कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

शोभित के जाने के बाद अकसर हमारे रहनसहन और खर्चों को देख कर नातेरिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों की इस तरह की बातें हमारे कानों में पड़ ही जाती थीं. मसलन, 'इन की किस्मत में तो बच्चा है ही नहीं. खुद का हुआ नहीं और जिसे गोद लिया उसे कुदरत ने ले लिया. कोई खर्चा तो है नहीं, आगे नाथ न पीछे पगहा... किस के लिए छोड़ कर जाएंगे...'

जिसे देखो वही हमारे पैसे पर नजर गङाए दिखता था. कभीकभी मन भी करता था कि उन की हर बात का जबाब दूं. पर अनुज मुझे हमेशा यह कह कर रोक देते कि शुभी, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...और इसलिए किसी की बातों पर जरा भी ध्यान देने की जरूरत नहीं है. हमारी जिंदगी, हमारा पैसा हम चाहे खर्च करें या आग लगाएं हमारी मरजी. और सच कहूं तो अब हम दोनों इस के आदि हो चले थे पर हां, कभीकभी भविष्य का सोच कर घबराहट अवश्य होती थी और लाख संभालने के बाद भी मन निराशा से भर उठता था.

आज स्कूल में नई प्रिंसिपल पदभार ग्रहण करने वाली थीं...इसलिए पूरे स्कूल में उत्साह था. अकसर लेटलतीफ स्कूल पहुंचने वाले टीचर्स भी आज अप टू डेट हो कर टाइम से पहले ही कक्षाओं में पहुंच गए थे. आखिर नई प्रिंसिपल को इंप्रैस जो करना था. इंग्लिश में पीएचडी, नई प्रिंसिपल डाक्टर कोमल बेहद काबिल, कर्मठ और खुशमिजाज थीं. बेहद सलीके से पहनी गई प्योर सिल्क की बौर्डर पल्ले वाली साड़ी, माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, शैंपू किए खुले बाल, मैरून लिपस्टिक और हील वाले सैंडल पहने वे बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी लग रही थीं. आते ही उन्होंने पूरे स्टाफ की मीटिंग ली.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...