Social Story In Hindi : स्त्री को कमजोर समझ कामलोलुप पुरुष ऐसे रीतिरिवाज बनाता है कि स्त्री बेबस हो जाती है इन रिवाजों के आगे. लेकिन मुक्ता तैयार नहीं थी भोग्या बनने के लिए अपनी आई की तरह.
‘‘आई, आखिर क्या कमी है मुझ में, मैं देखने में उन लड़कियों से सुंदर हूं. मैं ने कपड़े भी अच्छे पहने हैं. बुद्धि भी तो मेरी अच्छी है. देख, मैं जोड़ कर सकती हूं,’’ कहते हुए वह उंगली पर 2 और 2 अंक जोड़ कर आई को दिखाने लगी, फिर बोली, ‘‘मैं शब्द भी लिख सकती हूं.’’ और उस ने पास ही पड़े ईंट के टुकड़े से जमीन पर आई लिखना शुरू कर दिया.
‘‘अब बता, फिर क्यों उन को इतना सम्मान और मेरा अपमान?’’ मुक्ता आज बाहर अपने हमउम्र साथियों से उपेक्षित हो कर आई थी, इसलिए कलपती हुई अपनी आई से सवाल कर बैठी. जवाब में इतना ही कह पाई सकू कि ‘‘बेटी, यह हमारा प्रारब्ध है.’’
‘‘आई, मैं प्रारब्ध-वारब्ध कुछ नहीं जानती, मुझे पढ़ना है, उन जैसा बनना है, बस,’’ मुक्ता ने अपना फरमान सुना दिया.
सकू भी चाहती थी कि उस की बेटी साक्षर बने, इसलिए उस ने बेटी की इच्छा का मान रखते हुए घर पर ही एक मास्टर उसे पढ़ाने के लिए रखा. भला इंसान था, सो घर आ कर मुक्ता को कुछ सिखा जाया करता था.
एक दिन मुक्ता ने अपनी आई से सवाल किया, ‘‘सब के घर पिता हैं, दादादादी हैं, भाईबहन हैं, हम अकेले क्यों हैं?’’
समझ न पाई सकू अपनी बेटी को, क्या समझाए, ‘‘पोर (बेटी), हम देवदासियां हैं, देवता ही हमारा परिवार है.’’
‘‘देवता हमारा परिवार कैसे हुआ, आई?’’
‘‘क्योंकि तेरी आई का ब्याह देवता से हुआ है और जब एक बार कोई लड़की देवता को ब्याह दी जाती है तो बाकी समाज से उस का नाता टूट जाता है. फिर हम सांसारिक लोगों से ब्याह नहीं कर सकते.’’
‘‘ऐसा क्यों, आई?’’
‘‘क्योंकि हमारी मांग में देवता के नाम का सिंदूर जो भर जाता है. सो, हम इस समाज से संबंध नहीं रख सकते,’’ सकू ने मुक्ता को बहलाने के उद्देश्य से कहा.
‘‘अच्छा, जब देवता से ब्याह हुआ है तो देवता का परिवार हमारा परिवार हुआ न. कहां है वह परिवार?’’ मुक्ता ने जिरह शुरू कर दी.
‘‘मंदिर में रखी पत्थर की मूर्तियां ही हमारा परिवार है, बेटी. और तुम्हें तो पता है, पत्थर की मूर्तियां बोला नहीं करतीं.’’
‘‘अगर ये पत्थर की मूर्तियां हमारा परिवार हैं तो फिर पुजारी का यहां क्या काम, यह क्यों रहता हैं यहां और तू क्यों इस की इतनी सेवा करती है?’’
‘‘क्योंकि देवता के बाद ये ही हमारे पालनहार हैं,’’ सकू का स्वर कुछ लड़खड़ा सा गया.
‘‘वाह, यह क्या बात हुई, सिंदूर देवता के नाम का, उसे भोगने वाला उस देव का उपासक?’’
सकू को समझ नहीं आ रहा था कि बेटी को कैसे समझाए कि हमारा जीवन भी, बिना स्वामी के हम एक खुली शराब की बोतल बन कर रह जाती हैं, जो चाहे उसे उठा कर गले उतार ले. कुछ गलत नहीं कह रही मुक्ता, आखिर यह कैसा पतिदेव है, कहने को सर्वशक्तिमान है, जिस से हम ने सच्चे मन से प्यार तो किया मगर वह अपनी दासी के अस्तित्व की रक्षा भी नहीं कर पाता? जिस की मरजी हो, देव के नाम पर वधू के रूप में उसे भोग कर आनंद की प्राप्ति कर लेता है.
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