताई, ‘‘आप की हार के गम में सभी गमगीन हैं, नीचे देखिए, कोठी में मातम सा छाया हुआ है.’’
‘‘अरे, मूर्ख, इतना बड़ा हादसा हो गया और मुझे किसी ने कुछ बताया ही नहीं,’’ हैरानपरेशान नेताजी बुझीबुझी आंखों से जुलूस गुजरने के बाद की उड़ती धूल को सहन नहीं कर पा रहे थे, ऊंची आवाज में बोले, ‘‘अशोक कहां है?’’
तभी उन का मुनीम रामगोपाल बरामदे में आ पहुंचा और बोला, ‘‘सेठजी, वह तो तांत्रिक के संग किसी होटल में गुलछर्रे उड़ा रहा होगा…5 लाख में से बचीखुची रकम का बंटवारा भी तो अभी करना होगा.’’
‘‘ओह, तुम्हें तो सब मालूम है… इस कमीने अशोक पर भरोसा कर के चुनाव पर तो 25-30 लाख खर्च हुए ही, ऊपर से तांत्रिक के चक्कर में 5 लाख की और चपत लग गई.’’
‘‘सेठजी, आप को कितनी बार समझाया कि इस अशोक को ज्यादा मुंह मत लगाइए, लेकिन आप नहीं माने. कहते हैं न कि ‘सारी खुदाई एक तरफ जोरू का भाई एक तरफ’.’’
‘जीत गया भई जीत गया… सूरज वाला जीत गया, जीत गया भई…’ जुलूस अब पिछली सड़क से गुजर रहा था. नेताजी ने थकीहारी आवाज में रामगोपाल से पूछा, ‘‘एक बात समझ में नहीं आई, सूर्य की परिक्रमा हम करते रहे, परंतु जीत गया चंद्र प्रकाश और वह भी ‘सूरज’ चुनाव चिह्न के सहारे…क्या मतगणना अधिकारियों के इस अन्याय के खिलाफ किसी कोर्ट में गुहार लगाई जा सकती है?’’
‘‘किसी योग्य वकील से सलाहमशविरा कर लीजिए,’’ रामगोपाल बुदबुदाया, ‘लगता है, सदमा गहरा है, सेठजी की मति मारी गई है.’