लेखिका- वीना श्रीवास्तव
‘‘तनु, आज क्लास के बाद मिलते हैं,’’ परख ने उसे रोकते हुए कहा. वह तनीषा को तनु ही पुकारता था.
‘‘ठीक है परख. लेकिन आज मेरा प्रैक्टिकल है वह भी लास्ट पीरियड में, उस के तुरंत बाद घर भी जाना है. जानते हो न जरा सी भी देर होने पर मां कितनी नाराज होती हैं.’’‘‘परख को तनु की भावनाओं का बहुत अच्छी तरह भान था फिर भी उस ने मुसकराते हुए जाने के लिए अपने पैर आगे बढ़ाए.
‘‘ठीक है, पर मैं ने भी कह दिया. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कहते हुए परख चला गया.तनीषा मन ही मन मुसकरा रही थी परख की बेसब्री देख कर.तनीषा मानव विज्ञान में एम.ए. द्वितीय वर्ष की छात्रा थी. जबकि परख उस का सीनियर था. वह मानव विज्ञान में ही रिसर्च कर रहा था. अकसर पढ़ाई में उस की सहायता भी करता था. हालांकि तनु से एक वर्ष ही सीनियर था. किंतु जब कभी प्रोफैसर नहीं आते थे तब वही प्रैक्टिकल भी लेता था.
उस के समझाने का अपना एक अलग ही अंदाज था और उस के इसी लहजे पर तनु फिदा रहती थी. परख भी तनीषा के प्रति एक अव्यक्त सा आकर्षण महसूस करता था. उस का चंपई गोरा रंग, चमकती काली आंखें, लहराते काले बाल सभी तो उसे सम्मोहित करते थे. विभाग में सभी लोग इन दोनों के प्यार से वाकिफ थे. कभीकभी छेड़ते भी थे. लेकिन कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते.
तनीषा के मातापिता को भी इस की भनक लग गई और उन्होंने तनु से इस की पूछताछ शुरू कर दी.‘‘तनु सच क्या है, मुझे बता. ये परख कौन है? क्यों शुभ्रा उस का नाम ले कर तुझे चिढ़ा रही थी?’’‘‘कोई नहीं मां, मेरा सीनियर है. हां, नोट्स बनाने या प्रैक्टिकल में कभीकभी हैल्प कर देता है. बस और कुछ नहीं,’’ तनु ने मां कि उत्सुकता को शांत करने का प्रयास किया.‘‘अगर ऐसा है तो ठीक, अन्यथा मुझे कुछ और सोचना पड़ेगा,’’ मां ने धमकाते हुए कहा.
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