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‘‘सुनिए, हम प्रथम की शादी  अपनी पसंद की लड़की से करेंगे या फिर प्रथम की?’’ एक रात रमा ने योगेश से पूछा. ‘‘तुम भी न, बिना सिरपैर की बातें करती हो. अरे भई, आजकल बच्चों की शादी की जाती है, उन पर थोपी नहीं जाती. सीधी सी बात है, यदि प्रथम ने किसी को पसंद कर रखा है तो फिर वही हमारी भी पसंद होगी. तुम तो बस उस के मन की थाह ले लो,’’ योगेश ने अपना मत स्पष्ट किया. सुन कर रमा को यह राहत मिली कि कम से कम इस मुद्दे पर तो घर में कोई बवाल नहीं मचेगा.

‘‘प्रथम, तुम्हारी मौसी ने 2-3 लड़कियों के बायोडाटा भेजे हैं. तुम्हें व्हाट्सऐप कर दूं?’’ एक दिन रमा ने बेटे का दिल टटोलने की मंशा से कहा.

‘‘अरे मां, तुम मेरी पसंद तब से जानती हो जब मैं खुद भी कुछ नहीं जानता था, तुम से बेहतर चुनाव मेरा नहीं हो सकता. तुम्हें जो ठीक लगे, करो,’’ प्रथम ने स्पष्ट कह दिया. उस के इस जवाब से  यह तो साफ था कि वह अरेंज मैरिज चाहता है. रमा के दिल से एक बोझ उतरा. लेकिन, अब दूसरा बोझ सवार हो गया.

‘कहीं मेरी पसंद की लड़की प्रथम की पसंद न बन सकी तो? कहीं मुझ से लड़की को पहचानने में चूक हो गई तो? फोटो, बायोडाटा और एकदो मुलाकातों में आप किसी को जान ही कितना पाते हो? अगर कुछ अनचाहा हुआ तो प्रथम तो सारा दोष मुझ पर डाल कर जिंदगीभर मुझे कोसता रहेगा. तो फिर कैसे चुनी जाए सर्वगुणसंपन्न बहू, जो पतिप्रिया भी हो?’ रमा फिर से उलझ गई.

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