नजरें जितनी रसीली और नशीली होती हैं, उस से ज्यादा कातिल होती हैं. नाजनीनों की नायाब नजरें खंजर होती हैं, तीर और तलवार होती हैं. नजरें गोली होती हैं, पिस्तौलें और तोप होती हैं. नजर का मारा पानी तक नहीं मांगता है. नजरें कहर ढाती हैं, कयामत लाती हैं. नजरें बेसुध करती हैं, बेहोश करती हैं, मदहोश करती हैं. नजरें चोट करती हैं, नजरें कत्ल करती हैं. नजरें कयामत तक चैन नहीं लेने देती हैं. नजर से जीते हैं, तो नजर से मरते हैं.
एक शायर फरमाते हैं :
‘जीना भी आ गया मुझे, मरना भी आ गया,
पहचानने लगा हूं, तुम्हारी नजर को मैं.’
नजरों से कैसेकैसे हादसे होते हैं, तभी तो शायर सचेत करते हुए कहता है:
‘देखा न आंख भर के, किसी की तरफ कभी,
तुम को खबर नहीं, जो तुम्हारी नजर में है.’
मिर्जा गालिब को अपनी माशूका की मदभरी नजर का आधा खिंचा तीर ऐसा लगा कि वे तड़प उठे. अब उन्हीं की जबानी सुन लीजिए :
‘कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीरेनीमकश को,
ये खलिश कहां से होती, जो जिगर के पार होता.’
उधर दाग साहब का दिल उन की माशूका की नजर के तीर का शिकार हुआ, लेकिन उन का जिगर बच गया. अब जिगर अपनी माशूका से कहते हैं :
‘शिकारे तीरे नजर दिल हुआ, जिगर न हुआ,
ये बच रहा है, जरा उस की भी खबर लेना.’
एक शायर फरमाते हैं :
‘तिरछी नजरों से न देखो, आशिक दिलगीर को,
कैसे तीरंदाज हो, सीधा तो कर लो तीर को.’
एक और शायर फरमाते हैं :
‘जिस को तीरे नजर लगा हो,
एकदम वो मर गया होगा.’
नजरों से ऐसा निशाना लगता है कि किसी तीर, तलवार या खंजर की जरूरत नहीं है. सुनिए ऐसे :