कभीकभी परिस्थिति या अपरिहार्य कारणों से जो स्त्रीपुरुष अविवाहित रह जाते हैं वे ऊपरी तौर पर बेशक खुश रहने या सहज होने की बात करते हों लेकिन भीतर से अकेले, भयभीत, तनावग्रस्त व अवसाद से भरे रहते हैं. खासतौर पर अधेड़ावस्था उन्हें कुंठित, तनावग्रस्त व तुनकमिजाज बना देती है. असुरक्षा की भावना के चलते वे भीतर से भयभीत भी रहते हैं. जीवन में किस घड़ी कौन सी मुसीबत, दुर्घटना, बीमारी आ जाए क्या पता? उस समय उन की देखभाल कौन करेगा? इस तरह के सवाल उन्हें घेरे रहते हैं. ‘मनुष्य के जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं, कई ऐसे खुशी के मौके आते हैं जिन्हें वह किसी के संग बांटना चाहता है. दूर क्यों जाएं अपने दफ्तर की बातें, कोई दिलचस्प घटना या तनाव भी अपने साथी को बताते हैं, इस से मन हलका हो जाता है. मैं स्वयं अपने अकेलेपन को शिद्दत के साथ महसूस करता हूं. बेटे विदेश में बस गए हैं, अच्छी नौकरियां कर रहे हैं. पत्नी के निधन के बाद जिंदगी बोझिल सी लगती है. जितने समय कामकाज में व्यस्त रहता हूं जीवन सहज लगता है लेकिन जब काम से फारिग हो जाता हूं तो अकेले समय काटना बड़ी मुसीबत बन जाता है. पता नहीं आप ने इतना लंबा समय कैसे अकेले काट लिया? अच्छा, अब मैं चलता हूं. अपनी सेहत का खयाल रखना.’ अगले सप्ताह से भारती दफ्तर जाने लगी. मैनेजर साहब की बातों का उस पर इतना असर पड़ा कि अब सचमुच उसे अकेलापन काटने लगता. कभीकभी सोचती कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैं किस के लिए जी रही हूं? किस के लिए धन जमा कर रही हूं? अतीत का विश्लेषण करने पर महसूस होता शायद अपनी जिद, अडि़यल स्वभाव के कारण कुछ गलत फैसले ले कर अपने जीवन को एकाकी, रसहीन, उद्देश्यहीन बना लिया. मां मेरे सुखी जीवन के, खुशहाल परिवार के सपने देखतेदेखते दुनिया से बिदा हो गईं. मैं ने किसी की नहीं सुनी. केवल अपने कैरियर, अपनी इच्छाओं के बारे में ही सोचती रही. अपने निर्णय की गलती का एहसास अब हो रहा था.