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‘‘कुछ नहीं होगा. तुम्हें केवल थोड़ा सावधान रहना होगा. तुम कहती हो कि यश लंबे समय तक फोन पर बात करता है. कम से कम फोन नंबर पता करो. एक दिन जैसे ही यश घर से निकले, तुम पीछा करो. पता तो लगे कि सचाई क्या है?’’

‘‘मैं कोशिश करूंगी, हर्षिता, पर कोई वादा नहीं करती.’’

‘‘मेरे चाचाजी पुलिस में बड़े अफसर हैं. तुम चाहो तो हम उन की मदद ले सकते हैं. वे यश से बातचीत कर के कोई न कोई समाधान अवश्य निकाल लेंगे,’’ हर्षिता ने सुझाव दिया था.

‘‘नहीं, हर्षिता, यह परिवार के सम्मान की बात है. रतन भैया को सूचित किए बिना मैं ने ऐसा कुछ किया तो वे नाराज होंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम अच्छी तरह सोचविचार लो. क्या करना है, यह निर्णय तो तुम्हें ही लेना होगा. पर तुम्हें जब भी मेरी मदद की जरूरत हो, मैं तैयार हूं. स्वयं को कभी अकेला मत समझना,’’ हर्षिता ने आश्वासन दे कर विदा ली.

अंबिका देर तक अकेली बैठी सोचती रही. कहीं से कोई प्रकाश की किरण नजर नहीं आ रही थी. तभी अचानक उसे याद आया कि 3 दिन बाद ही आयुष का जन्मदिन है. हर वर्ष आयुष का जन्मदिन वे बड़ी धूमधाम से मनाते रहे हैं. उसे लगा कि इतनी सी बात भला उसे समझ में क्यों नहीं आई. पिछले जन्मदिन पर सब ने कितना धमाल किया था.

पांचसितारा होटल में ऐसी शानदार थीम पार्टी का आयोजन किया था यश ने कि सब ने दांतों तले उंगली दबा ली थी.

अंबिका को बड़ी राहत मिली थी. यश अवश्य ही आयुष के जन्मदिन पर ‘सरप्राइज पार्टी’ का आयोजन कर रहा है. तभी तो उस ने कुछ बताया नहीं. आज आने दो घर, खूब खबर लूंगी. कम से कम गेस्ट लिस्ट के बारे में तो उस से सलाह लेनी ही चाहिए थी.

इसी ऊहापोह में कब आंख लग गई, अंबिका को पता ही नहीं लगा. पर जब नींद खुली और यश का बिस्तर खाली देखा तो वह धक् से रह गई. यश रात को घर लौटा ही नहीं था. यदि वह घर नहीं लौटा तो उसे वह कहां ढूंढ़ने जाए. फूटफूट कर रोने का मन हो रहा था पर इस कठिन समय में आंसू भी उस का साथ छोड़ गए थे.

उस ने मशीनी ढंग से आयुष को तैयार कर स्कूल भेजा. तभी यश की कार की आवाज आई तो वह लपक कर मुख्यद्वार पर पहुंची.

‘‘कहां थे अब तक? कम से कम एक फोन ही कर दिया होता. चिंता के कारण मेरा बुरा हाल था. कल शाम से खाना तो क्या, मुंह में पानी की बूंद तक नहीं गई है,’’ अंबिका एक ही सांस में बोल गई थी पर यश बिना कोई उत्तर दिए अंदर चला गया.

‘‘मैं कुछ पूछ रही हूं, यश. मुझे अपने प्रश्नों के उत्तर चाहिए.’’

‘‘बाहर नौकरों के सामने तमाशा करने की क्या जरूरत है? ये प्रश्न घर में आ कर भी पूछे जा सकते हैं,’’ यश बोला.

‘‘तो अब बता दो, यश. रातभर कहां थे तुम? और यह भी कि मुझ से ऐसा क्या अपराध हो गया है कि तुम ने इस तरह मुंह फेर लिया है? तुम बहुत बदल गए हो, यश.’’

