हवाईजहाज में प्रथम श्रेणी की आरामदायक सीट पर बैठ मयूरी ने चैन की सांस ली. आज वह महसूस कर रही थी कि जब दिल में उमंग हो और दिमाग तनावरहित, तो हर चीज कितनी अच्छी लगने लगी है. मानो हर तरफ वसंत खिल उठा हो. बगल की सीट पर बैठे मात्र 24 घंटे पहले ही जीवनसाथी बने राहुल को एक नजर देख उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. अभी भी लोग अंदर आ कर अपनी सीटों पर बैठ रहे थे. एयर होस्टैसेस अपने काम में मुस्तैदी से लगीं यात्रियों की जरूरतें पूरी कर रही थीं, उन्हें उन की सीट बता रही थीं.

थोड़ी ही देर बाद जहाज का द्वार बंद होते ही माइक्रोफोन पर एनाउंसर की मधुर आवाज गूंजी, ‘‘कृपया अपनी सीट बैल्ट्स बांध लें. कुछ ही मिनटों में प्लेन टेकऔफ करने वाला है.’’

सब अपनीअपनी बैल्ट्स बांधने में लग गए. मयूरी को बैल्ट बांधने में असुविधा होते देख राहुल ने उस की मदद कर के अपनी सीट बैल्ट भी बांध ली. कुछ ही मिनटों में जहाज आकाश की ऊंचाइयों को छूता उसे अपने देश, अपने परिवार से दूर ले जा रहा था.

पिछले 24 घंटों से विवाह की आपाधापी व रातभर ट्रेन के सफर की भागदौड़ से थके राहुल और मयूरी अब थोड़ा बेफिक्र हो आराम से बैठ पाए थे. पिछले 2 दिनों में तेजी से घटे घटनाक्रम ने मयूरी को ज्यादा सोचनेसमझने का मौका ही नहीं दिया था. राहुल को आंखें बंद किए बैठे देख वह भी अपनी सीट पर सिर पीछे टिका कर शीशे से बाहर नीले आकाश में हाथभर की दूरी पर हवा में उड़तेइतराते बादलों को देखने लगी. बादलों के पीछे से आती सूरज की किरणों ने हर बादल के टुकड़े पर एक सिल्वर लाइनिंग सी बना दी थी, मानो हर बादल के पीछे चांदी सा चमकता साम्राज्य छिपा है. उस का जी चाहा कि हाथ बढ़ा कर वह उसे अपनी मुट्ठी में भर ले. पर हवा की तेजी से भी तेज, विचारों के पंछी कब उसे अपने साथ उड़ाते अतीत की ओर ले चले, उसे पता ही न चला…

देहरादून के पास ही एक कसबे में अपनी मां वसुंधरा व छोटी बहन मीठी के साथ रहते उस का बचपन युवा अवस्था में बदला ही था जब उस के पिता एक दलाल की मारफत कुछ लोगों के साथ खाड़ी देशों में कारपैंटर की नौकरी करने गए थे. बेरोजगार गरीब लोगों ने ज्यादा पैसा कमाने की चाह में अपनी जमीनजायदाद या पत्नी के गहने बेच कर किसी तरह दलाल की मांगी हुई पूरी रकम एडवांस में जमा कराई, तब उन्हें पासपोर्ट व वीजा मिला.

विदेश यात्रा के बीच में ही एक जगह पहुंचने पर उन्हें पता चला कि अब इस के आगे वे सब सीधे रास्ते न जा कर, समुद्र के रास्ते एक केबिन में छिपा कर पहुंचाए जाएंगे. उन सब को केबिन में भेड़बकरियों की तरह ठूंस कर जहाज चल दिया और वह दलाल वहीं से वापस हो लिया था. पर असंवैधानिक तरीके से दूसरे देश की सीमा में प्रवेश करते वक्त चैकिंग के समय वे दूसरे लोगों के साथ ही पकड़ लिए गए.

कुछ दिनों तक वहां की जेल से उन के पत्र भी आते रहे. हर पत्र में वहां की सजाएं व किसी तरह वहां से छुड़ाए जाने की अपील होती थी. पर अचानक ही पत्र आने बंद हो गए थे. कोई कहता, उन लोगों को कहीं और ले जा कर नजरबंद कर दिया गया है, कोई कहता वहां की सरकार ऐसे कैदियों को जिंदा ही नहीं छोड़ती है.

