उस रोज औफिस में काफी भीड़ नजर आ रही थी. मेरा पहला क्लाइंट छोटे कद का गोलमटोल सा आदमी था.

उस के चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी थी. अंदर आते ही उस ने झुक कर मुझे सलाम किया. कुरसी पर बैठने के बाद वह बोला, ‘‘बेग साहब, मेरा नाम अली मुराद है. मैं काफी अरसे से आप को तलाश कर रहा था. मुझे आप के दोस्त हमीद बिजली वालों ने भेजा है. बहुत तारीफ कर रहे थे आप की.’’

‘‘अच्छा, आप को हमीद साहब ने भेजा है. वह मेरे अच्छे दोस्त हैं. बताइए आप का क्या मामला है?’’

अली मुराद ने जवाब दिया, ‘‘मसला मेरा नहीं, मेरे दामाद फुरकान का है. वह बहुत अच्छा इंसान है. उस की अच्छाई ही उस के लिए मुसीबत बन गई.’’

‘‘कैसी मुसीबत?’’ मैं ने पूछा.

‘‘फुरकान पर कत्ल का इलजाम है. उसे 2 रोज पहले पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.’’

‘‘किस के कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया है?’’

‘‘फुरकान के मकान मालिक की बीवी रशीदा के कत्ल के इलजाम में.’’

‘‘आप पूरी बात बताइए, अली मुराद.’’

‘‘रशीदा के शौहर काजी वहीद ने फुरकान को अपने घर में किराएदार की हैसियत से रखा था. कुछ दिनों बाद उन्होंने उसे ऊपरी मंजिल पर शिफ्ट कर दिया. बाद में घर बेचने के बहाने उसे बेदखल कर दिया. जब फुरकान ने हिसाब मांगा तो उसे कत्ल के इलजाम में बंद करवा दिया.’’

‘‘ओह, बहुत अफसोसनाक बात है. आप के कहे मुताबिक 2 दिन पहले यानी 15 अक्तूबर को उसे गिरफ्तार किया गया और 16 अक्तूबर को पुलिस ने फुरकान को अदालत में पेश कर के रिमांड ले लिया होगा. मतलब इस वक्त वह पुलिस कस्टडी में है.’’ मैं ने कागज पर लिखते हुए कहा.

‘‘जी, आप ठीक कह रहे हैं.’’

‘‘अच्छा यह बताइए कौन से थाने में बंद है और हां मुझे सही तरीके से बताएं कि आप के दामाद फुरकान और काजी वहीद के बीच कैसे ताल्लुकात थे. इस मुसीबत के वक्त फुरकान के घर वाले कहां हैं?’’

उस ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘घर वालों ने उस का बायकाट कर रखा है. वे लोग फुरकान और मेरी बेटी की शादी के सख्त खिलाफ थे. शादी के मौके पर फुरकान ने खुशामद कर के उन्हें शामिल कर लिया था. शादी के बाद करीब 3 महीने मेरी बेटी असमत ससुराल में रही, पर लड़ाईझगड़े और तनाव इस हद तक बढ़ गए कि उन्हें किराए पर घर ले कर अलग होना पड़ा.’’

‘‘क्या आप की बेटी और फुरकान की लव मैरिज है?’’

‘‘जी हां.’’ उस ने धीरे से कहा.

‘‘क्या आप ने फुरकान के मांबाप को खबर की?’’

‘‘जी हां, उन्हें खबर मिल गई है, पर उन का कहना है कि जब फुरकान ने घर छोड़ा था तभी वह हमारे लिए मर गया था. हमारा उस से कोई ताल्लुक नहीं है.’’ बाद में अली मुराद मुझे फुरकान, असमत और वहीद काजी के बारे में तफसील से बताता रहा. उस का खुलासा यह था.

फुरकान ने यूनिवर्सिटी से कौमर्स में मार्स्ट्स किया था और बैकिंग लाइन जौइन कर ली थी. उस का बाप भी बैंक से रिटायर हुआ था. फुरकान का एक भाई और एक बहन और थे. फुरकान की मुलाकात असमत से अली मुराद के घर पर हुई थी. वह असमत की बड़ी बहन नादिया के साथ पढ़ता था. पहली मुलाकात में ही दोनों के बीच मोहब्बत की नींव पड़ गई थी.

जब यह बात फुरकान के मांबाप को मालूम हुई तो वे बहुत नाराज हुए. फुरकान की मां उस की शादी अपनी भतीजी से करना चाहती थी. काफी दिन तक इस बात पर बहस चलती रही. नतीजा यह निकला कि उस के मांबाप ने उस से कह दिया, ‘‘यह शादी हमारे घर में नहीं होगी. अगर तुम्हें शादी करनी है तो हमारे घर से निकल जाओ.’’

यह सारी बातें फुरकान ने अली मुराद को बताईं. फिर एक प्लान के तहत अली मुराद ने फुरकान को अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करवा दिया और मांबाप को इमोशनली ब्लैकमेल कर के यह शादी अंजाम तक पहुंचाई. पर लाख कोशिश के बाद भी वो अपने घर में 3 महीने ही रह सका.

