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लेखिका – Shakuntala Sharma

आयुष का बिलखने का स्वर सुन कर अंबिका लपक कर अपने ड्राइंगरूम में आई थी.

‘‘क्या हुआ, बेटे?’’ उस ने आयुष से पूछा.

‘‘पापा ने मारा,’’ आयुष गाल सहलाते हुए बोला.

‘‘यश, क्यों मारा तुम ने? 4 साल के बच्चे पर हाथ उठाते तुम्हें शर्म नहीं आई?’’ अंबिका गुस्से में पलटी, पर उस का स्वर तो मानो किसी पत्थर से टकरा कर लौट आया था. यश तक तो उस का स्वर शायद पहुंचा ही नहीं था.

एक क्षण के लिए अंबिका का मन हुआ कि बुरी तरह बिफर कर यश को इतनी खरीखोटी सुनाए कि वह फिर कभी नन्हे मासूम आयुष पर हाथ उठाने की बात सोच भी न सके. पर कुछ सोच कर चुप रह गई थी.

आयुष अब भी सिसक रहा था.

उस पर जान छिड़कने वाले पिता ने उसे क्यों मारा, यह बात उस की समझ से परे थी.

यश अपना फोन कान से लगाए न जाने किस से बातचीत में उलझा था. उस के लिए तो मानो अंबिका और आयुष हो कर भी नहीं थे वहां.

अंबिका ने आयुष को शांत कर के खिलापिला कर सुला तो दिया था पर उस के मुख पर चिंता की स्पष्ट रेखाएं थीं.

‘क्या हो गया था यश को? ऐसा तो नहीं था वह,’ अंबिका सोच में डूब गई.

परिवार का हीरेजवाहरात का पुराना कारोबार था जिसे यश और उस के बड़े भाई रतनराज मिल कर संभालते थे. उन के पिता ने घर और व्यापार का बंटवारा दोनों बेटों के बीच इतनी सावधानी से किया था कि दोनों के बीच मनमुटाव की गुंजाइश ही नहीं थी.

कारोबार में कुशल यश को जीवन की हर आकर्षक वस्तु से लगाव था. पार्टियां देना और पार्टियों में जाना हर रोज लगा ही रहता था, पर पिछले 3-4 माह से यश में आ रहे परिवर्तनों को देख कर वह हैरान थी. कभीकभी उसे लगता कि कहीं कुछ नहीं बदला, पर दूसरे ही क्षण वह कुछ घटनाओं को याद कर के घबरा उठती. हर क्षण उसे आभास होता कि यश अब पहले जैसा नहीं रहा, लेकिन बहुत सोचने पर भी उसे इस परिवर्तन का कारण समझ में नहीं आ रहा था.

कार स्टार्ट होने की आवाज सुनते ही अंबिका की तंद्रा टूटी थी. फोन पर हुई लंबी बातचीत के बाद यश कहीं चला गया था.

आयुष को उस के बिस्तर में सुला कर अंबिका बाहर निकली. वहां ड्राइवर माधव को चौकीदार से हंसीठिठोली करते देख हैरान रह गई.

‘‘तुम यहां बैठे हो, माधव? साहब की कार कौन चला कर ले गया है?’’

‘‘साहब अपनेआप चला कर ले  गए हैं. मुझे बुलाया ही नहीं,’’ माधव का उत्तर था.

‘‘तुम यहां रहते ही कब हो? पान खाने या सिगरेट पीने गए होगे. साहब कब तक तुम्हारी प्रतीक्षा करते?’’ अंबिका का सारा गुस्सा माधव पर ही उतरा था.

‘‘मैं तो यहीं चौकीदार के पास बैठा था. कार स्टार्ट होने की आवाज सुन कर भाग कर उन के पास पहुंचा, पर साहब ने मेरी ओर देखा तक नहीं.’’

‘‘ठीक है,’’ अंबिका अंदर चली गई.

सोफे पर बैठ कर अंबिका देर तक शून्य में ताकती रही. यही सब बातें तो हैं जो उस के मन को खटकती हैं. यश का इस तरह उसे बिना बताए चले जाना, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ. भीड़भाड़ वाली सड़कों पर स्वयं कार चलाने से यश सदा बचता था. यदि माधव जरा भी इधरउधर चला जाए तो वह चीखचिल्ला कर घर सिर पर उठा लेता था. आज वही यश माधव को छोड़ कर स्वयं ही चला गया. अंबिका को चिंता होने लगी. उस ने यश को कौल किया पर यश ने मोबाइल फोन स्विच औफ कर रखा था.

