अब तक की कथा :
फोन पर बात कर के यशेंदु संतुष्ट नहीं हो सके. आखिर उन की बेटी के भविष्य का प्रश्न उन के समक्ष अधर में लटक रहा था. मन में संदेह के बीज पड़ चुके थे. बेटी का चिड़चिड़ापन उन्हें प्रताड़ना दे रहा था. उन्होंने लंदन जा कर अपने संदेह का निराकरण करना चाहा. मानसिक तनाव व द्वंद्व में घिरे यशेंदु कार पार्क कर के सड़क पार करते समय ट्रक की चपेट में आ गए.
अब आगे…
पूजापाठ, ग्रहनक्षत्र, शुभअशुभ सब पंडितों से पूछ कर ही तो घर के सारे काम होते थे, फिर यशेंदु के साथ ऐसा अनिष्ट क्यों हुआ? कामिनी अब मांजी से इस सवाल का क्या जवाब मांगती. पंडितों ने तो उन की आंखों पर ऐसी पट़्टी बांध दी थी जिस के पार वह कुछ नहीं देख सकती थीं. लेकिन कामिनी उस पार की तबाही साफ देख रही थी. ट्रक ड्राइवर के ब्रेक लगातेलगाते यशेंदु ट्रक से टकरा कर लगभग 4-5 फुट दूर जा गिरे और बेहोश हो गए.
यशेंदु की ट्रक से दुर्घटना की खबर डाक्टर द्वारा घरवालों को मिली तो वे घबरा गए. वे शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुंच गए. वहां कई लोग मौजूद थे.
‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ सेठ ने अपने ड्राइवर से पूछा.
‘‘साब, पता नहीं चला कहां से ये साहब अचानक ही ट्रक के सामने आ गए और मैं ब्रेक लगा पाऊं इतनी देर में तो ये ट्रक से टकरा कर लगभग 4-5 फुट ऊपर उछल कर गिर कर बेहोश हो गए,’’ ड्राइवर को बहुत अफसोस हो रहा था. लगभग 30 वर्ष से वह यह काम कर रहा था. अभी तक इस प्रकार की कोई दुर्घटना उस से नहीं हुई थी.
दिया का रोरो कर बुरा हाल था. दादी, कामिनी, नौकर सब इस दुर्घटना से जड़ से हो गए थे. दिया जानती थी कि पापा उसे अपने साथ लंदन ले जाने के लिए यह सब भागदौड़ कर रहे थे इसलिए उस का मन और भी व्यथित हो उठा. यह प्रसाद मिला पापा को दादी की इतनी पूजा का? उस का मन हाहाकार करने लगा. वह बहुत अभागी है. अपने पिता की दुर्घटना के लिए वही जिम्मेदार है. वैसे कहीं पर कुछ भी हो सकता है परंतु दिया को इसलिए यह बात बारबार कचोट रही थी क्योंकि यह सबकुछ वीजा औफिस के बाहर ही हुआ था. उस के अनुसार, पापा को यह सब उस की चिंता के लिए ही भोगना पड़ रहा था.
कामिनी ने आंसूभरी आंखों से औपरेशन के फौरमैलिटी पेपर्स पर हस्ताक्षर कर दिए. उस के मस्तिष्क में मानो हथौड़ी की सी मार भी पड़ने लगी. अगर लड़के के घर में सगाई या विवाह के बाद बड़ी दुर्घटना हो जाती है तो लड़की के मुंह पर कालिख पोती जाती है. इस के पैर ऐसे हैं, यह घर के लिए शुभ नहीं है आदि. परंतु जहां लड़की के घर में इस प्रकार की कोई दुर्घटना हो जाए तो क्या लड़के को भी अपशकुनी माना जाता है?
लगभग 3 घंटे के औपरेशन ने घरभर के सदस्यों को हिला कर रख दिया था. ड्राइवर और उस का मालिक दोनों ही सहृदय, संवेदनशील थे, होंठ सिए हाथ जोड़ कर, सिर झुकाए चुपचाप सबकुछ सुनते रहे. 5-7 मिनट बाद कामिनी ने सास को औपरेशन थिएटर के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठा दिया और ड्राइवर व उस के मालिक के सामने हाथ जोड़ कर उन्हें वहां से जाने का इशारा किया.