जाते समय उस के बाप ने कहा, ‘‘तुम मेरी औलाद हो पर तुम ने हमारा मान नहीं रखा. याद रखना इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले रहेंगे पर तुम्हारी बीवी के लिए नहीं.’’

इस के बाद मायूस फुरकान बीवी को ले कर अली मुराद के घर पहुंचा और सारा माजरा कह सुनाया. अली मुराद ने कहा, ‘‘अल्लाह ने मुझे 2 बेटियां दी हैं. उन की मां पहले ही मर चुकी है. मैं तन्हा रहता हूं. तुम लोग मेरे साथ रह सकते हो.’’ फुरकान के पास कोई और रास्ता नहीं था. वह वहीं रहने लगा. अली मुराद ने उस पर घर दामाद बनने का दबाव नहीं डाला.

काजी वहीद सिर्फ नाम से काजी था, धंधा वह प्रौपर्टी डीलिंग का करता था. फुरकान ने उसे अपनी जरूरत के बारे में बताया और एक छोटे से फ्लैट की मांग की. काजी ने कहा, ‘‘छोटा फ्लैट तो नहीं है. क्या तुम किसी फैमिली के साथ रह सकते हो? सौ गज के एक घर में आप की ही तरह एक छोटी फैमिली और रहती है. उन के पास एक कमरा खाली है. तुम उन के साथ शेयर कर सकते हो. खर्च कम होगा और तन्हाई भी नहीं रहेगी.’’

जवाब में फुरकान ने कहा, ‘‘आइडिया तो अच्छा है, पर वो फैमिली किस की है?’’ इस पर काजी वहीद हंसते हुए बोला, ‘‘वो फैमिली हमारी ही है. हम मियांबीवी हैं, हमारे बच्चे नहीं हैं. क्योंकि मेरी बीवी बांझ है.’’

‘‘आप ने दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा?’’

‘‘मेरी बीवी ने तो कई बार कहा पर मेरे दिल ने ऐसा जुल्म करने की इजाजत नहीं दी. अब तो हमारी शादी को 25 साल गुजर चुके हैं.’’

फुरकान काजी की बात से प्रभावित हुआ और वह उस के साथ रहने लगा. काजी की बीवी अकसर बीमार रहती थी, इसलिए बहुत कम खाना पकाती थी. ज्यादातर खाना होटल से आता था. फुरकान और असमत के आने से  उन को भी खाने का आराम हो गया. 3 माह में आपस में इतने घुलमिल गए कि हर कोई उन्हें एक ही फैमिली का मेंबर समझता था.

फिर काजी ने फुरकान से कहा, ‘‘अगले कुछ दिनों में अगर कोई अपना घर बना ले तो बहुत फायदे में रहेगा. फुरकान तुम क्यों नहीं कोशिश करते, बहुत फायदा रहेगा.’’ फुरकान ने बेबसी से कहा, ‘‘काजी साहब, 2-4 लाख मेरे लिए सोचना भी नामुमकिन है.’’

काफी देर बहस के बाद काजी ने कहा, ‘‘अगर तुम 50-60 हजार का बंदोबस्त कर दो तो बाकी मैं मिला दूंगा. मेरी ऊपर की छत पर 2 कमरे बन जाएंगे. फिर तुम ऊपर शिफ्ट हो जाना. बाद में किसी अच्छे वकील की मदद से ऊपर की मंजिल तुम्हारे नाम कर दी जाएगी.’’

फुरकान ने सोचते हुए कहा, ‘‘कमरे के लिए मैं खर्च करूंगा पर छत तो आप की होगी.’’ इस पर काजी ने आंखों में आंसू भर के कहा, ‘‘फुरकान, मैं तुम्हें अपना बेटा समझता हूं और असमत को बेटी. मैं अपने बेटे से छत के पैसे कैसे ले सकता हूं. बस तुम लोग मांबाप की तरह हमारा खयाल रखना. इस के लिए कोई एग्रीमेंट नहीं होगा. बस जुबानी मुहायदा होगा.’’

‘‘पर मैं आप को रकम एक साथ नहीं दे सकता.’’

दरअसल, फुरकान बैंक से लोन लेना चाहता था. पर पहले ही वह बाइक के लिए लोन ले चुका था. जिस की एक किस्त बाकी थी. वह सोच रहा था कि यह किस्त पूरी होने के बाद नया लोन ले कर काजी को दे देगा और फिर ऊपर की मंजिल पर 2 कमरे बन जाएंगे. उस के दिल में भी लालच आ गया था कि एक लाख में उस के सिर पर छत आ जाएगी.

उस ने काजी से कहा, ‘‘मैं 2 महीने में आप को 75 हजार दे सकता हूं.’’ काजी ने सोचते हुए कहा, ‘‘मगर 2 माह के अंदर तो बिल्डिंग मैटेरियल के दाम बहुत ऊपर चढ़ जाएंगे. सरिया, सीमेंट रेत के दाम डबल हो जाएंगे. खैर, चलो तुम्हारे लिए मैं अपनी पहचान के सप्लायर्स से सामान अभी बुक कर लेता हूं. पैसे 2 माह बाद माल उठाने पर देंगे.’’

