यदुनंदन साहब विशेष हंसीमजाक के मूड में नहीं थे. ब्रीफकेस की चोरी के बाद हो भी नहीं सकते थे. झल्लाते हुए बोले, ‘‘अच्छा, चलो, तीनों अलगअलग ही अपनेअपने काम संभालो, पर पैसे कितने लगेंगे?’’ पूछने को तो वे पूछ बैठे पर उत्तर सुन कर घबरा गए. तीनों दलालों ने अपनेअपने काम के हजारहजार रुपए बताए और कहा कि
4 एफिडेविट्स यानी शपथपत्र बनवाने के प्रति एफिडेविट 400 रुपए यानी 1600 रुपए अलग से लगेंगे. इस के अलावा सरकारी फीस, अर्थात वह धनराशि जिस की रसीद मिलेगी, उसे अलग से जमा करवाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी.
यदुनंदन साहब को आशा थी कि मोलभाव कर के वे कुछ रुपए कम करा लेंगे पर दलालों ने उन्हें घास नहीं डाली, बल्कि उन का मजाक उड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘साहब, ऐसा है कि इन में से कोई एक काम आप खुद कर के देख लो, फिर समझ में आ जाएगा कि हम अपनी मेहनत के कितने कम पैसे मांग रहे हैं. हो सकता है कि तब आप शरमा कर हमें बाकी के दोनों काम के ही उतने पैसे दे दें जितने हम तीनों काम के मांग रहे हैं.’’
यदुनंदन साहब को उन की बात कुछ तो समझ में आई क्योंकि चारों तरफ बावली सी भटकती भीड़ और हर खिड़की के आगे लगे जमघट ने ऐसा माहौल बना रखा था कि उन्हें परेशानी लग रही थी. इसलिए इन खुदाई खिदमतगारों की बात पर विश्वास करने का सहज में ही मन कर रहा था.
लेकिन 400-400 रुपयों के 4 एफिडेविट्स वाली बात गले से नीचे नहीं उतरी. पूछा, ‘‘ये 4-4 एफिडेविट्स की क्या जरूरत है? एक में ही क्यों न लिखवा लूं कि मेरा ड्राइविंग लाइसैंस और आरसी गुम हो गए हैं जिन में मेरा पता पुराना लिखा हुआ था. अब नया बना कर दे दिया जाए जिन में मेरा नया पता यह होगा?’’
दलालों में से एक ने उन्हें नीचे से ऊपर तक देखा और बड़ी सहानुभूति से बोला, ‘‘लो जी, समझ में आ गया कि आप किसी सरकारी दफ्तर में पहली बार आए हो.’’
दूसरे ने समझाते हुए कहा, ‘‘सरजी, डुप्लीकेट आरसी एक खिड़की पर बनेगी, पता बदलने का काम दूसरी पर होगा. यही बात डीएल पर भी लागू होती है. अब आप का एक एफिडेविट ले कर एक बाबू दूसरे बाबू के यहां उठउठ कर भागेगा तो उस की खिड़की पर काम कौन करेगा? पब्लिक खाली खिड़की देख कर हल्ला मचाएगी कि नहीं?’’
तीसरा दलाल कुछ ज्यादा ही मुंहफट निकला. बोला, ‘‘सरजी, आप को ट्रिपल संडे आइसक्रीम या तिरंगी बर्फी खाने का शौक होगा पर वह शौक यहां पूरा न होगा. यहां हर खिड़की पर अलग मिठाई मिलती है. यहां काम कराना हो तो चुपचाप फाइल में इतने पेपर डालो या फिर उस के ऊपर इतना वजन डालो जितना बताया जाए. इतनी बातें पूछोगे तो आप के सवालों के जवाब यहां मिलने से रहे.’’
