नी पिएगी?’’ अनंत ने रूही से पूछा.
ट्रेन शोर के साथ दौड़ती जा रही थी. रूही अपने 8 महीने के पेट के साथ निढाल दिख रही थी.
अप्रैल का आखिरी हफ्ता, गरम हवा के थपेड़े और ट्रेन में बैठे पसीने की मार से तरबतर लोग. रिजर्र्वेशन के बावजूद डब्बा दिन में पैसेंजर्स से ठसाठस भरा था.
पटना की ओर रुख था अनंत और रूही का. अनंत अपनी बहन रूही को डिलिवरी के लिए मायके ले जा रहा था. यह सबकुछ आखिरी वक्त में तय हुआ, वरना ससुराल वाले रूही की डिलिवरी अपने पास भोपाल में ही कराना चाहते थे. दरअसल, ऐन वक्त पर रूही की ननद के बेटे का गिर कर हाथ टूट जाना, ननद का नौकरी में होना, उस की सास का अपनी बेटी के पास चले जाना आदि तय कार्यक्रम में हेरफेर का कारण बने.
ट्रेन बढ़ती जा रही थी, हां, यात्री उस से कहीं ज्यादा स्पीड में डब्बे में आते जा रहे थे. गरमी की छुट्टी भी एक वजह थी यात्रियों की अधिकता की. लोग रूही की स्थिति देख आपस में चिपक कर बैठे थे. दोपहर की गरमी से परेशान रूही बारबार पानी मांग रही थी. खिड़की बंद करने के बावजूद ट्रेन की ढीली खिड़कियां ऊपर की ओर चढ़ जातीं और बाहर की बहुत ही गरम हवा अंदर आ कर मुंह सुखा जाती. खीरे वाले ने इसी बीच उपस्थिति दर्ज कराई तो कई पैंसेंजरों की सूखी जीभें तर हुईं.
यात्रियों के सिर के ऊपर पंखा चल रहा था या उन पर हंस रहा था, यह जानने के लिए बारबार वे पंखे की ओर देखते और अपने पास मौजूद अखबार या गमछे को हिलाहिला कर हवा को महसूस करते. चल तो रहा था पंखा मगर सिर्फ तसल्ली के लिए, बहुत ही धीमेधीमे.
अगले स्टेशन पर पानी के लिए अनंत उतरा. खाली सीट देखते ही नए आए सज्जन वहां बैठने लगे. अपने में ही सिमटी रूही ने अब मुंह खोला, ‘‘मेरा भाई है यहां, पानी लेने गया है.’’
‘‘जब आएगा देखा जाएगा, बहनजी.’’
‘‘यह सीट रिजर्व है, हमारी है.’’
‘‘अरे बहनजी, इतनी भीड़ में कहां कोई रिजर्व. रात में सोते वक्त ही अब खाली होगी. उस से पहले नहीं.’’
सामने की बर्थ पर रीना बैठी थी. वह रूही को देखे जा रही थी. उस की बर्थ पर भी नए आए यात्रियों की जोरआजमाइश कम नहीं थी.
रीना की बर्थ ऊपर की थी. उस पर 3 लोग आसन जमाए थे. मिडिल बर्थ खोली नहीं जा सकी थी, वरना वह भी… नीचे वाली बर्थ उस की मां की थी. उस पर भी 5 लोग बैठे थे और छठे के लिए रहरह कर गुंजाइश बनाने की कोशिश जारी थी.
रूही की स्थिति पर मन ही मन व्यथित होती हुई रीना उस के मामले में खुद को दखल देने से नहीं रोक पाई. उस सज्जननुमा दुर्जन से पंगा लेते हुए रूही के शब्दों को आगे बढ़ाते बोली, ‘‘इन का भाई अभी आता ही होगा, क्यों परेशान कर रहे हैं इन्हें, इन को बहुत तकलीफ है, दिखता नहीं?’’
‘‘तकलीफ है तो एसी क्लास का टिकट क्यों नहीं लिया?’’ सज्जन अपनी सज्जनता छोड़ते जा रहे थे.
रीना सोच में पड़ गई. कैसेकैसे लोग होते हैं. अभी वह कुछ बोलती, इस से पहले ही वे सज्जन फिर बोल पड़े, ‘‘और आप कौन होती हैं बीच में बोलने वाली?’’
रीना के दिमाग में कई शोर बज उठे. भाईभतीजावाद के इस जमाने में सब को अपने में ही मरनेखपने दो. एक तो आप किसी को परेशान देख आगे बढ़ जाओ क्योंकि सभी को यही स्वाभाविक लगता है, दूसरे आप किस के कौन से भाईभतीजा हो, इस का प्रमाण दो. बिना किसी रिश्ते के आप किसी के लिए खड़े होंगे, यह तो हो ही नहीं सकता न. रूही का उस से पीछा छुड़ाने को रीना कह पड़ी, ‘‘यह मेरी ननद है, सम झे.’’