दोनों के बीच में सारे मामलात जुबानी तय हो गए. क्योंकि फुरकान के दिल में काजी के लिए बाप जैसी मोहब्बत थी. अप्रैल में यह मामला तय हुआ. जून के पहले हफ्ते में फुरकान ने बैंक से एक लाख का कर्जा उठाया. 75 हजार उस ने वहीद काजी को दे दिए, बाकी के 25 हजार घर की मेंटनेंस और लकड़ी के काम पर लगा दिए. इस तरह एक लाख में घर बन गया. जुलाई में वो लोग ऊपर के हिस्से में शिफ्ट हो गए.

मियांबीवी जीजान से काजी और उस की बीवी की खिदमत करते, खाना खिलाते और खुश रहते. 2-3 महीने बड़े आराम से गुजरे. वक्त गुजरता रहा. 8-10 महीने बाद काजी जो फुरकान के लिए एक फरिश्ता था, शैतान के रूप में सामने आ गया. अपनी मक्कारी और चालाकी से पहले उस ने फुरकान को घर से बेदखल किया और फिर अपनी बीवी के कत्ल के इलजाम में फंसा दिया.

रिमांड की मुद्दत पूरी होने के बाद पुलिस ने अदालत में चालान पेश कर दिया. मैं ने फुरकान के वकील की हैसियत से अपना वकालतनामा अदालत में पेश कर दिया. मैं ने अपने मुवक्किल के पक्ष में जमानत की अपील करते हुए कहा, ‘‘जनाब, मेरा मुवक्किल एक शरीफ और सीधा सच्चा इंसान है. वह काजी की मक्कारी को समझ नहीं सका और उस की मीठीमीठी बातों के झांसे में आ गया.

‘‘एक लाख दे कर 2 कमरे मिलने पर वह बेहद खुश था, पर काजी ने अपनी मक्कारी और साजिश से उसे कटघरे में खड़ा कर दिया. उस का कसूर बस इतना है कि उस ने काजी की बातों का भरोसा किया. काजी से उसे जज्बात की मार मारी थी, जिस की वजह से वह बिना किसी लिखापढ़ी के इतना बड़ा सौदा कर बैठा.’’

विपक्ष के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मुलजिम पढ़ालिखा समझदार आदमी है. बैंक में काम करता है. वह इतना बेवकूफ हरगिज नहीं हो सकता कि आंख बंद कर के किसी के बहकावे में एक लाख इनवेस्ट कर दे. यह बेहद चालाक आदमी है. अपनी मजबूरी का रोना रो कर काजी का किराएदार बना. फिर बीमार बीवी की खिदमत कर के उन के दिल में जगह बना ली. काफी दिनतक वह उन के घर में रहा, जब उस का मकसद पूरा हो गया तो उस ने काजी वहीद साहब से घर छोड़ कर जाने की बात की और साथ ही एक लाख रुपए की डिमांड भी की.

‘‘जब काजी ने कहा कि घर पर उस का एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ है, तब वह गुस्से से पागल हो गया. दोनों के बीच काफी झगड़ा हुआ. तभी मुलजिम ने उन्हें खतरनाक अंजाम भुगतने की धमकी दी और 15 अक्तूबर की शाम को धमकी पूरी कर दिखाई.

‘‘मौका पा कर वह ऐसे वक्त पर मकतूला के घर में घुसा, जब उस का शौहर नहीं था. उस ने अलमारी से एक लाख रुपए चोरी किए. मकतूला के विरोध करने पर उस ने उसे गला घोंट कर मार दिया. जब वह घर से फरार हो रहा था, तभी काजी वहां पहुंच गया.

‘‘उस ने उसे जाते देख लिया, काजी फौरन घर में घुसा. हकीकत किसी बम की तरह उस के सिर पर फटी. उस की बीवी बेडरूम में मुर्दा पड़ी थी. उसे गला घोंट कर मार दिया गया था और खुली अलमारी से एक लाख रुपए गायब थे.’’

मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘योर औनर, विपक्ष के वकील सच्चाई को तोड़मरोड़ कर सामने रख रहे हैं. ना तो मेरे मुवक्किल ने उस की बीवी का कत्ल किया और ना ही उस की अलमारी से एक लाख रुपए चुराए.

‘‘मकतूल के शौहर ने मक्कारी और चालबाजी से मुलजिम के एक लाख रुपए अपने घर की ऊपरी मंजिल बनवाने में खर्च करवाए. यह रकम मुलजिम ने बैंक से कर्ज ली थी. जब काजी का मकसद पूरा हो गया तो उस ने एक खूबसूरत साजिश कर के मुलजिम को घर छोड़ने पर राजी कर लिया और फिर अपनी बीवी के कत्ल में फंसा कर पुलिस के हवाले कर दिया.’’