‘‘समय के साथ हर व्यक्ति बदल जाता है. तुम्हें नहीं लगता कि तुम आजकल इतने प्रश्न पूछने लगी हो कि स्वयं एक प्रश्नचिह्न बन कर रह गई हो. बारबार मैं कहां गया था, क्यों गया था जैसे प्रश्न मत किया करो, क्योंकि मेरे पास इन के उत्तर हैं ही नहीं. तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. कल से पानी भी नहीं पिया, जैसे ताने दे कर अपनी निरीहता भी मुझे मत दिखाओ. घर में क्या खाने का सामान नहीं है? मेरी 10 से 5 की नौकरी नहीं है. तुम लोगों के ऐशोआराम के लिए बहुत खटना पड़ता है. हर समय इन बातों का ब्योरा मत मांगा करो,’’ यश ने टका सा उत्तर दिया था. हालांकि मीठा बोल बोलने वाले यश ने अपना स्वर ऊंचा नहीं किया, पर उस की बातों से अंबिका का दिल छलनी हो गया.

अगले दिन आयुष का जन्मदिन था. सुबह से ही उसे शुभकामनाएं देने वालों के फोन आने लगे थे. पर यश भोर में ही उठ कर कहीं चला गया था. आयुष कई बार पूछ चुका था कि उस के जन्मदिन की पार्टी कहां होगी?

‘सरप्राइज पार्टी’ की प्रतीक्षा करते हुए शाम घिर आई थी. आयुष कंप्यूटर गेम्स खेलने में व्यस्त था. अपने जन्मदिन की बात शायद अब वह भूल ही गया था.

‘‘आयुष, कहां हो तुम? अंबिका, यश, घर में कोई है या नहीं?’’ जैसे प्रश्नों से सारा घर गूंज उठा था. यश के बड़े भाई रतनलाल, उन की पत्नी अंजलि व उन के दोनों बच्चे आए थे.

‘‘तुम लोग तो हमें याद करते नहीं, हम ने सोचा हम ही मिल आएं. आयुष बेटे, जन्मदिन मुबारक हो,’’ रतन ने बड़ा सा डब्बा आयुष को पकड़ा दिया.

‘‘इस की जरूरत नहीं थी, भाईसाहब. हम कोई पार्टी नहीं कर रहे,’’ अंबिका उदास स्वर में बोली.

‘‘पार्टी नहीं भी कर रहे तो क्या हुआ? आयुष को जन्मदिन का उपहार तो मिलना ही चाहिए,’’ अंजलि ने प्यार से आयुष का माथा चूम लिया.

‘‘यश कहां है? तुम लोग आजकल रहते कहां हो, महीनों से यश घर नहीं आया? तुम भी हमें भूल ही गई हो,’’ अंजलि ने उलाहना दिया.

उत्तर में अंबिका के मुख से एक शब्द भी नहीं निकला. वह स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सकी और फफक कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ?’’ अंजलि और रतन ने हैरानपरेशान स्वर में पूछा. बच्चे भी टकटकी लगा कर अंबिका को ही घूर रहे थे.

‘‘तुम लोग अंदर जा कर खेलो,’’ रतन ने बच्चों से कहा.

अंबिका ने आंसुओं को संभालते हुए रतन और अंजलि को सबकुछ बता दिया.

‘‘यश के रंगढंग बदले हुए हैं, यह तो मुझे भी लगा था. आजकल उस की किसी काम में रुचि नहीं रही, पर तुम लोगों के घरेलू जीवन में ऐसी उथलपुथल मची हुई है, इस की तो हम ने कल्पना भी नहीं की थी.

‘‘चिंता मत करो, अंबिका. मैं एकदो दिन में सब पता कर लूंगा. पहले तो मैं कल ही बच्चू से सब उगलवा लूंगा. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. आज आयुष के जन्मदिन की पार्टी हम ‘इंद्रप्रस्थ रिजोर्ट’ में करेंगे,’’ रतन ने कहा.

इंद्रप्रस्थ रिजोर्ट में आयुष का जन्मदिन मना कर रात में देर से लौटी थी अंबिका. आयुष प्रसन्नता से झूम रहा था.

अगली सुबह अंबिका पर मानो वज्रपात हुआ. फोन की घंटी बजी तो उनींदी सी अंबिका ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, क्या मैं अंबिका राज से बात कर सकती हूं?’’ दूसरी ओर से किसी स्त्री का स्वर गूंजा था.

