‘‘अम्माजी, उन्हें क्या पता कि किस समय कौन सी दवा डालनी है.’’
‘‘तुम से तो कुछ कहना ही बेकार है. लो, डालो.’’
शाम को मनोहर को जल्दी आया हुआ देख श्यामाजी बोलीं, ‘‘आज तो तुम बहुत जल्दी आ गए. क्या बात है?’’
‘‘हां, अम्मा. हम ने सोचा, मोहिनी आई है, इन्हें अमीनाबाद की चाट खिला दें और हजरतगंज से शौपिंग करवा दें.
‘‘और अम्मा, आप को आंख से अब साफ दिख रहा है? अब तो चश्मा भी आप का बन कर कल आ जाएगा.’’
‘‘नहीं बेटा. धुंधलाधुंधला ही दिखता है.’’
‘‘डाक्टर साहब तो कह रहे थे कि माताजी की आंख की रोशनी बहुत अच्छी आई है.’’
‘‘तुम उन्हीं की बात मानो. हमारा क्या है?’’ श्यामाजी ने नाराजगी दिखाते हुए मुंह फेर कर करवट ले ली.
मनोहर लडि़याते हुए अम्मा का पैर दबाते हुए बोला, ‘‘मेरी अच्छी अम्मा, आप नाराज मत हुआ करो.’’
मनोहर ने बहन मोहिनी को आवाज दी, ‘‘मोहिनी, जल्दी आओ.’’
मोहिनी और मानसी दोनों तैयार हो कर आ गईं. श्यामाजी ने कनखियों से उन लोगों पर निगाह मार ली थी.
‘‘मंजरी कहां है?’’
मानसी बोली, ‘‘वह कह रही है मुझे पढ़ना है.’’
‘‘ठीक है, वह अम्मा के पास रहेगी. इसी कमरे में पढ़ेगी.’’
‘‘जी, अच्छा.’’
मानसी बोली, ‘‘अम्मा, आप के लिए कुछ लाना है तो बता दीजिए.’’
‘‘न, मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’
उन लोगों के जाते ही मंजरी दादी के कमरे में आ गई. श्यामाजी ने मंजरी से टीवी चलाने को कहा और आराम से सीरियल का आनंद उठाने लगीं.
‘‘दादी, आप तो कह रही थीं कि मुझे धुंधला दिखता है, फिर टीवी कैसे देख रही हैं?’’
मंजरी की बात अनसुनी कर के श्यामाजी दत्तचित्त हो कर टीवी में मग्न रहीं.
थोड़े समय बाद बाहर से हंसतीखिलखिलाती मोहिनी मानसी के आने की आहट सुनते ही उन्होंने आंख लग जाने का अभिनय किया.
जम्हाई लेते हुए घड़ी पर निगाह डालते हुए बोलीं, ‘‘कितने बज गए. बड़ी जल्दी आ गईं. सारा बाजार ही खरीद लाईं क्या?’’
मोहिनी प्रसन्न मन से बोली, ‘‘भैयाभाभी माने ही नहीं. 5 साडि़यां तो मुझे ही दिला दीं. चीनानीना के लिए जींसटौप और मदनजी के लिए भी सूट दिलवा दिया.’’
श्यामाजी धीरे से बोलीं, ‘‘महारानीजी अपने लिए कितनी साडि़यां लाई हैं.’’
‘‘अम्मा, तुम भी, भाभी ने तो अपने लिए एक भी नहीं ली है. भैया इतना कहते रहे, लेकिन उन्होंने कह दिया कि मेरे पास बहुत सारी नई रखी हैं. मैं अभी नहीं लूंगी.’’
‘‘कुछ नहीं, तुम्हारे सामने दिखावा कर रही थी.’’
‘‘अम्मा, तुम कब समझोगी कि भाभी बहुत अच्छी हैं.’’
‘‘तुम्हें क्या मालूम? रोज एक नई साड़ी पहनती है.’’
‘‘अम्मा, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारी बहू अच्छे कपड़े पहन कर सजधज कर रहती है.’’
‘‘मोहिनी, अब बस भी करो. आज तुम्हारा भाभीपुराण कुछ ज्यादा ही हो रहा है. हम देख रहे हैं कि अब तुम्हें मेरी कोई परवा नहीं है. मेरी आंखों का औपरेशन हुए पूरे 20 दिन हो गए. तुम मुझे देखने तक नहीं आईं.’’