दोनों तरफ से बहस और दलीलें चलती रहीं. जज ने जमानत रद्द करते हुए फुरकान को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. अगली तारीख 15 दिन बाद की थी. मुझे अदालत में फुरकान के घर के लोग नजर नहीं आए.

अली मुराद जीजान से दामाद की मदद कर रहा था. मैं ने अली मुराद से कहा, ‘‘अली मुराद, केस बहुत उलझा हुआ है. फुरकान को तब तक रिहाई नहीं मिल सकती जब तक कि ऊपरी मंजिल बनाने में काजी वहीद झूठा साबित न हो जाए. इस के लिए कई लोगों से तुम्हें अंदर की हकीकत मालूमात करनी पड़ेगी.’’

मैं ने उसे कुछ लोगों के नाम बताए और काम बता दिए. अली मुराद ने मुझ से वादा किया कि वह जरूरी जानकारी ले कर आएगा.

अगली पेशी पर जज ने मुलजिम का जुर्म पढ़ कर सुनाया. मुलजिम ने जुर्म से साफ इनकार कर दिया था. विपक्ष का वकील तरहतरह के सवाल करता रहा, पर फुरकान अपनी बात पर डटा रहा कि वह बेकसूर है. अपनी बारी पर मैं ने जिरह की शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘तुम जनवरी से ले कर मार्च तक 3 महीने मकतूला रशीदा के घर किराएदार की हैसियत से रहे. उस के बाद क्या हुआ?’’

‘‘जी हां, यह सही है. हम 3 महीने एक साथ एक परिवार की तरह रहे. मार्च में वहीद काजी ने कुछ रकम खर्च कर के छत पर छोटा सा घर बनाने की औफर दी. मैं ने बैंक से लोन ले कर उस के औफर पर अमल कर डाला.’’

‘‘तुम ने बैंक से कितना कर्ज लिया था?’’

‘‘मैं ने बैंक  से एक लाख कर्ज लिया था. 75 हजार वहीद काजी को 2 कमरे बनाने को दिए. 25 हजार वुडवर्क में खर्च हुए. मुझे 2 कमरे पूरे एक लाख रुपए में पडे़ थे.’’

‘‘तुम कौमर्स पढ़ेलिखे आदमी हो. बैंक में काम करते हो, उस के बावजूद तुम ने इतनी बड़ी डील बिना किसी लिखतपढ़त के कैसे कर ली?’’

‘‘आप सही कह रहे हैं, पर उस वक्त काजी की मोहब्बत भरी बातों ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था. मैं उस के फ्रौड को समझ नहीं सका और बिना कागजी काररवाई के एक लाख रुपया खर्च कर दिया.’’

उस जमाने में एक लाख रुपए बहुत बड़ी रकम होती थी. मैं वहीद काजी की चालाकी और मक्कारी जज के सामने लाना चाहता था. इसलिए मैं ने अपने सवालों का रुख बदल दिया.

‘‘तुम्हें पहली बार काजी के फ्रौड का अहसास कब हुआ?’’

‘‘सितंबर के आखिर में काजी ने मुझ से कहा कि मकान खरीदने के लिए एक पार्टी मिल गई है, जो 6 लाख रुपए देने को तैयार है. काजी ने मकान पर 2 लाख खर्च किए थे और मैं ने एक लाख. उस ने मुझे 2 लाख देने की औफर दी और मुझे उस की बात माननी पड़ी. क्योंकि ऊपरी मंजिल के मालिकाना हक के कागजात मेरे पास नहीं थे.

‘‘2 कमरों के बारे में काजी ने जितने वादे किए थे, सब जुबानी थे. जब भी मैं लिखित की बात करता वह बहाने बना कर टाल देता. इसलिए उस के औफर को मानने के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था.’’

मैं ने देखा जज बहुत ध्यान से सारी बात सुन रहा था और नोट भी करता जा रहा था. मैं ने कहा, ‘‘काजी ने मकान की बिक्री की स्कीम के बारे में क्या कहा?’’

‘‘उस ने मुझे सलाह दी कि मैं कुछ अरसे के लिए अपनी ससुराल में शिफ्ट हो जाऊं. मकान बिकते ही वो मुझे 2 लाख दे देगा, जिस से मैं नए घर का बंदोबस्त कर सकता था.’’

विपक्ष का वकील काफी देर से चुप था. उस ने ऐतराज उठाया, ‘‘अदालत में रशीदा मर्डर केस की सुनवाई हो रही है. मकान की नहीं.’’

मैं ने कहा, ‘‘जनाबे आली, रशीदा मर्डर केस मकान और एक लाख रुपए से इस तरह जुड़ा हुआ है कि उसे अलग नहीं किया जा सकता. यहीं से मर्डर केस का राज खुलेगा.’’ जज ने ऐतराज खारिज कर दिया और तेज लहजे में कहा, ‘‘जिरह जारी रखी जाए.’’

मैं ने आगे पूछा, ‘‘उस के बाद काजी ने क्या कहा?’’

