‘डैडी का अपना कारोबार है, जो दूसरे शहरों तक फैला हुआ है. मुझे तो वही संभालना है. बस, इस वर्ष की अंतिम परीक्षा के बाद मेरा सारा ध्यान अपने व्यवसाय में ही होगा.’
‘यह भी ठीक है. तुम अपने व्यवसाय में व्यस्त रहोगे और मैं अपनी बैंक की नौकरी में व्यस्त रहूंगी. वरना दिन भर घर में अकेली कितना बोर हो जाऊंगी,’ भारती ने कहा तो हिमेश हैरानी से बोला, ‘तुम अकेली कहां होेगी, मेरी बहनें और मां भी तो रहेंगी तुम्हारे साथ.’
हिमेश, एक बात अभी से स्पष्ट कर देना चाहती हूं, मैं संयुक्त परिवार में तालमेल नहीं बैठा पाऊंगी. छोटीछोटी बातों पर रोकटोक वहां आम बात होती है, जो मुझ से सहन नहीं होगी. फिर मैं शादी के बाद भी नौकरी पर जाती रहूंगी. तुम्हारी बहनों की पटरी भी मेरे साथ जम पाएगी, इस में मुझे शक है, इसलिए तुम्हें अपने परिवार से अलग रहने की मानसिकता अभी से बना लेनी चाहिए.’
भारती की बातें सुन कर हिमेश स्तब्ध रह गया. फिर भी अपनी ओर से उसे समझाते हुए बोला, ‘भारती, हर मांबाप की चाह होती है कि उन की बहू संस्कारी हो और घर के सदस्यों के साथ हिलमिल कर रहे, बड़ों को मानसम्मान दे. मेरे मातापिता की भी तो यही ख्वाहिश होगी, आखिर मैं उन का इकलौता बेटा हूं. उन की मुझ से कुछ उम्मीदें भी होंगी. मैं उन्हें छोड़ अलग कैसे रह सकता हूं?’
‘तो फिर मेरे और तुम्हारे रास्ते आज से अलगअलग हैं. मैं तो अपनी इच्छा से जीवन जीने वाली लड़की हूं. कल को मेरे उठनेबैठने और नौकरी करने पर तुम्हारे मम्मीडैडी किसी तरह का एतराज करें, यह मैं सहन नहीं कर सकती. इस से अच्छा है हम इस रिश्ते को यहीं समाप्त कर दें.’