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शरण काका भी अजीब हैं. लोग बेटी के नाम से घबराते हैं और काका का दिल ऐसा है कि दूसरे की बेटी को भी अपना मानते हैं.

काजल दीदी की शादी के समय विनी अपनी परीक्षा में व्यस्त थी. काकी उस के परीक्षा विभाग को रोज कोसती रहतीं. हलदी की रस्म के एक दिन पहले तक उस की परीक्षा थी. काकी कहती रहती थीं, ‘विनी को फुरसत होती तो मेरा सारा काम संभाल लेती. ये कालेज वाले परीक्षा लेले कर लड़की की जान ले लेंगे,’ शांत और मृदुभाषी विनी उन की लाड़ली थी.’

आखिरी पेपर दे कर विनी जल्दीजल्दी काजल दीदी के पास जा पहुंची. उसे देखते काकी की तो जैसे जान में जान आ गई. काजल के सभी कामों की जिम्मेदारी उसे सौंप कर काकी को बड़ी राहत महसूस हो रही थी. उन्होंने विनी के घर फोन कर ऐलान कर दिया कि विनी अब काजल की विदाई के बाद ही घर वापस जाएगी.

शाम के वक्त काजल के साथ बैठ कर विनी उन का सूटकेस ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने शृंगार का सामान तो खरीदा ही नहीं है. मेहंदी की भी व्यवस्था नहीं है. वह काकी से बात कर भागीभागी बाजार से सारे सामान की खरीदारी कर लाई. विनी ने रात में देर तक बैठ कर काजल दीदी को मेहंदी लगाई. मेहंदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं. शायद किसी और ने पहन ली होंगी. शादी के घर में तो यह सब होता ही रहता है. घर मेहमानों से भरा था. बरामदे में उसे किसी की चप्पल नजर आई. वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई. रात में वह दीदी के बगल में रजाई में दुबक गई. न जाने कब बातें करतेकरते उसे नींद आ गई.

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