‘‘एक बार फिर काजी ने मुझे धोखा देना चाहा कि हम एक बड़ा मकान खरीद लेंगे और फिर साथ रहेंगे. पर अब मुझे अक्ल आ चुकी थी. मैं ने साफ इनकार कर दिया. अक्तूबर के पहले हफ्ते में मैं अपनी ससुराल में शिफ्ट हो गया. उस के बाद 10-12 दिन तक मैं लगभग रोज ही अपनी रकम की मांग करता रहा. पर काजी टस से मस नहीं हुआ. हर बार कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता.

‘‘14 अक्तूबर की शाम मेरी काजी से तेज झड़प हुई. मैं ने उस से 2 लाख की रकम की डिमांड की. काजी ने मुझे पुराने अहसान याद दिलाए और एक तकरीर कर डाली. आखिर तंग आ कर मैं ने कहा, ‘मुझे 2 लाख नहीं चाहिए, आप मेरे पैसे ही लौटा दीजिए.’

‘‘उस ने गुस्से से कहा कि जब तुम खुद अपना नुकसान कर रहे हो और एक लाख छोड़ रहे हो तो कल शाम घर आ जाना. मैं तुम्हें पैसे लौटा दूंगा. आज मेरे पास मेरे मकान का एक लाख रुपया बयाना आने वाला है. क्योंकि मकान का सेल एग्रीमेंट हो जाएगा. कल शाम 8 बजे तुम आ जाओ, तुम्हारे पैसे मैं तुम्हारे मुंह पर दे मारूंगा.’’

‘‘तो क्या दूसरे दिन तुम्हें तुम्हारे पैसे मिल गए थे?’’

‘‘नहीं जनाब, जब 15 अक्तूबर की शाम 8 बजे मैं उस के घर पहुंचा तो वह घर पर नहीं मिला. देर तक घंटी बजाने, दरवाजा पीटने और पुकारने पर भी कोई बाहर नहीं आया. मैं मायूस हो कर वहां से लौट आया.’’

‘‘क्या घंटी बजाते या वापसी पर तुम्हें किसी ने देखा था?’’

‘‘नहीं जनाब, दरवाजा आड़ में है. किसी की नजर नहीं पड़ सकती थी. मैं वहां से वहीद काजी के औफिस गया, लेकिन वहां भी ताला पड़ा था. मैं ने सारा हाल अपने ससुर को सुना दिया. सुन कर वह भी परेशान हुए. हम ने तय किया कि दूसरे दिन थाने जा कर काजी के फ्रौड की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे पर बदकिस्मती से 15 अक्तूबर की रात 11 बजे पुलिस ने मुझे रशीदा के कत्ल और एक लाख रुपए की चोरी के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया.’’

इसी के साथ अदालत खत्म हो गई और पेशी की अगली तारीख मिल गई.

अगले 2-3 महीनों में इस्तेगासा की तरफ से 5 गवाहों को अदालत में पेश किया गया, जो वहीद काजी के इलाके के थे. इन गवाहों ने काजी की मर्जी के मुताबिक बयान दिए जो, फुरकान को मुजरिम ठहराते थे. ऐसी कोई खास बात नहीं हुई, जो बताई जाए. इस बीच अली मुराद मुझ से बराबर मिलता रहा और मेरी मांगी हुई जानकारी जुटाता रहा. उस का बड़ा दामाद हैदराबाद से मिलने आया और फुरकान के बाइज्जत बरी होने की तरकीबे बताता रहा.

मंजर इसी अदालत का था. आज की पेशी में काजी वहीद गवाह की हैसियत से कटघरे में खड़ा था. उस ने वही बयान दिया जो पहले दिया था. उस का खुलासा उस के वकील के सवालों से हो जाएगा.

वकील ने पहला सवाल पूछा, ‘‘काजी साहब, आप की मुलजिम के बारे में क्या राय है?’’

‘‘खुदगर्ज, नालायक, अहसान फरामोश इंसान है. मैं ने उस के साथ इतनी नेकी की. फिर भी उस ने मेरी बीवी का कत्ल कर दिया.’’ इस्तेगासा के वकील ने बड़ी चालाकी से जिरह को एक खास रास्ते पे डालते हुए पूछा, ‘‘मुलजिम का दावा है कि उस ने एक लाख रुपए आप की छत पर 2 कमरे बनाने में खर्च किए जो उस ने बैंक से लोन लिए थे. क्या यह सच है?’’

‘‘यह सही है कि उस ने बैंक से एक लाख रुपए लोन लिया था, पर मेरी छत पर कमरे बनाने में एक पैसा भी खर्च नहीं किया. घर की ऊपरी मंजिल मैं ने अपनी कमाई से बनवाई. यह शख्स झूठ बोल रहा है.’’

‘‘क्या आप मुल्जिम का झूठ साबित कर सकते हैं?’’