कामिनी व दिया दोनों के मन में बहुत स्पष्ट था कि यह दुर्घटना क्यों हुई होगी? वे कई दिनों से यश को बहुत अधिक असहज देख रही थीं. दिया तो अपने में ही सिमट कर रह गई थी परंतु कामिनी ने पति को समझाने का भरपूर प्रयास किया था. यश थे कि बेटी को देखदेख कर भीतर ही भीतर कुढ़ रहे थे. ऊपर से उन की मां ने घर में पंडितजी को बैठा कर पूजापाठ का नाटक कर रखा था. उन्हें कभी भी पूजाअर्चना में कोई परेशानी नहीं रही परंतु यह कुछ भी हो रहा था, वह उन की समझ से बाहर था और उन की सोच उन्हें यह समझने के लिए बाध्य कर रही थी कि घंटी बजाने से काम नहीं चलेगा, उन्हें कर्मठ होना होगा. एक ओर उन के मन में सवाल पनप रहा था कि मां ने तो दिया की जन्मपत्री कई बार मिलवाई और 90 प्रतिशत गुण मिलने के बावजूद यह सब घटित हो रहा था. समय दीप व स्वदीप भी शहर में नहीं थे.
औपरेशन थिएटर के बाहर कुरसियों पर तीनों शांत बैठे हुए थे. तीनों के मस्तिष्क में एक बात अलगअलग प्रकार से उमड़घुमड़ रही थी. अचानक न जाने दिया को क्या हुआ, ‘‘दादी, आप हर चीज पंडितजी से ही पूछ कर करती हैं न? उन्होंने आप को यह नहीं बताया कि पापा पर ऐसा कोई ग्रह भारी है?’’
दादी के तो आंसू ही नहीं थम रहे थे. वे क्या उत्तर देतीं? इस उम्र में उन्हें बेटे का यह दुख देखना पड़ रहा था. इस पंडित के पिता ने जिंदगीभर उन के घर के लिए पूजाअर्चना की थी. दिया की दादी व दादाजी तो प्रारंभ से ही पंडितों के मस्तिष्क से ही चलते आए हैं. उन के द्वारा बताए हुए ग्रहों की शांति करवाना, जन्मपत्री मिलवाना व प्रतिदिन उन के द्वारा ही पूजाअर्चना करवाना. कामिनी के पिता ने अपने किसी भी बच्चे की जन्मपत्री नहीं मिलवाई थी फिर भी सब सुखी थे. उन्हें केवल कामिनी की ही जन्मपत्री मिलानी पड़ी थी और कामिनी ही जिंदगीभर इस घर के वातावरण में असहज बनी रही थी. दिया के साथ ये सबघटित तो हो ही रहा है साथ ही यश भी चपेट मेें आ गए. वह पंडित अभी भी घर पर बैठा घंटियां बजा कर भगवान को मनाने में लगा होगा.
दादी मन ही मन सोच रही थीं कि उन्हें अब कौन से जाप करवाने होंगे. यह एक लंबा दर्दीला घटनाक्रम बन गया था मानो. एक दुर्घटना का दर्द समाप्त भी नहीं हो पाता था कि दूसरी कोई दुर्घटना आ उपस्थित होती. कामिनी के लिए तो इस घर के प्रवेश का प्रथम दिवस ही दुर्घटना था बल्कि यह कहा जाए कि यश की सगाई का दिन ही दुर्घटना का दिन था. जिस पिता से वह यह अपेक्षा करती रही थी कि वे उसे किसी हताश स्थिति में डाल ही नहीं सकते उसी पिता ने उसे कहां से उठा कर कहां
पहुंचा दिया था.
बचपन में पिता रटाते थे-
वैल्थ इज लौस्ट, नथिंग इज लौस्ट,
हैल्थ इज लौस्ट, समथिंग इज लौस्ट,
इफ कैरेक्टर इज लौस्ट, एवरीथिंग इज लौस्ट.
ये पंक्तियां रटतेरटते कामिनी युवा हो चली थी. मध्यवर्गीय वातावरण में पलीबढ़ी कामिनी की विवाह के बाद बुद्धि में वृद्धि हुई और उस ने बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस किया था कि वैल्थ के बिना कोई पूछ नहीं है और जैसेजैसे वह इस वैल्दी घर का पुराना हिस्सा होती जा रही थी वैसेवैसे उस की यह भावना दृढ़ होती जा रही थी. कितना मानसम्मान था उस की ससुराल का इतने बड़े शहर में कि वह स्वयं को बौना महसूस करती थी. इतनी कि उस के मुख के बोल भी ‘जी हां’ और ‘जी नहीं’ तक सिमट कर रह गए थे. फिर वह इस सब की आदी हो गई थी और प्रात:कालीन मंत्रोच्चार उस के मुख से निकल कर केवल उस की आत्मा के ही साक्षी बन कर रह गए थे.
