कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

"जब मेला देखने के लिए पैसा मांगे, तो पापा ने डांट कर भगा दिया. फिर मैं ने चुपके से तुम्हारे डब्बे से 50 रुपए ले लिए थे, तो आप ने चिमटे से हाथ जला दिया था. यह देखो, आज तक निशान पड़ा है..."

"जब सुमित्रा की अम्मां ने आ कर झूठमूठ कह दिया था कि तुम्हारे बेटे ने हमारी बिटिया को छेड़ा है, तो आप लोगों ने मुझ से एक बार भी नहीं पूछा और पापा सब के सामने ही चप्पल ही चप्पल पीटने लगे थे... गाली तो हर समय उन की जबान पर रहती थी..."

मांबेटे दोनों की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे...

"पापा ने जिज्जी की शादी  अपनी बिरादरी, कुल, गोत्र और जमीनजायदाद देख कर नकारा लड़के के साथ कर दी तो अब झेलो... जल्दीजल्दी 4 बच्चे भी हो  गए. उन्हें न पढ़ाना और न लिखाना… बस, अपनी जातिबिरादरी देखती रहना..."

"सारी जिंदगी पापा से गाली खाती रहीं और पिटती रहीं. आज हम अपनी जिंदगी में कमा खा रहे हैं... चैन से जी रहे हैं, तो कभी किरिस्तानी, तो कभी कुछ कह रही हो... न मुझे आप के जेवर का लालच है और न ही जमीनजायदाद का. मुझे कुछ नहीं चाहिए... मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश  हूं... आप सबकुछ जिज्जी को दे दीजिए. मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता..."

शिव उठने को  हुआ, तो उन्होंने उस की बांह पकड़ कर रोने का उपक्रम करने लगीं, ’हाय राम, बेटा तुम्हारे पापा को वहां के डाक्टर ने जवाब दे दिया है... तुम्हें उन की जरा भी चिंता नहीं है. उन का लिवर और किडनी दोनों ही खराब हो गए हैं. बचने की उम्मीद ना के  बराबर है..."

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...