‘‘हां, मैं ने जो रेत, सीमेंट, सरिया की रसीदें अदालत में पेश की हैं, वह मेरे नाम पर है और मार्च महीने की हैं. जबकि मुल्जिम को लोन 25 मई को मिला था. वह कैसे यह सामान खरीद सकता था? आप बेकार की बातें छोड़ कर मेरी बीवी के कातिल को उस के अंजाम तक पहुंचाएं.’’

वकील इस्तेगासा ने अपनी फाइल में से कुछ कागजात निकाल कर जज की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘जनाबे आली काजी वहीद ने ऊपरी मंजिल बनाने के लिए जो भी सामान खरीदा था, यह उस की रसीदें हैं जो उसी के नाम पर मार्च में काटी गई हैं. जबकि इस में मुल्जिम का बैंक रिकार्ड है, जिस में उसे एक लाख का लोन 25 मई को दिया गया. इस से साबित होता है कि उस ने घर बनाने में एक भी पैसा खर्च नहीं किया. उस का दावा झूठा है. यह सब एक साजिश है.’’

जज ने कागज ले कर गौर से देखना शुरू कर दिया. मैं सारी बातें ठंडे दिमाग से सुन रहा था. मेरे पास जवाबी हमला करने के लिए काफी मसाला था. जज ने कहा, ‘‘वकील साहब, जिरह जारी रखें.’’

वकील ने काजी से पूछा, ‘‘काजी साहब, मुल्जिम का दावा है कि कत्ल के एक दिन पहले 14 अक्तूबर को वह आप से आप के औफिस में मिला था. आप ने उस से वादा किया था कि आप उसे एक लाख रुपया 15 अक्तूबर की शाम को अदा कर देंगे. यह क्या किस्सा है?’’

‘‘आप ने खुद किस्सा कह कर बात साफ कर दी. यह सरासर मनघडंत कहानी है. वह सरासर झूठ बोल रहा है. घर की तलाश में वह मेरे औफिस में आता रहता था. 14 अक्तूबर की शाम भी वह आया था. मैं ने उस से कहा था जल्द ही अच्छा घर बताऊंगा.

‘‘बातोंबातों में मैं ने एक लाख का जिक्र किया था कि पार्टी ने एक लाख रुपए की पेमेंट कर के सेल एग्रीमेंट बनवा लिया है, जिस के अनुसार पार्टी एक माह के अंदर बाकी के 5 लाख रुपए अदा कर के मेरे घर का कब्जा ले लेगी. इस बीच बिक्री के पूरे दस्तावेज तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘यानी आप ने मुल्जिम को यह बता दिया था कि आप के घर में एक लाख की रकम रखी है?’’ वकील इस्तेगासा ने चालाकी से पूछा.

‘‘जी हां, बिलकुल उसे यह बात खबर हो गई थी. अगले दिन ही शैतान ने मेरे घर पर धावा बोल दिया और ऐसा वक्त चुना जब मैं घर पर नहीं था. उसे मालूम था मेरी बीवी रशीदा कमजोर और बीमार है. उस ने इस का फायदा उठाते हुए मेरे घर से एक लाख उड़ा लिए और जब रशीदा ने उस का विरोध किया तो उस का गला घोंट कर मार डाला.

‘‘इत्तफाक से मैं उस दिन जल्दी घर आ गया और मैं ने उसे तेजी से मेरे घर से जाते हुए देख लिया. मैं समझा अपना कोई बचा हुआ सामान लेने आया होगा, पर जब मैं बेडरूम में दाखिल हुआ, मैं ने अपनी बीवी को मुर्दा हालत में पड़े देखा.’’ काजी ने रोनी आवाज में कहा.

वकील इस्तेगासा ने अपनी जिरह खत्म करते हुए कहा, ‘‘योर औनर, यह इंसान नहीं वहशी दरिंदा है. इसे जितनी सख्त सजा दी जाए कम है.’’

अपनी बारी पर जज से इजाजत ले कर मैं बिटनेस बौक्स के करीब पहुंच गया.

‘‘काजी साहब, मैं आप से सादा सा सवाल पूछूंगा. सच बताइए क्या आप वाकई अपना मकान बेचना चाहते थे?’’ मैं ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘आप का क्या मतलब है? अगर मुझे मकान बेचना ना होता तो मैं पार्टी से एक लाख रुपए वसूल कर के सेल एग्रीमेंट पर दस्तखत क्यों करता?’’ उस ने गुस्से से कहा.

‘‘इस सेल एग्रीमेंट के अनुसार पार्टी को एक माह के अंदर 5 लाख रुपए अदा कर के मकान का कब्जा ले लेना था. क्या आप ने मकान पार्टी के हवाले कर दिया है?’’

‘‘नहीं, मैं अभी तक अपने ही मकान में रह रहा हूं.’’

‘‘एग्रीमेंट के मुताबिक इस शर्त पर आप अमल नहीं करते तो आप को पार्टी को डील कैंसल कर के 2 लाख देने पड़ते क्या आप ने 2 लाख अदा किए?’’

