Hindi Love Stories : एक अनिश्चित भविष्य की कल्पना कर के रश्मि अमित से दूर चली गई थी लेकिन विडंबना देखो, वही अमित उसे उज्ज्वल भविष्य देने के लिए सामने खड़ा था और उस के पास उसे देने के लिए कुछ न था.

रात के पौने बारह बज रहे थे. ट्रेन खुलने वाली थी. मैं नीचे वाली बर्थ पर खिड़की के पास बैठा खाना खा रहा था. सोचा था, खापी कर तुरंत सो जाऊंगा. ट्रेन रेंगने लगी थी. तभी एक युवती दौड़तेदौड़ते मेरी खिड़की के पास आई.
‘‘यह कोच नंबर 7 है क्या?’’ वह ट्रेन की बढ़ती गति के साथ लगभग दौड़ रही थी.
‘‘हां.’’
उस ने मुझे एक लिफाफा पकड़ाया और बोली, ‘‘17 नंबर बर्थ पर मेरी बहन रश्मि है. जरूर से दे दीजिएगा.’’ ट्रेन की गति बढ़ती गई और वह पीछे छूटती गई. उस ने दोनों हाथ जोड़ कर मुझे मानो धन्यवाद दिया और फिर वह आंखों से ओझल हो गई. बाएं हाथ से मैं ने वह लिफाफा पकड़ा था क्योंकि दाहिने हाथ से खाना खा रहा था. वह लिफाफा मैं ने अपने बैग के ऊपर वाले पौकेट में रख दिया यह सोच कर कि हाथ धो कर लौटता हूं और फिर 17 नंबर पर जा कर रश्मि को दे आऊंगा. खाना खाने के बाद मैं हाथ धोने के लिए वाशबेसिन की ओर बढ़ गया. टौयलेट भी हो आया कि बस निश्चिंत हो कर सो जाऊंगा और यही हुआ. मैं लौट कर आते ही बर्थ पर पसर गया. एक चादर तानी और सो गया.

करीब साढ़े 5 बजे सुबह नींद खुली और मैं अपना सामान सहेजने लगा क्योंकि कुछ ही देर बाद लखनऊ स्टेशन आने वाला था जहां मुझे उतरना था. जब मैं ने चादर रखने के लिए बैग उठाया तो वह लिफाफा दिखा. ओह, मैं तो भूल ही गया. बड़ी शीघ्रता से मैं 17 नंबर बर्थ के पास पहुंचा तो उसे खाली पाया.

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