‘‘अम्मा, हम तो आ रहे थे लेकिन भैया ने कहा कि मोहिनी, हफ्तेभर बाद आना. तब मंजरी के सैमैस्टर हो चुकेंगे. औपरेशन जैसा कुछ नहीं है. केवल लैंस बदल दिया गया है. अम्मा बिलकुल ठीक हैं.’’
‘‘हांहां, मनोहर को तो अम्मा ठीक ही लगती है. सुबहशाम तुम्हारा इंतजार करती रही कि मोहिनी अब आ रही है, अब आ रही है. मन की बात कहती तो कहती किस से?’’
‘‘अम्मा, कोई परेशानी हो तो बताओ. क्या भाभी आप का ध्यान नहीं रखतीं?’’
‘‘कुछ नहीं बिटिया, तुम से चार घड़ी दिल की बात कर लेते हैं तो मन हलका हो जाता है.
‘‘बहू को दिनभर घर के कामों से और फिर घूमनाफिरना व किट्टी पार्टियों से भला फुरसत कहां रहती है. मैं उस से ज्यादा बात नहीं करती. मुझे वह शुरू से पसंद नहीं है. मंजरी का पढ़ाई, ट्यूशन, कालेज, मोबाइल और लैपटौप से समय ही नहीं बचता. मनोहर कभी घड़ी दो घड़ी पास में खड़ा हो जाता है.
‘‘‘अम्मा कैसी हो? कोई चीज की जरूरत हो तो बताओ.’ 5-10 हजार की गड्डी हाथ में पकड़ा देता है. इस से ज्यादा कुछ नहीं. अब हम रुपयों का क्या करेंगे. ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे हाथ पर रख देंगे और सब खर्च ये लोग करते ही हैं. इसीलिए अकेलापन बहुत लगता है. इतना बड़ा दिन काटे नहीं कटता.’’
‘‘हां, अम्मा. आप सही कह रही हो. मैं भी दिनभर घर में अकेली ही रहती हूं. ये दिनभर औफिस में रहते हैं. चीना और नीना को कालेज और औफिस से फुरसत ही नहीं रहती. घर में रहती हैं तो लैपटौप और मोबाइल से चिपकी रहती हैं. बस, यह है कि घर के कामों में मेरा दिन बीत जाता है.’’
‘‘मोहिनी, जब मेरा शरीर चलता था तो मुझे भी पता नहीं चलता था. महीनों से मंजरी से कह रही हूं, मेरी अलमारी की साफसफाई कर के ठीक से लगा दो. लेकिन वह क्यों सुने? बहू ने ही सिखापढ़ा दिया होगा, नहीं तो वह पहले ऐसी नहीं थी, एक बार कहने में ही तुरंत कर देती थी. एकएक काम के लिए सब की खुशामद करनी पड़ती है.’’
‘‘अम्मा, कल सुबह हम आप की अलमारी की सफाई कर देंगे. आप छोटीछोटी बातों के लिए परेशान मत हुआ करो. आप को अब क्या करना है? सबकुछ मानसी भाभी को सौंप दो और निश्ंिचत हो कर रहो. भैया अच्छा कमा रहे हैं, भाभी आप का पूरा ध्यान रखती ही हैं. मंजरी तो बच्ची है. मेरी भी बेटियां हर काम से जान बचाती हैं.’’
‘‘देखो लल्ली, हर समय भैयाभाभी, भैयाभाभी मत किया करो, अभी जाने कितनी लंबी जिंदगी बाकी है. इन जेवरों के लालच में कम से कम दो वक्त इज्जत से 2 रोटी तो मिल जाती हैं.’’
मन ही मन मोहिनी ने सोचा, इन को समझाना बहुत कठिन है, ‘‘छोड़ो अम्मा, सो जाओ, मुझे बहुत जोर से नींद आ रही है.’’
‘‘लल्ली बिटिया, तुम 2 दिन के लिए ही क्यों आईं? कल भर रहोगी, परसों सुबह जाने को कह रही हो.’’
‘‘अम्मा, बेटियों को घर पर अकेले छोड़ने में डर लगता है न.’’
‘‘हां, यह बात तो है. आजकल जमाना बहुत खराब है.’’
अगली सुबह श्यामाजी मुंह अंधेरे ही मोहिनी के जागने का इंतजार कर रही थीं.
‘‘लल्ली, लल्ली, मेरी अलमारी अभी ठीक करोगी?’’
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