अंबिका को अब पूरा विश्वास हो चला था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. वह किसी से बात कर के अपने मन का बोझ हलका करना चाहती थी. अपने मातापिता को असमय फोन कर के वह परेशान नहीं कर सकती थी. यश के बड़े भाई रतनराज का विचार भी आया मन में, पर उन से फोन पर कुछ कहना ठीक न समझा. आखिर में उस ने अपनी प्रिय सहेली हर्षिता को फोन लगाया. हर्षिता उस की सब से करीबी सहेली तो थी ही, संकट की घड़ी में उस पर आंख मूंद कर विश्वास भी किया जा सकता था.

हर्षिता से फोन पर बात करते हुए अंबिका का गला भर आया, आवाज भर्रा गई.

‘‘क्या बात है, अंबिका? तुम इतनी परेशान हो और मुझे बताया तक नहीं. ये सब बातें फोन पर नहीं होतीं. तुम इंतजार करो. मैं 5 मिनट में तुम्हारे घर पहुंचती हूं,’’ हर्षिता ने आश्वासन दिया.

कुछ ही देर में हर्षिता उस के घर में थी. आते ही बोली, ‘‘अब विस्तार से बता, बात क्या है?’’

उत्तर में अंबिका उस के गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘पता नहीं हमारे हंसतेखेलते घर को किस की नजर लग गई, हर्षिता. यश को न अब मेरी चिंता है न आयुष की.’’

‘‘तुम ने उस से बात करने का प्रयत्न किया?’’

‘‘कई बार, पर यश कुछ बोलता ही नहीं. बस, मूक बन कर बैठा रहता है.’’

‘‘सारे लक्षण तो वही हैं, तुझे बहुत सावधानी से काम लेना पड़ेगा,’’ हर्षिता किसी बड़े विशेषज्ञ की तरह बोली.

‘‘कैसे लक्षण?’’

‘‘प्रेमरोग के लक्षण. मैं तो तुझे बहुत समझदार समझती थी, पर तू तो निरी बुद्धू निकली. मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि यश के जीवन में कोई और स्त्री आ गई है. उसी ने तुम लोगों के जीवन में उथलपुथल मचा दी है.’’

‘‘मैं नहीं मानती. यश में चाहे कितनी भी बुराइयां हों पर उस के चरित्र में कोई खोट नहीं है.’’

‘‘बड़ी भोली हो तुम. ऐसी स्त्रियां बहुत फरेबी होती हैं. इन के प्रभाव से तो विश्वामित्र जैसे ऋषिमुनि भी नहीं बच सके थे. यश तो फिर भी मनुष्य है.’’

‘‘ठीक है. मैं कल ही यश से बात करूंगी.’’

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. मैं ने कहा न, तुम्हें सावधानी से काम  लेना पड़ेगा.’’

‘‘तो क्या करूं?’’

‘‘तुम्हें यश की हर गतिविधि पर नजर रखनी होगी. अच्छा होगा कि एक डायरी बना लो और उस में प्रतिदिन की घटनाएं लिखती जाओ.’’

‘‘पर कौन सी घटनाएं?’’

‘‘यही कि यश कब आता है, कब जाता है, किसकिस से मिलताजुलता है. घर आने पर उस की हर चीज का ध्यान से निरीक्षणपरीक्षण करो. सब से बड़ी बात कि यश के विरुद्ध कुछ सुबूत इकट्ठा करो.’’

‘‘उस से क्या होगा, मैं कौन सा उस के विरुद्ध कोर्टकचहरी के चक्कर लगाऊंगी?’’ अंबिका बोली.

‘‘तुम कुछ समझती नहीं हो. जब तुम यश पर किसी और स्त्री के चक्कर में होने का आरोप लगाओगी तो सुबूत तो पेश करने ही होंगे.’’

‘‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी. मुझे पूरा विश्वास है कि यश बेवफा हो ही नहीं सकता. तुम्हें तो स्वयं पता है कि यश किस तरह हमारा खयाल रखता था.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो. हम सब यश का उदाहरण देते थकते नहीं थे, पर अब तुम खतरे की घंटी स्वयं सुन रही हो तो तुम क्या अपने परिवार को सुरक्षित नहीं रखना चाहोगी?’’ हर्षिता ने प्रश्न किया.

‘‘क्यों नहीं, इसीलिए तो तुम्हें फोन किया था. पर मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती कि स्थिति और बिगड़ जाए.’’

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