‘‘तुम्हारी सूचना विश्वसनीय तो है?’’ शंकराचार्य मंदिर के मुख्यद्वार पर पुरोहित के पांव सहसा रुक गए.

‘‘स्वामी जयेंद्र ने आज तक आप को अविश्वसनीय सूचना नहीं दी है.

1-2 बार नहीं, जितनी बार भी आप पूछेंगे, मेरी सूचना अपरिवर्तित रहेगी कि विधवा यशोवती कश्यपपुर (कश्मीर) की शासिका मनोनीत की गई हैं.’’

‘‘तो क्या राज्य के पंडितों, ज्ञानीध्यानी व्यक्तियों और शिक्षाविदों को एक विधवा की अधीनता स्वीकार करनी होगी? यह बात क्या नीति, वेद, उपनिषद, धार्मिक शिक्षाओं व शालीनता के विपरीत नहीं होगी? प्रात: जीवनचर्या प्रारंभ करने से पूर्व राज्य निवासियों द्वारा ईश्वर के साथ ऐसी स्त्री का  नाम उच्चारित करना क्या पापाचार नहीं होगा?’’ कपिल का स्वर आक्रोशपूर्ण हो गया.

‘‘विप्रश्रेष्ठ, इस से तो भारत व अन्य पड़ोसी  राज्यों में भी हमारी हेठी होगी. सब लोग हमारी बुद्धि व मानसिक संतुलन पर तरस खाएंगे,’’ पुरोहित के साथ चलती भीड़ में से कोई बोल उठा.

‘‘निश्चय ही राज्य की सधवाएं इस प्रस्ताव का घोर विरोध करेंगी,’’ मुख में तांबूल दबाए, चंचल नयनों में काजल व होंठों पर लाल मिस्सी सज्जित युवती का स्वर सुन कर कपिल मन ही मन हर्षित हो उठा.

‘‘एक तो नारी,

ऊपर से विधवा? शिव...शिव...ऐसी शासिका के राज्य में रहने की अपेक्षा आत्महत्या कर लेना या राज्य से कहीं अन्यत्र पलायन कर लेना ही हमारे लिए उचित रहेगा,’’ एक अन्य पुरुष स्वर ने भी कपिल का समर्थन किया.

‘‘यदि आप सब लोगों की सहमति है तो मैं रानी यशोवती के सिंहासनारोहण के विरुद्ध अपने आत्मदाह की घोषणा करता हूं.’’

पुरोहित कपिल की घोषणा का भीड़ ने तुमुल हर्ष व तालियों से स्वागत किया.

‘‘जयेंद्र, तुम कश्यपपुर के प्रत्येक स्त्रीपुरुष तक मेरा यह  प्रण पहुंचा दो कि यदि विधवा यशोवती को राज्य की गद्दी पर बैठाया गया तो राज्यारोहण के दिन ही कोंसरनाग से उत्पन्न वितस्ता (झेलम) की लहरों में डूब कर मैं

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