‘‘दुनिया में सब इंसान मुल्जिम की तरह फरेबी और मतलबी नहीं होते. मेरी बीवी के कत्ल और एक लाख की चोरी के बाद पार्टी ने मुझ पर कोई दबाव नहीं डाला और कहा कि अगर मैं घर ना बेचना चाहूं तो उन के एक लाख रुपए सहूलियत से वापस कर दूं. और मैं ने उधार ले कर रकम लौटा दी. इस तरह मामला सेटल हो गया.’’

‘‘इस तरह के मामलात इतनी आसानी से सेटल नहीं होते. सेल एग्रीमेंट की एक नकल जिस में आप ने एक लाख एडवांस लिए थे, अदालत में पेश करते तो यह एक पक्का सबूत होता.’’

‘‘अगर अदालत का हुक्म होगा तो मैं एग्रीमेंट की कौपी ले आऊंगा.’’

‘‘और अगर पार्टी की गवाही की जरूरत पड़ी तो?’’

‘‘तो मैं पार्टी को भी अदालत में ला सकता हूं.’’

‘‘क्या मैं इस पार्टी का नामपता जान सकता हूं?’’

‘‘मैं आप को कोई भी जवाब देने का पाबंद नहीं हूं. अगर अदालत मुझ से कहेगी तो बता दूंगा.’’

‘‘काजी साहब, आप अदालत में ना तो सेल एग्रीमेंट की कौपी पेश कर सकते हैं और ना पार्टी को हाजिर कर सकते हैं. यह बिक्री सिर्फ एक साजिशी ड्रामा था जो आप ने मेरे क्लाइंट को फंसाने के लिए रचा था. हकीकत तो यह है, काजी साहब, आप इस मकान को बेचने का हक ही नहीं रखते. फिर कहां की पार्टी और कहां का सेल एग्रीमेंट?’’

काजी का चेहरा पीला पड़ गया. वह हकलाया, ‘‘यह…यह… आप क्या कह रहे हैं?’’

मैं ने तेज लहजे में कहा, ‘‘मैं हकीकत बयान कर रहा हूं काजी साहब. आप जिस मकान में रह रहे हैं, उस का असली मालिक कबीर वारसी है, जो बदकिसमती से आप जैसे धोखेबाज आदमी का रिश्ते में साला है. कबीर वारसी ने यह मकान अपनी बहन मकतूला रशीदा को रहने के लिए दिया था. फिर अचानक कबीर वारसी की मौत हो गई. क्या मैं गलत कह रहा हूं?’’

काजी के गुब्बारे की पूरी हवा निकल चुकी थी. मेरे सच ने उसे हिला कर रख दिया था. यह सब जानकारी मुझे अली मुराद की मेहनत से मिली थी. काजी की बदलती हुई हालत जज और सारे लोगों से छिपी नहीं रह सकी. उस ने संभलने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘कबीर वारसी, ने अपनी मौत से पहले मकान अपनी बहन यानी मेरी बीवी रशीदा के नाम कर दिया था.’’

‘‘और आप की कोशिश यह थी कि रशीदा अपनी मौत से पहले यह मकान आप के नाम कर दे. जब आप की बीवी ने आप की बात नहीं मानी, आप की सारी कोशिशें बेकार गई तो आप ने क्लाइंट को कुर्बानी का बकरा बना कर बीवी का पत्ता साफ कर दिया?’’

‘‘औब्जेक्शन योर औनर. वकील साहब मेरे क्लाइंट पर संगीन इलजाम लगा रहे हैं जो गलत है.’’

जज जो बहुत ही ध्यान से जिरह सुन रहा था, चौक उठा और मुझ से बोला, ‘‘बेग साहब, आप इस्तेगासा के ऐतराज पर क्या कहेंगे?’’

‘‘जनाबे आली, मैं आप को यकीन दिलाता हूं जो संगीन इलजाम मैं ने काजी वहीद पर लगाया है, मैं उसे अदालत में साबित कर के दिखाऊंगा.’’

जज ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘जिरह जारी रखी जाए.’’

‘‘योर औनर, मैं इस केस के जांच अधिकारी से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं.’’ जांच औफिसर को विटनेस बौक्स में बुलाया गया. मैं ने पूछा, ‘‘आईओ साहब, आप ने रिपोर्ट तो बहुत ऐहतियात से तैयार की होगी. मैं कुछ सवाल पूछूंगा, उस का जवाब आप हां या ना में देंगे. मकतूला रशीदा की मौत 15 अक्तूबर की रात 7 से 9 बजे के बीच हुई थी?’’

‘‘जी हां.’’ आईओ ने जवाब दिया तो मैं ने पूछा, ‘‘उसे गला घोंट कर मारा गया था?’’

‘‘यस.’’

‘‘मकतूला की गरदन पर कातिल की उंगलियों के निशान नहीं मिले, जिस से यह सोचा गया कि कत्ल के वक्त कातिल ने दस्ताने पहन रखे थे?’’

‘‘यस.’’ आईओ का जवाब आया.

