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लेकिन दूसरे दिन जब राजा बाबू ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की थी तो दद्दा तिलमिला कर रह गए थे. घंटों अपने कमरे के  बाहर राजा को प्रतीक्षा करवाने वाले दद्दा साहब ने राजा बाबू को बारबार निमंत्रण भेजा था पर वह नहीं आए थे.

राजा बाबू की चुनौती को स्वीकार कर कौशल बाबू ने अपने दामाद रामाधार के साथ चुनाव क्षेत्र में ही डेरा डाल दिया था. दल की मशीनरी का साथ होने पर भी रामाधार की जमानत जब्त हो गई थी. राजा बाबू को पहले ही जनतांत्रिक दल से निष्कासित कर दिया गया था.

जब ढोलनगाड़ों की थाप पर राजा बाबू का विजय रथ जनतांत्रिक दल के कार्यालय के सामने से निकला था, दल के नेतागण मन मसोस कर रह गए थे.

सरकार बनाने की कोशिश शुरू होते ही स्वतंत्र विधायकों की बन आई थी. दोनों पक्षों में कांटे की टक्कर थी, अत: हर पक्ष उन्हें अधिक से अधिक प्रलोभन देना चाहता था.

दद्दा साहब राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी थे. कब कैसे पैंतरा बदला जाए वह भली प्रकार जानते थे. दल के  दिग्गजों ने जब सातों स्वतंत्र विधायकों को रात्रिभोज के लिए बुलाया तो उन सभी ने राजा बाबू को अपना नेता घोषित कर दिया था.

बातचीत का दौर प्रारंभ हुआ तो सातों को तरहतरह के प्रलोभन दिए जाने लगे.

‘‘आज्ञा हो तो मैं भी कुछ कहूं,’’ स्वतंत्र गुट की ओर से राजा बाबू बोले थे.

‘‘हां, बोलो बेटा, हमें भी तो पता चले कि आप लोग चाहते क्या हैं,’’ दद्दा साहब बोले थे.

‘‘अवश्य बताएंगे पर पहले भोजन कर लीजिए. इतना अच्छा भोजन सामने है, ऐसे में रंग में भंग डालने का हमारा कोई इरादा नहीं है,’’ स्वतंत्र विधायकों में से एक बंसी बाबू बोले थे.

हासपरिहास के बीच रात्रिभोज समाप्त हुआ था. स्वादिष्ठ आइसक्रीम के साथ सभी सोफों पर जा विराजे थे.

‘‘चलिए, अब काम की बात कर ली जाए,’’ कौशल बाबू और दद्दा समवेत स्वर में बोले थे, ‘‘क्या मांग है आप की?’’

‘‘हमारी तो एक ही मांग है. मुझे मुख्यमंत्री बनाया जाए और मेरे अन्य मित्रों को मंत्रिमंडल में स्थान मिले,’’ राजा बाबू गंभीर स्वर में बोले थे.

‘‘क्या?’’ जनतांत्रिक दल के दिग्गज नेताओं को मानो सांप सूंघ गया था.

‘‘तुम जानते हो न राजा बेटे कि तुम क्या कह रहे हो?’’ अंतत: मौन दद्दा साहब ने तोड़ा था.

‘‘जी हां, भली प्रकार से जानता हूं.’’

‘‘देखो राजा, दल में अनेक वयोवृद्ध नेताओं को छोड़ कर तुम्हें मुख्यमंत्री बनाएंगे तो दल में असंतोष फैल जाएगा. वैसे भी यह क्या कोई आयु है मुख्यमंत्री बनने की? इस गरिमापूर्ण पद पर तो कोई गरिमापूर्ण व्यक्तित्व ही शोभा देता है,’’ कौशल बाबू ने अपनी ओर से प्रयत्न किया था.

‘‘मैं ने आप को अपनी शर्तों के बारे में सूचित कर दिया है. अब गेंद आप के पाले में है. जैसे चाहें खेल को संचालित करें,’’ बंसी बाबू बोले थे.

‘‘राजा, कुछ देर के लिए मैं तुम से एकांत में विचारविमर्श करना चाहता हूं,’’ दद्दा साहब ने राजा बाबू को साथ के कक्ष में बुलाया था.

‘‘आप को जो कहना है हम सब के सामने कहिए. हम सब एक हैं. कहीं कोई दुरावछिपाव नहीं है,’’ बंसी बाबू ने राजा को रोकते हुए कहा था.

‘‘ठीक है, हम आपस में विचारविमर्श कर के आते हैं. फिर आप को सूचित करेंगे,’’ कहते हुए दद्दा साहब, कौशल बाबू और जनतांत्रिक दल के अन्य दिग्गज नेता उठ कर साथ के कमरे में चले गए थे.

‘‘समझता क्या है अपनेआप को? कल तक तो दरी बिछाने और लोगों को पानी पिलाने का काम करता था, आज मुख्यमंत्री बनने का स्वप्न देखने लगा है?’’ कौशल बाबू बहुत क्रोध में थे.

‘‘मत भूलिए कि सत्ता की चाबी अब उन के हाथ में है,’’ दद्दा साहब ने समझाया था.

‘‘इस का अर्थ यह तो नहीं है कि सारा राज्य इन नौसिखियों के हवाले कर दें.’’

‘‘सोचसमझ कर निर्णय लीजिए. नहीं तो गणतांत्रिक दल वाले तैयार बैठे हैं इन्हें लपकने को,’’ अंबरीष बाबू बोले थे.

‘‘निर्णय लेने को अब बचा ही क्या है? या तो उन की शर्तें माननी हैं या नहीं माननी हैं,’’ कौशल बाबू झुंझला गए थे.

बहुत बेमन से सभी दिग्गज नेता एकमत हुए थे. शायद वे समझ गए थे कि सत्ता में बने रहने का यही एकमात्र तरीका था.

दूसरे दिन जब एक साझी प्रेस कानफें्रस में जनतांत्रिक दल के स्वतंत्र विधायकों से गठबंधन की घोषणा की गई और राजा बाबू के नाम की घोषणा भावी मुख्यमंत्री के रूप में हुई तो सभी आश्चर्यचकित रह गए.

राजा बाबू ने कैमरों की फ्लैश- लाइटों के बीच दद्दा साहब के पैर छू कर आशीर्वाद लिया तो दद्दा साहब ने उन्हें गले से लगा लिया. वह समझ गए थे कि परिवर्तन की आंधी को रोकना अब उन के वश में नहीं था.

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