सिर्फ 3 महीने के अंदर राकेश की हंसीखुशी से भरी दुनिया जबरदस्त उथलपुथल का शिकार हो गई.
विश्व बाजार में आई आर्थिक मंदी से उस का तांबे का व्यापार भी प्रभावित हुआ था. अपनी पूंजी डूब जाने के साथसाथ सिर पर भारी कर्जा और हो गया था. कहीं से भी आगे कर्ज मिलने की उम्मीदें खत्म हो गई थीं. बाजार में पैसा था ही नहीं.
ऐसे कठिन समय में पत्नी सीमा भी उस का साथ छोड़ कर दोनों बच्चों के साथ मायके चली गई. उसे दुख इस का भी था कि ऐसा करने की न तो सीमा ने उस से इजाजत ली और न उसे इस कदम को उठाने की जानकारी ही दी.
जिस औरत ने 18 साल पहले अग्नि को साक्षी मान कर हमेशा सुखदुख में उस का साथ निभाने की सौगंध खाई थी, उस से ऐसे रूखे व कठोर व्यवहार की कतई उम्मीद राकेश को नहीं थी.
जबरदस्त तनाव से जूझ रहे राकेश का मन अकेले घर में घुसने को राजी नहीं हुआ, तो वह सीमा को मनाने के लिए अपनी ससुराल चला आया.
वहां उस की बेटी शिखा और बेटा रोहित ही उसे देख कर खुश हुए. सीमा, उस के मातापिता और भैयाभाभी शुष्क और नाराजगी भरे अंदाज में उस से मिले.
राकेश खुद को अंदर से बड़ा थका और टूटा हुआ सा महसूस कर रहा था. इस वक्त वह नींद की गोली खा कर सोना चाहता था पर मजबूरन उसे अपनी पत्नी व ससुराल वालों के साथ बहस में उलझना पड़ा.
‘‘क्या हम ने अपनी बेटी तुम्हें मारपीट कर के दुखी रखने के लिए दी थी?’’ बड़े आक्रामक अंदाज में यह सवाल पूछ कर उस के ससुर सोमनाथजी ने वार्तालाप शुरू किया.