विदेश गए लोगों के परिजन शुरू में पुलिस में शिकायत करने भी गए, परंतु बिना रिश्वत लिए कोई कुछ सुनने को तैयार न था. इस अवैध धंधे में लिप्त लोगों ने पुलिस वालों को समयसमय पर मासिक सुविधाशुल्क दे कर अपना कारोबार सुचारु ढंग से चलाते रहने का पूरा इंतजाम पहले ही कर रखा था. इसीलिए उन के खिलाफ किसी ने कोई कार्यवाही करने की जरूरत ही नहीं समझी.

इस बीच, वह दलाल व उस का आलीशान औफिस और कार्यकर्ता सब गायब हो चुके थे. गरीब शिकायत करते भी तो किस की और किस से? सही जानकारी का अभाव, ज्यादा पैसा कमाने की चाह और सस्ते में चोरीछिपे पहुंचा देने की दलाल की पेशकश, उन गरीबों को मौत के मुंह तक पहुंचा आई थी. मन मसोस कर परिजन सबकुछ समय पर छोड़ चुप बैठ गए थे.

तब से वसुंधरा ने ही एक प्राइमरी स्कूल में जौब कर किसी तरह घर को संभाला था. अपने पैरों पर खड़ा होने लायक शिक्षा प्राप्त करते ही मयूरी भी नौकरी के लिए आवेदन भेजने लगी थी. कई जगहों पर योग्य होते हुए भी सिफारिश के अभाव में उसे नौकरी नहीं मिल सकी जिस से उस में निराशा व कुंठा घर करने लगी थी.

उन्हीं दिनों देहरादून के एक औफिस से नौकरी का नियुक्तिपत्र आया. शायद उसे राहुल से मिलाने के लिए ही था. पहले तो वसुंधरा बेटी को नौकरी करने अकेले दूसरे शहर भेजने को तैयार नहीं थी, पर मयूरी की अपील व घर की डांवांडोल आर्थिक स्थिति उसे अपने फैसले पर ज्यादा देर कायम नहीं रख सकी. वसुंधरा ने बेटी को जाने की इजाजत दे दी.

देहरादून पहुंच कर अपने औफिस में ड्यूटी जौइन कर के मयूरी बहुत खुश थी. औफिस के पास ही बने महिला होस्टल में उस ने एक कमरा ले लिया था. उस की रूमपार्टनर सारा मौडर्न युवती थी, जो कसबे से आई मयूरी को देख अपनी नाखुशी छिपा न सकी थी. कुछ दिनों के अबोले के बाद आखिर उस ने ही पहल करते हुए मयूरी से बातचीत शुरू कर दी. वह भी उसी औफिस में काम करती थी.

मां की बंदिशों से दूर, हर फैसला लेने को आजाद, जल्द हर सुखसुविधा पा लेने की ललक और साथ ही चौबीसों घंटे सारा जैसी तेजतर्रार युवती का साथ, मयूरी की जीवनशैली में बदलाव लाने के लिए काफी थे.

मयूरी एक निचले परिवार से जीवन का सफर शुरू कर के मेहनत व लगन से सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए इस जीवनशैली में पहुंची थी. पैसों की तंगी के चलते अभी तक जो चीजें उसे चांद छूने के समान लगती थीं, पैसा हाथ में आते ही अब सुलभ हो गई थीं. सारी तनख्वाह वह अपने शौक पूरे करने में ही खर्च कर देती. जल्द ही वह ग्रामीण शैली छोड़ मौडर्न तौरतरीके अपनाने लगी. जैसे नया पैसे वाला फुजूलखर्ची को ही अपना शान समझ बैठता है, कुछ उसी मानसिकता से मयूरी भी गुजर रही थी. इन बदलावों का श्रेय वह सारा को देते नहीं थकती थी जो समयसमय पर उसे आधुनिक चालचलन से दोचार करा कर बदलने को प्रेरित करती थी.

