समय का चक्र मानो फिर से घूम गया था. अब मां व शिखा के प्रति मामामामी का रवैया बदलने लगा था. हर बात में मामी कहतीं, ‘अरे जीजी, बैठो न. आप बस हुक्म करो. बहुत काम कर लिया आप ने.’
मामी के इस रूप का शिखा खूब आनंद लेती. इस दिन के लिए वह कितना तरसी थी.
जब सरकारी बंगले में जाने की बात आई तो सब से पहले मामामामी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया. मगर नानी ने जाने से मना कर दिया, यह कह कर कि इस घर में नानाजी की यादें बसी हैं, वे इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी, और जो भी जाना चाहे, वह जा सकता है. मां नानी के दिल की हालत समझती थीं, उन्होंने भी जाने से मना कर दिया. सो, शिखा ने भी शिफ्ट होने का खयाल उस समय टाल दिया.
इसी बीच, एक बहुत ही सुशील और हैंडसम अफसर, जिस का नाम राहुल था, की तरफ से शिखा को शादी का प्रस्ताव आया. राहुल ने खुद आगे बढ़ कर शिखा को बताया कि वह उसे बहुत पसंद करता है व उस से शादी करना चाहता है. शिखा को भी राहुल पसंद था.
राहुल शिखा को अपने घर, अपनी मां से भी मिलाने ले गया था. राहुल ने उसे बताया कि किस प्रकार पिताजी के देहांत के बाद मां ने अपने संपूर्ण जीवन की आहुति सिर्फ और सिर्फ उस के पालनपोषण के लिए दे दी. घरघर काम कर के, रातरात भर सिलाईकढ़ाई व बुनाई कर के उस को इस लायक बनाया कि आज वह इतना बड़ा अफसर बन पाया है. उस की मां के लिए वह और उस के लिए उस की मां. उन दोनों की बस यही दुनिया थी.