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लेखिका : नीलिमा टिक्कू

‘‘रमियाजी, रुकिए,’’ कानों में मिश्री घोलता मधुर स्वर सुन कर कुछ देर के लिए रमिया ठिठक गई फिर अपने सिर को झटक कर तेज कदमों से चलते हुए सोचने लगी कि उस जैसी मामूली औरत को भला कोई इतनी इज्जत से कैसे बुला सकता है, जिस को पेट का जाया बेटा तक हर वक्त दुत्कारता रहता है और बहू भड़काती है तो बेटा उस पर हाथ भी उठा देता है. बाप की तरह बेटा भी शराबी निकला. इस शराब ने रमिया की जिंदगी की सुखशांति छीन ली थी. यह तो लाल बंगले वाली अम्मांजी की कृपा है जो तनख्वाह के अलावा भी अकसर उस की मदद करती रहती हैं. साथ ही दुखी रमिया को ढाढ़स भी बंधाती रहती हैं कि देवी मां ने चाहा तो कोई ऐसा चमत्कार होगा कि तेरे बेटाबहू सुधर जाएंगे और घर में भी सुखशांति छा जाएगी.

तभी किसी ने उस के कंधे पर हाथ स्वयं रखा, ‘‘रमिया, मैं आप से ही कह रही हूं.’’

हैरानपरेशान रमिया ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक युवती उसे देख कर मुसकरा रही थी.

हकबकाई रमिया बोल उठी, ‘‘आप कौन हैं? मैं तो आप को नहीं जानती... फिर आप मेरा नाम कैसे जानती हैं?’’

युवती ने अपने दोनों हाथ आसमान की तरफ उठाते हुए कहा, ‘‘सब देवी मां की कृपा है. मेरा नाम आशा है और हमारी अवतारी मां पर माता की सवारी आती है. देवी मां ने ही तुम्हारे लिए कृपा संदेश भेजा है.’’

रमिया अविश्वसनीय नजरों से आशा को देख रही थी. उस ने थोड़ी दूर खड़ी एक प्रौढ़ महिला की तरफ इशारा किया जोकि लाल रंग की साड़ी पहने थी और उस के माथे पर सिंदूर का टीका लगा हुआ था.

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