‘‘क्या मतलब?’’
अब चौंकने की बारी चंद्रा की थी. हंसने लगा मैं. तभी हमारे कुछ सहयोगी मुझे देखने चले आए. मुझे हंसते देखा तो आंखें तरेरने लगे.
‘‘वर्माजी, यह क्या तमाशा है. हमें दौड़ादौड़ा कर मार दिया और आप यहां तमाशा करने में लगे हैं.’’
‘‘इन के परिवार का पता है क्या आप के पास? कृपया मुझे दीजिए. मैं इन की पत्नी को बुला लेना चाहती हूं. ऐसी हालत में उन का यहां होना बहुत जरूरी है.’’
पलट कर चंद्रा ने उन आने वालों से सारी बात करना उचित समझा. कुछ पल को चुप हो गए सब के सब. बारीबारी से एकदूसरे का चेहरा देखा और सहसा सब सच सुना दिया.
‘‘इन की तो शादी ही नहीं हुई... पत्नी का पता कहां से लाएंगे...वर्माजी, आप ने इन्हें बताया नहीं है क्या?’’
‘‘अपनी सहपाठी से इतने सालों बाद मिले, कल रात देर तक पुरानी बातें भी करते रहे तो क्या आप ने अपने बारे में इतना सा भी नहीं बताया?’’
‘‘इन्होंने पूछा ही नहीं, मैं बताता कैसे?’’
‘‘श्रीमती गोयल, आप वर्माजी के साथ पढ़ती थीं. ऐसी कौन लड़की थी जिस की वजह से वर्माजी ने शादी ही नहीं की. क्या आप को जानकारी है?’’
‘‘नहीं तो, ऐसी तो कोई नहीं थी. मुझे तो याद नहीं है...क्यों सोम? कौन थी वह?’’
‘‘सब के सामने क्यों पूछती हो. कुछ तो मेरी उम्र का खयाल करो. तुम्हारी यह आदत मुझे आज भी अच्छी नहीं लगती.’’
‘‘कौन थी वह, सोम? जिस का मुझे ही पता नहीं चला.’’
‘‘बस, हो गया न मजाक,’’ मैं जरा सा चिढ़ गया.
‘‘तुम जाओ चंद्रा. मैं अब ठीक हूं. यह लोग रहेंगे मेरे पास.’’
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