‘‘बोल रही हूं,’’ अंबिका बोली.

‘‘तुम से अधिक बेशर्म स्त्री मैं ने दूसरी नहीं देखी. जब यशराज तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता तो क्यों उस के गले पड़ी हो? छोड़ क्यों नहीं देतीं उसे?’’

‘‘कौन हो तुम? और मुझ से इस तरह बात करने का साहस कैसे हुआ तुम्हारा?’’ अंबिका की नींद हवा हो गई थी. वह ऐसे तड़प उठी मानो किसी ने बिजली का नंगा तार छुआ दिया हो.

‘‘मैं कौन हूं, यह महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, मैं जो कह रही हूं वह महत्त्वपूर्ण है. यशराज तुम्हारे साथ नहीं, मेरे साथ जीवन बिताना चाहता है. अपना और अपने बेटे का भला चाहती हो तो तुरंत बिस्तर बांधो और मुक्त कर दो मेरे यश को.’’

‘‘नहीं तो क्या कर लोगी तुम?’’ अंबिका चीखी.’’

‘‘यह तो समय आने पर ही पता चलेगा,’’ दूसरी ओर से अट्टहास सुनाई दिया.

काफी देर तक अंबिका पत्थर की मूर्ति की भांति बैठी रह गई. धीरेधीरे दिन बीता, शाम आई. देर रात गए यश घर लौटा और सोफे पर ही पसर गया. वह अब भी गहरी नींद में था.

पर आज अंबिका के संयम का बांध टूट गया. उस ने झिंझोड़ कर यश को जगाया. हैरान यश आंखें मलते हुए उठ बैठा.

‘‘तुम्हारी प्रेमलीला इस सीमा तक पहुंच जाएगी यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था. पर मेरे जीवन में जहर घोल कर तुम इस तरह चैन से नहीं सो सकते,’’ अंबिका बिफर उठी.

‘‘बात क्या है, अंबिका? इस तरह रोष में क्यों हो?’’

‘‘मेरे रोष का कारण जानना चाहते हो तुम? मुझ से मुक्ति चाहते हो? एक बार कह कर तो देखते, मैं यह उपकार भी कर देती. पर तुम ने तो अपनी प्रेमिका से कहलवा कर मुझे अपमानित करना ही उचित समझा.’’

‘‘किस ने अपमानित किया तुम्हें, अंबिका?’’ यश सन्न रह गया.

‘‘सबकुछ जानते हुए बनने का प्रयत्न मत करो. तुम्हारी सहमति के बिना किसी का मुझ से इस तरह बात करने का साहस नहीं हो सकता.’’

‘‘आओ, अंबिका, यहां बैठो मेरे पास. मैं तुम्हें सब सच बताऊंगा. मैं ने आज तक तुम्हें कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि जिस नर्क की आग में मैं जल रहा था, वह मेरे हंसतेखेलते परिवार को भस्म कर दे. पर अब शायद पानी सिर से गुजर गया है.’’

‘‘कौन है वह? मुझे इस तरह धमकी देने का साहस कैसे हुआ उस का?’’

‘‘वह? एक डांसर है. बार में, होटलों में और छोटेमोटे उत्सवों में नाचगा कर अपना काम चलाती है. मेरा परिचय उस से मेरे मित्र तेजाश्री ने कराया था. मैं भी शराब के नशे में शायद बहक गया था. तब से वह मुझे यह कह कर ब्लैकमेल करती रही कि मेरे संबंध के बारे में वह तुम्हें बता देगी, पत्रपत्रिकाओं में फोटो छपवा देगी. अब तक वह मुझ से लाखों रुपए ऐंठ चुकी है और अब उस ने मुझ पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि तुम्हें छोड़ कर उस से विवाह कर लूं वरना अपने गुंडों से हमारे पूरे परिवार को तबाह करवा देगी.’’

‘‘इतना कुछ हो गया और तुम ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी. पतिपत्नी यदि सुखदुख के साथी न हों तो दांपत्य जीवन का अर्थ ही क्या है?’’ अंबिका क्रोधित स्वर में बोली.

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