ट्रिपल संडे आइसक्रीम की तरह ही यदुनंदन साहब के ऊपर प्रतिक्रियाएं भी 3 तरह की हुईं. पहले तो इन बेचारों की नासमझी या अल्पबुद्धि पर तरस आया, फिर इस औफिस की व्यवस्था पर गुस्सा आया और अंत में उन के व्यंग्य से आहत हो कर अपमानित सा महसूस किया उन्होंने. पर कुल मिला कर उन की बातें उन्हें एक तरह की चुनौती सी लगीं जिन्हें उन का आत्मसम्मान चुपचाप झेल जाने के लिए तैयार नहीं था. सोचा, ‘अब कौन सी अपने औफिस पहुंचने की जल्दी है. पत्नी को फोन कर दूंगा कि लौटने में देर होगी और सारा काम निबटा कर ही वापस जाऊंगा.’
बात सिर्फ रुपयों की नहीं थी, कुछ कर के दिखाना है, वाली हो गई थी. यदुनंदन साहब ने चुनौती स्वीकार करते हुए उन तीनों से कहा, ‘‘चलो, आज यही सही.’’ और उस तरफ बढ़ चले जिधर एक बड़े से बोर्ड पर साफसाफ बड़े अक्षरों में बहुत सरल और सहज तरीके से विभिन्न दस्तावेजों के जारी कराने या उन की डुप्लीकेट प्रति के पाने के लिए क्या करना होगा, बताया गया था.
विभिन्न आवेदनों के लिए जमा करने की फीस अलग से दी हुई थी. पढ़ कर उन्हें लगा कि इन कामों के लिए 40, 50 या 60 रुपए की फीस कोई अनुचित या अधिक रकम नहीं थी. फिर किस खिड़की पर कौन सा काम होगा और कौन से आवेदन का फौर्म नंबर क्या था, ये भी बहुत स्पष्ट लिखा हुआ था. इतनी सुव्यवस्थित ढंग से सारी जानकारियां दी हुई थीं कि उन्हें अपनी कमजोरी और मूर्खता पर शर्म आई कि इतने पढ़ेलिखे होने के बावजूद उन्होंने दलालों के चक्कर में पड़ने की सोची. उन्होंने मन ही मन कसम खाई कि आगे से एक जिम्मेदार नागरिक की तरह सब काम करेंगे. एक बोझ सर से हट गया हो ऐसा महसूस करते हुए, हलके मन से वे फौर्म बेचने वाली खिड़की के सामने वाली लाइन में जा कर लग गए.
उन का नंबर आने से पहले उन्हें एक उलझन ने घेर लिया. उन्हें खोई हुई आरसी के बदले में एक डुप्लीकेट आरसी लेनी थी फिर उस में अपना नया पता दर्ज कराना था. यही कहानी ड्राइविंग लाइसैंस के लिए भी दोहरानी थी. पर डुप्लीकेट आरसी के लिए एक फौर्म था, आरसी में पता बदलने के लिए दूसरा फौर्म था. इन 4 टुकड़ों में बंटे हुए हर काम के लिए अलगअलग खिड़कियां थीं. उन्हें लगा कि अगर डुप्लीकेट आरसी के आवेदन में ही नया पता भी लिख कर दे दें तो दोनों काम एकसाथ हो जाएंगे, ज्यादा से ज्यादा यही तो होगा कि दोनों फौर्म भर कर एकसाथ नत्थी करने होंगे. यही तरीका ड्राइविंग लाइसैंस के लिए भी अपनाया जा सकता था. पर सवाल था कि फौर्म जमा कहां करेंगे. डुप्लीकेट जारी करने वाली खिड़की पर या पता बदलने वाली खिड़की पर. अभी वे यह सोच ही रहे थे कि उन्होंने अपनेआप को फौर्म बेचने वाली महिला के सामने पाया. उन के प्रश्नों के उत्तर में उस ने कहा कि उस का काम फौर्म बेचने का था और फौर्म तो उन्हें चारों भरने ही पड़ेंगे. अब वे 4 की जगह किन 2 खिड़कियों पर जाएं, उसे नहीं मालूम. इस के लिए वे पूछताछ वाली खिड़की पर जाएं.
यदुनंदन साहब ने चारों फौर्म लिए, उन्हें भरा और पूछताछ की खिड़की पर जा कर अपना सवाल दाग दिया.
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