रूही ने रीना को आश्चर्य से देखा. और उन सज्जन के सीट से हट जाने पर मुसीबत से मुक्ति का आनंदलाभ लेती वह भाई अनंत का इंतजार करने लगी. रीना के प्रति उस ने एक छोटा सा धन्यवाद भी नहीं दिया, रीना ने उम्मीद भी नहीं की.
अनंत पानी और नाश्ता ले कर रूही के पास आया और सीट पर बैठ गया. रूही भाई से अपने साथ हुई घटना का ज्योंज्यों जिक्र करती, वह रीना की ओर देखदेख कर जाने क्याक्या सोचता. इतने में एक वृद्धा ने अनंत से अपना भारी सूटकेस बर्थ के नीचे ढकेलने का आग्रह किया. रीना को काफी आश्चर्य हुआ कि अनंत और रूही दोनों ही ऐसे बैठे रहे जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो. रीना ने उठ कर वृद्धा के कहेनुसार सूटकेस को सीट के नीचे सरका दिया.
अब शाम होने को आई थी. लोगबाग, जो अपनी गोलाईभर की सीट को जन्मजन्मांतर का कब्जा सम झ बैठे थे, आने वाले स्टेशनों पर उतरते चले गए. ट्रेन का डब्बा अब कुछ सांस लेने लायक हो गया था.
रीना का 3 साल का बेटा टीटो सो कर उठ चुका था और अपनी मासूम शरारतों से सहयात्रियों का ध्यान खींच रहा था. वह कई बार दौड़दौड़ कर अनंत और रूही के पास भी गया. वे दोनों नाश्ता करने में व्यस्त थे. रीना के बच्चे को भी अनदेखा करते रहे.
अब तक रीना की मां मुखर हो चुकी थीं. उन्होंने अनंत से पूछा, ‘‘इन के पति क्या करते हैं?’’
‘‘सौफ्टवेयर इंजीनियर हैं,’’ अनंत ने न चाहते हुए भी सब के सामने जवाब देने की मजबूरी के चलते कहा.
रूही की तरफ देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘पहला है?’’
‘‘जी,’’ शरमा कर रूही ने जवाब दिया तो रीना की आंखें अनजाने ही नम होने लगीं. शायद कोई पिघलता सा एहसास था, जिस ने उस का आंचल पकड़ कर खींचा था.
रूही ने स्त्रीसुलभ जिज्ञासावश रीना की ओर देख पूछ लिया, ‘‘भैया क्या करते हैं?’’
रीना की मां इस सवाल के लिए जैसे तैयार ही बैठी थीं. दर्द था, अपराधबोध था, या बेटी के सामने अपना दिल खोलना चाहती थीं जो अब तक हो न सका था, कहा, ‘‘कहां रहे वे. विदेश जा रहे थे, प्लेन क्रैश में 40 लोगों की मौत हुई थी. हमारी रीना का भविष्य खत्म हो गया. मेरी ही गलती थी शायद, मैं ने ही इस रिश्ते के लिए जोर दिया था.’’
‘अब से मैं जाटव के हाथ का ही पानी पिऊंगा,’ रूही के दिमाग में यह वाक्य जैसे जोर से फटा. कम बोलने वाला लड़का, यह क्या कह गया. 29 वर्ष का अनंत वैसे तो रूही से 3 साल ही उम्र में बड़ा था, लेकिन उस के सीधेपन की वजह से रूही उस पर हमेशा अपना हुक्म चलाती आई है. आज इस हाल में वह कुछ कह नहीं पाई, वरना इस सत्यानाश के लिए वह भैया को कभी छोड़ती नहीं. इतना बड़ा अनर्थ कर दिया अनंत ने.
मिश्रा परिवार में 3 बार पूजाअर्चना होती है नियम से. अन्य जाति के लोग द्वार पर आ कर रुक जाते हैं. घर में चायपानी के लिए उन का अलग बरतन होता है. हाथों से छू कर अम्मा उन्हें कभी कुछ नहीं परोसतीं. सब बाइयां ही करती हैं.
बाई के घर में घुसते ही अम्मा अपने यहां रखी साड़ी देती हैं पहनने को. उस के माथे पर गंगाजल छिड़कती हैं. तब जा कर वह इस घर का काम शुरू करती है. तब भी अम्मा इन कामवालियों के पीछे दौड़ती ही रहती हैं. एकबार ये बरतन धो देती हैं तो अम्मा फिर उन्हें दोबारा धोती हैं. मंदिर का सारा काम बेटी और अम्मा के हाथ में. और यहां एक पल में इस महामूर्ख ने सब करम तमाम कर डाला.
यह लड़की तो जाटव है, कामवाली बाइयों के लिए भी अछूत. पर देखो, पढ़लिख कर कमाऊ हो कर क्या शान से खुद को प्रस्तुत कर रही है.
मारे क्रोध के रूही ने मुंह फेर लिया. तब तक स्टेशन आ चुका था, जहां रीना के मामा की सूचना पर एक असिस्टैंट नर्स के साथ डाक्टर मौजूद था. बहन को ले कर यहां उतरते समय अनंत ने एक छोटी सी दृष्टि रीना पर डाली और दो शब्दों के जरिए उस से उस का फोन नंबर ले लिया.