‘‘मकतूला की लाश की डाक्टरी जांच से पता चला कि जिस आदमी ने रशीदा का गला घोंटा था, उस ने अपने दाएं हाथ की 2 अंगुलियों में (रिंग फिंगर और मिडिल फिंगर में) हैवी अंगूठियां पहन रखी थीं. अंगुलियों के दबाव के साथ अंगूठियों के दबाव से बनने वाले निशानात मकतूला की गर्दन पर पाए गए थे?’’

‘‘जी हां.’’ आईओ ने कहा.

अंगूठियों के जिक्र पर काजी वहीद ने बेसाख्ता अपने हाथों की तरफ देखा. उस की यह हरकत मुझ से छिपी नहीं रह सकी. मैं ने जांच अधिकारी की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘आईओ साहब, कत्ल की रात लगभग 11 बजे जब आप ने मुल्जिम फुरकान को उस की ससुराल से गिरफ्तार किया तो क्या उस के दाएं हाथ की रिंग फिंगर और मिडिल फिंगर में आप को अंगूठियां नजर आई थीं.’’

‘‘नो.’’ आईओ ने झटके से कहा.

मैं ने एकदम काजी वहीद की तरफ मुंह कर के कहा, ‘‘काजी वहीद, तुम्हारी अंगूठियां कहां हैं?’’

‘‘म…म… मेरी अंगूठियां… मैं ने तो अंगूठियां नहीं पहनी थीं… आप किन अंगूठियों की बात कर रहे हैं?’’

‘‘वह अंगूठियां जो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पहले तुम्हारे दाएं हाथ की 2 अंगुलियों में मौजूद थीं और उस वक्त भी मौजूद थी, जब तुम ने अपने हाथों पर दस्ताने चढ़ा कर अपनी बीवी का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतारा था, जिन के निशान तुम्हारी अंगुलियों पर अभी भी मौजूद हैं.’’

काजी बौखला कर बोला, ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं, बकवास कर रहे हैं.’’

‘‘काजी, मैं तुम्हारे जानने वालों में से 10 ऐसे लोगों को गवाही के लिए अदालत में ला सकता हूं जिन्होंने हादसे से पहले कई सालों से तुम्हारी अंगुलियों में चांदी की 2 हैवी अंगूठियां देखी हैं. जिन में से एक अंगूठी में 15 कैरेट का फिरोजा और दूसरी में यमन का अकीक जड़ा हुआ था.’’ मैं ने ड्रामाई अंदाज में अपनी बात खत्म की. और इसी के साथ काजी के हौसले के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी. ‘‘इन बैठे हुए गवाहों में ही 8-10 लोग अंगूठियों की गवाही देने को मिल जाएंगे.’’

इधर मेरी बात खत्म हुई, उधर काजी ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया. यह मेरे इस हमले का नतीजा था जो मैं ने अंगूठियों के गवाहों के लिए कहा था. अगले ही पल वह धड़ाम से कटघरे के फर्श पर ढेर हो गया.

पिछली पेशी पर मेरे कड़े सवालात के नतीजे में काजी वहीद के गिरने ने उस का जुर्म साबित कर दिया. अदालत के हुक्म पर जब उसे पुलिस के हवाले किया गया तो उस ने इकबाले जुर्म कर लिया.

काजी की बीवी रशीदा बहुत अच्छी औरत थी. वह फुरकान को बेटा ही समझती थी. जब काजी ने फुरकान के साथ एक लाख का फ्रौड किया तो वह सख्त गुस्सा हुई. उस ने काजी को धमकी दी थी कि अगर उस ने फुरकान की रकम वापस नहीं की तो वह उस के खिलाफ फुरकान के हक में गवाह बन जाएगी.

काजी पहले से ही अपनी बीवी की बीमारी से बहुत तंग था और उसे ठिकाने लगाने की तरकीबे सोच रहा था. ताकि मकान पर उस का अकेले कब्जा हो जाए. रशीदा काजी की नीयत को समझ गई थी. वह अपनी जिंदगी  में किसी भी कीमत पर मकान काजी के नाम करने को राजी नहीं हुई तो काजी ने फुरकान को फंसा कर एक तीर से 2 शिकार करने का मंसूबा बना डाला.

काजी ने 15 अक्तूबर की शाम फुरकान को अपने घर बुलाया ताकि हादसे के दिन उस का वहां आना पक्का हो जाए. वह फुरकान के आने से पहले ही अपनी बीवी को गला घोंट कर मार चुका था और खुद घर के अंदर छिपा बैठा था. उस ने घर को अंदर से लौक कर दिया था ताकि फुरकान यह समझे कि घर के अंदर कोई नहीं है और वह मायूस हो कर वापस लौट जाए.

यह बताने की जरूरत नहीं है कि काजी के इकरारे जुर्म के बाद अदालत ने मेरे क्लाइंट फुरकान को बाइज्जत बरी कर दिया. साथ ही उसे एक लाख देने का भी हुक्म दिया. काजी वहीद ने एक टेढ़ी चाल चली थी, पर वह बुरे अंजाम से बच नहीं सका.

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन    

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