विदेशों में सारा के डैडी का खिलौनों का व्यापार और इंपोर्टएक्सपोर्ट के बिजनैस में एक देश से दूसरे देश घूमते रहते उस के भाई का हर माह उसे एक मोटी रकम खर्च करने के लिए भेजना, मयूरी को उस से ईष्यालु बना जाता. ऐसे में उसे अपनी गरीबी पर कोफ्त होती. पर इतने अमीर घर की सारा जब उसे ही अपनी सब से प्यारी सहेली कहती तो मयूरी को खुद पर फख्र होता. मयूरी अपनी नई दुनिया में इतना रम गई थी कि मां के भेजे पत्रों का जवाब देने का भी उसे खयाल न रहा.

एक दो महीने इंतजार करने के बाद भी जब मां को कोई जवाब नहीं मिला, न ही बेटी की कुछ खबर, तो एक दिन अचानक वसुंधरा बेटी से मिलने देहरादून पहुंच गई. वहां बेटी का बदला हुआ रूप उसे चौंका गया था. रिसैप्शन से किसी के उस से मिलने आने की खबर पा कर मयूरी फौरन नीचे पहुंची तो मां को सामने खड़ा पाया.

सीधीसादी, चुन्नी के साथ कुरतासलवार पहनने वाली मयूरी को टाइट जींस व छोटी सी नाममात्र की टीशर्ट पहने, साथ ही लंबे लहराते बालों को कटा कर छोटी सी पोनीटेल बांधे देख वसुंधरा उसे ऊपर से नीचे देखती रह गई. मां को यों देख मयूरी थोड़ा झेंपी, फिर मां से लिपट गई. ऊपर अपने कमरे में ले जाते हुए, इसे आजकल समय के साथ चलने की जरूरत बता कर, मयूरी ने मां को संतुष्ट करने की कोशिश की.

वसुंधरा को बेटी का यों बदलना अच्छा नहीं लगा था. मयूरी अभी भी तरहतरह से खुद को सही साबित करने के लिए तर्क पर तर्क दिए जा रही थी. मांबेटी को इत्मीनान से बात करने के लिए अकेला छोड़, सारा कुछ काम का बहाना बना कर बाहर चली गई थी.

उस के जाते ही वसुंधरा मयूरी से बोली, ‘बेटी, तुम घर से बाहर पहली बार निकली हो. दस तरह के लोग तुम्हें मिलेंगे. जो भी करना बहुत सोचसमझ कर करना. अपनी जरूरत पूरी करना अच्छा है और जरूरी भी पर फुजूलखर्ची नहीं होनी चाहिए. तुम अब कमाने लगी हो तो उस में से कुछ बचत करने की आदत भी डालो. मौडर्न होने में कोई बुराई नहीं है पर याद रखो, जिस्म की खूबसूरती उसे ढकने में ही है, न कि उस की नुमाइश करने में. यह सारा कैसी लड़की है?’

‘बहुत ही अच्छी है मां. अमीर परिवार की है पर घमंड जरा भी नहीं है. मेरी तो वह बहुत अच्छी दोस्त बन गई है,’ और फिर मयूरी उस के परिवार के बारे में विस्तार से बताती रही.

‘इतने अमीर घर की हो कर भी यहां क्यों नौकरी कर रही है?’

‘नौकरी तो वह अपने दम पर कुछ कमाने के लिए करती है. खाली बैठने से तो अच्छा ही है. फिर मां, बड़े लोगों से दोस्ती करने में हर्ज ही क्या है. वास्तव में उसी ने मुझे यह ड्रैस सैंस दिया है.’

‘बेटा, ये सब उच्च वर्गीय अमीरों के चोंचले हैं कि जितना ज्यादा पैसा, उतने ही कम कपड़े,’ मां उसे बीच में टोकती हुई बोली.

‘ओह मां, आप भी क्या बेकार की बातें ले बैठीं. आजकल तो सभी लड़कियां ऐसे ही रहती हैं,’ मयूरी बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, पर आप चाहती हैं कि मैं फिर वही पुरानी बहनजी टाइप बन कर ही रहूं तो ठीक है.’

‘बेटा, मुझे गलत मत समझो. दुनिया चाहे कहीं पहुंच गई हो पर औरत के लिए वह आज भी नहीं बदली है. तुम से बस यही कहना है कि आगे कभी कोई गलत कदम न उठा लेना. बहकाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, संभालने वाला कोई नहीं मिलता. सारा तो अमीर घराने की है. उन के रहनसहन चालचलन और हमारे में बहुत फर्क है.’