घर का संपूर्ण वातावरण सुबहसवेरे पंडितजी की घंटियों की मधुर ध्वनि से नहा उठता था. धीरेधीरे घंटियों के साथ हर घड़ी घर में पंडितों की नाटकीय आवाजें व फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं तब वह और अधिक सहज होती गई. उस ने पंडितों को मंत्रोच्चार करते हुए अकसर हंसीठिठोली करते देखा था. जैसे ही वहां घर का कोई सदस्य पहुंचता वे जोरजोर से मंत्रोच्चार करने लगते. अच्छे पल भी आए थे कामिनी के जीवन में जब उस ने 3 शिशुओं को जन्म दिया था. वास्तव में कामिनी को 2 बेटों के जन्म के बाद किसी तीसरे की कोई इच्छा ही नहीं थी परंतु घर में 1 बेटी की चाह ने पूरे वातावरण में मानो नाराजगी भर रखी थी. बेटी की चाह भी किस लिए क्योंकि 2-3 पीढि़यों से परिवार में कोई बेटी नहीं थी और इस परिवार के बुजुर्गों की कन्यादान करने में रुचि थी. पंडितजी ने उस के सासससुर के मस्तिष्क में कन्यादान की महत्ता इस कदर भर दी थी कि कन्यादान न किया तो उन का जीवन व्यर्थ था. और पंडितजी का गणित तो बिलकुल स्पष्ट था ही कि यशेंदुजी के हाथ की लकीरों में कन्या का पिता बनना स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो रहा था. सो, कामिनी के तीसरा शिशु कन्या हुई.
न जाने क्यों कामिनी इस बात से भयभीत सी रहती थी कि इतनी लाड़प्यार से पली उस की बिटिया एक दिन दूसरे के घर चली जाएगी उस का मनउपवन खाली कर के. वह भी तो आई थी, ठीक था, परंतु इतनी शीघ्रता से यह सब होगा और इस प्रकार होगा, इस के लिए उस का मन तैयार न था. हुआ वही जो घर के बुजुर्ग ने चाहा और परिवार के सब सदस्य यह होना देखते रहे.
अस्पताल में आईसीयू के बाहर सोफे पर बैठेबैठे न जाने मांजी की वृद्ध काया कब सोफे के हत्थे पर लटक सी गई थी. झुर्री भरे मुख पर आंसुओं की गहरी लकीरें किसी झील में कंकर फेंकने पर लहरों की भांति टेढ़ीमेढ़ी हो कर चिपक सी गई थीं. कामिनी ने सास को बड़ी करुणापूर्ण दृष्टि से देखा और उस के नेत्र फिर से भर आए. मां बुरी बिलकुल न थीं, उन्होंने अपने हिसाब से उसे प्यार भी बहुत दिया था परंतु उन की सोच थी जिस ने सारे वातावरण पर अपनी मुहर चिपका रखी थी. उन का अंधविश्वास और सर्वोपरि समझने की भावना ने पूरे वातावरण पर अजीब से पहरे बिठा दिए थे.
कितनी बार सोचा था कामिनी ने, समय के अनुसार प्रत्येक में बदलाव आते हैं परंतु उन की सोच व तथाकथित परंपराओं में बदलाव क्यों नहीं आ पा रहे थे? यदि पत्थर पर भी बारबार कोई चीज घिसी जाए तो वहां भी गड्ढा हो जाता है परंतु मां… थोड़ी देर में डाक्टर आए और उन के पास ही सोफे पर बैठ गए, ‘‘मांजी, रोने से तो कुछ हो नहीं सकता? आप तो कितनी समझदार हैं.
‘‘नर्स,’’ डाक्टर ने समीप से गुजरती हुई नर्स को आवाज दी. नर्स रुक गई.
‘‘मांजी को आईसीयू के बाहर से जरा यशेंदुजी को दिखा दो, जिन का आज औपरेशन हुआ है.’’
‘‘यस, डाक्टर,’’ नर्स उन्हें सहारा दे कर आईसीयू की ओर हाथ पकड़ कर धीरेधीरे चल पड़ी.
डाक्टर खड़े हो गए और कामिनी से बोले, ‘‘एक्चुअली मिसेज कामिनी, आय वांटेड टू डिसकस सम इंपौर्टेंट इश्यू विद यू.’’
– क्रमश: