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अश्रुपूरित आंखों से हम दोनों चुपचाप बैठे थे. 2 घंटे से उपर हो गए थे. यों ही शांत सामने रखी तसवीर पर टकटकी लगाए बैठे हुए, हरदम एकदूसरे पर झींकने और बेहद हाजिरजबाव हम दोनों के मुंह से आज एक शब्द भी नहीं निकल रहा था. मानों हमारी जबान को ही सांप सूंघ गया हो.

तभी डोरबेल बजने से हमारी तंद्रा टूटी और अनुज ने दरवाजे की तरफ दौड़ लगा दी, मानों अनुज इसी पल का इंतजार कर रहे हों. दरअसल, आज के दिन हम दोनों ही एकदूसरे से कुछ भी कहने से कतराते हैं कि कहीं दूसरे की आवाज सुन कर सामने वाले की आखों में भरे आंसू बहने का रास्ता न बना लें. पिछले 5 साल से आज का दिन आने से 10-15 दिनों पहले से उदासी ले आता है जो बाद के कई दिनों तक हमारे दिलोदिमाग पर छाई रहती है.

मैं और मेरे पति बेहद सुंदर और छोटे से आशियाने में रहते हैं, जिसे हम दोनों ने बड़ी मेहनत और लगन से बनवाया था. हम दोनों ही शासकीय सेवा में थे मैं एक इंटर स्कूल में लैक्चरार और अनुज कालेज में प्रोफैसर थे. रूपएपैसे की कोई ख़ास कमी नहीं थी, घर में भी 1-1 चीज चुनचुन कर लगवाई थी, सोचा था कि जब इस घर में नन्हेमुन्नों की किलकारियां गूंजेगी तो आज की सारी मेहनत सफल हो जाएगी पर किसे पता था कि किलकारियां आने से पहले ही चीखों में बदल जाएंगी. शोभित हमारा बेटा उस समय इंजीनियरिंग कर के जौब कर रहा था. जौब करतेकरते 3 साल हो गए थे. शोभित अपनी ही सहकर्मी शीना से विवाह करना चाहता था.

मैं और अनुज दोनों ही उदारवादी विचारधारा के थे, इसलिए शीना के विजातीय होने के बावजूद भी हम ने बिना किसी नानुकुर के दोनों के विवाह पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी थी. हम पतिपत्नी भी बहुत खुश थे कि अब घर में बहू आएगी और हम 4 हो जाएंगे. पहले बहू चहकेगी फिर उस के बच्चों की किलकारियों से घर गुंजायमान हो उठेगा. पर यह सब हो पाता उस से पहले ही अपने वर्कप्लेस पर एक सडक दुर्घटना में शोभित अपनी जान गंवा बैठा. हम पतिपत्नी पर तो मानों पहाड़ सा टूट पड़ा था. उधर शीना का भी बुरा हाल था. शीना के मातापिता खुश थे कि उन की बेटी विधवा होने से बालबाल बच गई.

शोभित की तेरहवीं पर ही हम ने शीना को भी आजाद कर दिया था ताकि वह अपनी आगे की जिंदगी के बारे में सोच सके. पर हम पतिपत्नी क्या करते, शोभित के साथ ही हमारा तो सुखदुख सब चला गया था. जिंदगी बोझिल सी हो चली थी… जीवन जीने का उद्देश्य भी शोभित मानों अपने साथ ही ले गया था. पर जब तक सांसे हैं जिंदगी तो जीनी ही पड़ती है. शोभित के जाने को कुदरत की मरजी मान कर हम ने खुद को बड़ी मुश्किल से संभाला था.

जानेअनजाने हम दोनों ही एकदूसरे का सहारा बन गए थे. पूरा साल तो फिर भी नौकरी की व्यस्तता में किसी तरह निकल जाता था पर उस की पुण्यतिथि का दिन हम दोनों पर ही सालभर से भी अधिक भारी पड़ जाता. कुछ मेहमानों के जाने के बाद मैं भारी मन से बिस्तर पर आ कर लेट गई. जैसे ही आंखे बंद की तो बचपन का शोभित सामने आ गया.

गोलमटोल प्यारा सा शोभित जिसे पाने के लिए हम दोनों ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था क्योंकि विवाह के 8 साल बाद तक भी मेरी कोई औलाद नहीं हुई थी. घरपरिवार, नातेरिश्तेदारों के तानों, सवालों और सलाहों से मैं तंग आ चुकी थी. अनुज की मां यानी मेरी सास यों तो बहुत समझदार थीं पर इस मामले में वे दुनिया की सब से नासमझ महिला थीं. टोनेटोटके, बाबा, मंदिरमसजिद जिस ने भी जो बताया वे मुझे जबरदस्ती ले गईं पर न कुछ होना था और न ही कुछ हुआ. असल में डाक्टरी टेस्ट्स में अनुज के कुछ टेस्ट निगेटिव थे जिन के कारण ही मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही थी और आगे भी हमारे मातापिता बनने की कोई संभावना नहीं थी. आपसी सहमति से हम ने मम्मीजी को इस बारे में कुछ नहीं बताया था. आमतौर पर तो सासूमां शांत रहतीं पर जब भी वे अपनी सहेलियों या रिश्तेदारों से मिलतीं तो शुरू हो जातीं, “नीता मुझ से 5 साल छोटी है पर 2 पोतों की दादी बन गई, पङोस की रीमा के बेटे की तो अभी 1 साल पहले ही शादी हुई थी, परसों बिटिया हुई है. एक हमारे यहां 8 साल से सन्नाटा पसरा हुआ है. पता नहीं हम ने क्या गुनाह किए थे कि कुदरत हमें यह सजा दे रहा है. न जाने हमारे आंगन में कभी बच्चे की किलकारियां गूंजेगी भी या नहीं.”

रोजरोज होने वाली इस चिकचिक को झेलतेझेलते मैं तो मानों अवसाद की सी स्थिति में ही जाने लगी थी. हां, मां के ये सारे प्रवचन अनुज की अनुपस्थिति में ही होते थे और मांबेटे के संबंधों पर कोई आंच न आए इसलिए मैं ने भी कभी अनुज से इस बारे कुछ नहीं कहा. एक दिन जब मां जी अपने सदवचनों से मुझे नवाज रहीं थीं कि तभी अनुज आ गए.

मेरी आखों की नमी उन से छिप न सकी और वे बरस पड़े अपनी मां पर,”मां, जान लोगी क्या तुम शुभी की? नहीं हो पा रहा बच्चा तो वह क्या करे, कमी उस में नहीं मुझ में है. जो कहना है मुझ से कहो. और हां, आज तुम कान खोल कर सुन लो कि तुम दादी नहीं बन सकतीं. बस, आज के बाद इस विषय में जो भी बात आप को करना हो मुझ से कीजिएगा, शुभी से नहीं,” यह कहते हुए अनुज मुझे पकड़ कर बैडरूम ले गए.

अनुज की बात सुन कर मांजी को भरोसा तो नहीं हुआ क्योंकि भारतीय समाज में कमियां सिर्फ बहू में होती हैं बेटों में नहीं पर हां, उस दिन से उन के प्रवचन जरूर शांत हो गए थे.

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