कौशल्या जिसे प्यार से सभी कोशी बुलाते थे. वह पढ़ना चाहती थी लेकिन कन्नू मौसी अकसर उस की मां को उकसाया करती थीं, ‘मनोरमा, कोशी बड़ी हो गई है. उस के हाथ समय रहते पीले कर. आगे परेशानी हो जाएगी. उम्र निकल जाने पर एक तो लड़के नहीं मिलेंगे, मिलेंगे भी तो वे जिन की किन्हीं कारणों से शादी नहीं हो पाती है. फिर समझौता करना पड़ेगा और कोशी को जहां तक मैं जानती हूं वह समझौता करने वालों में से नहीं है.’

‘दीदी, मैं समझती हूं, उस की उम्र हो गई है, सोचती भी हूं कि जल्द से जल्द कोई अच्छा सा लड़का देख कर हाथ पीले कर दूं लेकिन वह जिद पर अड़ी है कि एमएससी करने के बाद पीएचडी करेगी फिर शादी करेगी.’

एक दिन कौशल्या कहने लगी, ‘‘मम्मी, शादी के बाद मैं नौकरी करूंगी. जिंदगी में कुछ बनना चाहती हूं, केवल हाउसवाइफ बन खाना बना कर खिलाने वाली नहीं.’’

मैं ने समझाया, ‘‘देख बेटा, शादी के बाद ससुराल में तू बहू बन कर जाएगी, सास बन कर नहीं. तुझे वही करना है जो वे लोग चाहेंगे.’’

‘‘मां, मैं जब शादी इसी शर्त पर करूंगी तो वे कैसे रोक सकेंगे मुझे?’’ कौशल्या का कहना था.

‘‘खैर, मुझे तुझ से बहस नहीं करनी. मैं तो इतना जानती हूं कि परीक्षा के बाद तेरी शादी हम लोग हर हाल में कर देंगे. पीएचडी वीएचडी जो भी करना है बाद में भी तो कर सकती है?’’ फिर कई दिनों तक बात नहीं हुई. हां, मम्मीपापा की खुसुरफुसुर चलती रहती थी और वह जानती थी, यह उस के बारे में ही होती होगी.

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