विवेक को औफिस के लिए निकले 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उस की पत्नी संगीता ने बड़े थकेहारे अंदाज में फोन उठाया.

उस की ‘हैलो’ के जवाब में किसी स्त्री ने तेजतर्रार आवाज में कहा, ‘‘विवेक है क्या? फोन नहीं उठा रहा.’’

‘‘आप कौन बोल रही हैं?’’ उस स्त्री की चुभती आवाज ने संगीता की उदासी को चीर कर उस की आवाज में नापसंदगी के भाव पैदा किए.

‘‘तुम संगीता हो न?’’

‘‘हां, और आप?’’

‘‘मोटी भैंस, ज्यादा पूछताछ करने की आदत बंद कर,’’ उस स्त्री ने उसे डांट दिया.

‘‘इस तरह बदतमीजी से मेरे साथ बात करने का तुम्हें क्या अधिकार है?’’ मारे गुस्से के संगीता की आवाज कांप उठी.

‘‘मुझे अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि मैं विवेक के दिल की रानी हूं,’’ वह किलसाने वाले अंदाज में हंसी.

‘‘शटअप,’’ संगीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘यू शटअप, मोटो,’’ एक बार वह फिर दिल जलाती हंसी हंसी और फिर फोन काट दिया.

‘‘बेवकूफ, पागल औरत,’’ बहुत परेशान और गुस्से में नजर आ रही संगीता ने जोर की आवाज के साथ फोन साइड में रखा.

‘‘भाभी, किस से झगड़ा कर रही हो?’’ संगीता की ननद अंजलि ने पीछे से सवाल पूछा, तो संगीता की आंखों में एकाएक आंसू उमड़ आए.

अंजलि ने संगीता को कंधों से पकड़ा, तो वह अपने ऊपर से पूरा नियंत्रण खो रोने लगी.

उसे सोफे पर बिठाने के बाद अंजलि उस के लिए पानी लाई. संगीता का रोना सुन कर उस के सासससुर भी बैठक में आ पहुंचे.

वे सब बड़ी मुश्किल से संगीता को चुप करा पाए. बारबार अटकते हुए फिर संगीता ने उन्हें फोन पर उस बददिमाग स्त्री से हुए वार्त्तालाप का ब्योरा दिया.

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