वसुंधरा अपनी तरफ से बेटी को तरहतरह से समझा कर लौटती बस से वापस चली गई.

मयूरी ने मां की कुछ बातें समझीं, कुछ को उन के पुराने खयालों की सोच समझ कर एक कान से सुन कर, दूसरे से निकाल दीं. उस की जिंदगी उस की मनमरजी के अनुसार ही चलती रही. मां के समझाने से इतना असर जरूर हुआ कि उस ने कुछ पैसा घर भेजना व कुछ बैंक में जमा कराना शुरू कर दिया.

कुछ दिनों बाद सारा ने उसे बताया कि लंदन से उस के बड़े भाई राहुल बिजनैस के सिलसिले में दिल्ली आने वाले हैं. तब वे 2 दिनों के लिए उस के साथ मसूरी भी जाएंगे. उस ने मयूरी से भी साथ चलने व घूमने के लिए कहा.

‘अच्छा, मां से पूछ कर बताऊंगी.’

मयूरी के सहज ढंग से कहने पर सारा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘क्या दूध पीती बच्ची हो जो ये सब बातें भी अब मां से पूछ कर करोगी? कब तुम्हारी चिट्ठी वहां पहुंचेगी, कब वे जवाब देंगी. कोई फोन तो है नहीं तुम्हारे घर. तब तक तो राहुल भैया सब काम निबटा कर वापस भी जा चुके होंगे.’

उस के हंसी उड़ाने वाले अंदाज में हंसने से मयूरी झेंप गई.

‘नहीं, तब भी. औफिस से भी तो इतनी जल्दी छुट्टी नहीं मिलेगी,’ उस ने खुद का बचाव सा करते हुए कहा तो सारा चुटकी बजाते हुए बोली, ‘उस की तुम फिक्र मत करो, बौस से मैं बात कर लूंगी. वे मेरे डैडी के बहुत अच्छे दोस्तों में से हैं. मैं कहूंगी तो मना नहीं करेंगे.’

आखिर मसूरी घूमने की इच्छा तो मयूरी की भी थी. सो, सारा के जोर देने पर उस ने भी साथ चलने की हामी भर दी.

2 दिनों बाद मयूरी ने राहुल को पहली बार उस तीनसितारा होटल में देखा था जहां उस ने सारा व मयूरी को डिनर के लिए बुलाया था. किसी सीरियस बिजनैसमैन की जगह 25-30 वर्षीय अपटूडेट नौजवान राहुल को देख पहले तो वह उस से बातचीत में थोड़ा सकुचाती रही, पर उन दोनों के मधुर व्यवहार से वह प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी.

खूबसूरत डिजायनर मोमबत्तियों का हलका उजाला, तरहतरह की जलतीबुझती रोशनियां, गूंजता सुरीला संगीत और डांसफ्लोर पर एकदूसरे में खोए से प्रेमी युगल…सब कुछ मयूरी के लिए नए थे. अनजाने ही वह उधर देखती खुद को राहुल के साथ डांसफ्लोर पर थिरकने की कल्पना कर उठी. तभी, मयूरी ने राहुल को अपने सामने खड़ा पाया जो उस की तरफ हाथ बढ़ाए उसे ही देख रहा था.

‘मे आई प्लीज?’

‘पर मुझे डांस नहीं आता,’ वह एकदम घबरा सी गई, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

‘कोई बात नहीं, मेरे साथ आइए, अपनेआप आ जाएगा,’ वह मुसकरा कर बोला.

उस की आवाज की कशिश व देखने का अंदाज मयूरी को अंदर से कहीं कमजोर बना रहा था. तभी सारा ने भी उसे जाने के लिए कहा और लगभग ठेल सा ही दिया. अगले 2 घंटे मयूरी के लिए सपने की दुनिया में सैर करने के समान थे. माहौल का असर उस पर हावी होता जा रहा था. उस का दिल चाह रहा था, काश, यह संगीत कभी न रुके और वह इसी तरह पूरी जिंदगी राहुल के साथ एक लय पर थिरकती उस के करीब बनी रहे. उस के जिस्म से आती भीनीभीनी खुशबू उसे मदहोश बना रही थी.

वहां से लौट कर भी मयूरी राहुल के खयालों में ही खोई रही थी. अगले 2 दिनों का मसूरी ट्रिप भी उस के लिए कई यादगार लमहे छोड़ गया था. राहुल के वापस जाने के बाद मयूरी को सबकुछ कितना खालीखाली सा लगता रहा था. सारा उस के मन की हालत समझ रही थी. और अब गाहेबगाहे उसे राहुल का नाम लेले कर छेड़ने से बाज नहीं आती थी.

ऐसे मौकों पर मयूरी के लाख झुठलाने पर भी उस के लाल होते गाल उस के दिल की भावनाओं की चुगली कर जाते. अनजाने ही उस की आंखों में राहुल जैसा जीवनसाथी पाने का एक छोटा सा सपना पलने लगा था.

सपनों पर किसी देश, समाज या धर्म का बंधन तो होता नहीं. ये तो बस मन में उठती भावनाओं का रूप होते हैं. देशविदेश घूमने की चाह व उच्च सामाजिक रुतबा पाने की ख्वाहिश शायद उस के सपनों के मूल में थी. पर उन की सामाजिक स्थिति के बीच जमीनआसमान का अंतर होने से कभीकभी उसे खुद पर ही झुंझलाहट भी हो आती कि क्यों वह ऐसे सपने देखती ही है जिन के पूरा होने की कोई उम्मीद ही न हो. क्या दोचार दिन साथ घूम लेने से ही वह उस की प्रेयसी हो जाएगी.

राहुल अमीर है, स्मार्ट है. कितने ही बड़ों घरों से उस के लिए रिश्ते आते होंगे. ऐसे में वह तो कहीं भी नहीं ठहरती. किंतु राहुल के सामने आने पर, उस की आंखों में अपने लिए कुछ खास सा भाव देख वह फिर दिल के हाथों मजबूर हो, उस की तरफ एक खिंचाव सा महसूस करने लगती. इधर वसुंधरा भी अब मयूरी के लिए अपनी जातबिरादरी में लड़का ढूंढ़ने लगी थी.

हर 2 महीने बाद राहुल दिल्ली आता तो देहरादून जरूर जाता. तब अकसर ही सारा व मयूरी के साथ कभी मसूरी, कभी सहस्त्रधारा आदि का प्रोग्राम बना कर घूमने निकल जाता. वहां सारा कभी उन्हीं के साथ रहती, कभी अलग घूमने निकल जाती. तब केवल वे दोनों व उन की तनहाइयां ही रह जातीं. पर राहुल ने कभी उस का बेजा फायदा उठाने की कोशिश नहीं की. जिस से मयूरी का उस पर यकीन बढ़ता गया, साथ ही आपस में हंसीमजाक भी. आखिर जाने से एक दिन पहले राहुल ने उस से अपने दिल की बात कह ही दी.

‘मुझ से शादी करोगी?’

इतने दिनों से जो बात उस के ख्वाबोंखयालों में मंडराती रहती थी, आज हकीकत में सुन कर पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ, फिर मयूरी की पलकें झुक गईं और होंठों पर एक लजाई हुई मुसकराहट छा गई थी.

‘कुछ तो कहो?’ उस ने उस का चेहरा उठाते हुए पूछा.

‘अच्छा, मां से बात करो,’ कह कर उस ने सिग्नल दे दिया था.

देहरादून से वापस लौटते ही मयूरी को मां का भेजा पत्र मिला कि उन्होंने एक अच्छे संभ्रांत परिवार में उस का रिश्ता तय कर दिया है. केवल औपचारिक तौर पर वे लोग एक बार आमनेसामने लड़की को देखना चाहते हैं. तभी वे शगुन की रस्म भी कर देंगी. सो, अगली गाड़ी से ही वह घर आ जाए.

मां का पत्र पढ़ कर मयूरी थोड़ा पसोपेश में पड़ गई. अब वह मां को अपने दिल की बात कैसे बताए कि वह केवल राहुल को चाहती है व उसी से शादी करना चाहती है. मां का पत्र राहुल व सारा ने भी पढ़ा.

राहुल के चेहरे पर कई रंग आ कर चले गए. कुछ सोच कर वह बोला, ‘देख लो, फैसला तुम्हारे हाथ में है. एक तरफ तुम्हारी पसंद का देखापरखा तुम्हारा प्यार है, दूसरी तरफ एक अनजान परिवार जिसे न तुम ने पहले देखा है न बिलकुल जानती हो. बालिग हो, अपना फैसला खुद लेने का हक है तुम्हें. हम लोग यहीं कोर्ट में विवाह कर लेते हैं, बाद में मां को बता देंगे.’

‘पर इस तरह शादी कर लेने से मां को बहुत दुख होगा. हम दोनों बहनों के लिए उन्होंने बहुत दुख उठाए है.’ मयूरी के संस्कार उसे मां से बगावत करने से रोक रहे थे, पर अमीर राहुल से विवाह होने पर सुखसुविधा संपन्न जीवनयापन की चाह मां के फैसले के उलट करने को उकसा रही थी.

राहुल द्वारा कोर्टमैरिज के लिए जोर देने पर, उस से विवाह करने की दिली इच्छा होते हुए भी, वह मां को अंधेरे में रख कर यह विवाह नहीं करना चाहती थी. उसे वह ठीक नहीं समझ रही थी. वह विवाह तो करना चाहती थी पर मां की खुशी के साथ.

आखिर सोचविचार कर, एक बार मां को मनाने की कोशिश करने के लिए वह राहुल व सारा के साथ अगले ही दिन मां के पास जा पहुंची थी. वहां राहुल ने अपना परिचय देने के साथ ही मयूरी का हाथ भी मांग लिया तो वे इस प्रस्ताव से चौंक उठी थीं, ‘कहां तुम लोग और कहां हम. रिश्ता तो बराबरी वालों में ही अच्छा रहता है.’

‘बराबरी केवल पैसों से ही थोड़े न होती है. मुझे आप की बेटी बेहद पसंद है. आप फिक्र न करें, हमें कोई दानदहेज नहीं चाहिए?  बस, अपनी बेटी 3 कपड़ों में विदा कर दीजिएगा,’ राहुल ने अपील की.

‘पर तुम्हारे मातापिता भी आ जाते, तभी बात पक्की करते,’ वे असमंजस में पड़ कर बोलीं. इतने बड़े घर से बेटी का रिश्ता मांगा जाता देख वे थोड़ी हतप्रभ थीं, साथ ही उन्हें खुशी भी थी कि बेटी इतने बड़े संपन्न घर जा कर चैन से जिंदगी बसर करेगी.

‘हमारी मौम तो अब रही नहीं. हां, डैडी हैं, पर वे इस समय बिजनैस के सिलसिले में हौंगकौंग गए हुए हैं. सो, उन का आना तो फिलहाल संभव नहीं है. अपने डैडी से मैं खुद मयूरी को मिलाने ले जाऊंगा. तभी शादी का रिसैप्शन दिया जाएगा. अभी तो बस आप इजाजत दे दीजिए, ताकि मैं मयूरी से कोर्टमैरिज कर सकूं. क्योंकि 2 दिनों बाद ही मुझे भी बिजनैस की कई मीटिंग्स अटैंड करने फ्रांस जाना है और फिर शायद जल्दी आना नहीं हो पाएगा.’

‘पर इतनी जल्दी मयूरी का पासपोर्ट वगैरह कैसे बन पाएगा?’ वसुंधरा के मुंह से निकला.

‘वह मैं अरैंज करा दूंगा. मेरी जानपहचान है.’

राहुल ने कहा तो वसुंधरा को फिर इस रिश्ते के लिए न कहने की कोई वजह नहीं दिखी. उसे सबकुछ स्वप्न सा लग रहा था. वसुंधरा अपने रीतिरिवाजों के अनुसार विवाह की रस्में पूरी करवाना चाहती थी. पर पैसे व समय दोनों की बचत करने पर जोर दे कर राहुल कोर्टमैरिज करने के फैसले पर ही अड़ा रहा और दोचार जानपहचान वालों की मौजूदगी में उन लोगों ने एक हलफनामे पर हस्ताक्षर कर के विवाह की फौर्मेलिटीज पूरी कर दीं. वसुंधरा के बहुत मना करने पर भी राहुल डेढ़ लाख रुपए अपने यहां की ‘हक’ की रस्म के नाम पर उन्हें दे ही गया.  क्रमश:

क्या जो हसीन सपने मयूरी देख रही थी वाकई पूरे होने वाले थे या कुछ ऐसा होने वाला था जो कोई सोच भी नहीं सकता था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...