‘‘मैं नौकरी कर रही हूं और सिद्ध भी. मांजी को भी पैसे की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है लेकिन तुम्हें अपना जीवन चलाने के लिए कोई ठोस आधार होना चाहिए कि नहीं. मेरे और सिद्ध के रहते विनय चाह कर भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया. सही माने में इन पैसों की आज सब से ज्यादा जरूरत तुम्हें ही है,’’ दामिनी ने शैली के कंधे पर स्नेह से हाथ रखा.
‘‘दामिनी, जब तुम्हें विनय से कुछ भी नहीं चाहिए था तो फिर तुम ने उसे तलाक दे कर हमें आजाद क्यों नहीं कर दिया? यदि तुम ऐसा कर देतीं तो आज मैं विनय की ब्याहता होती,’’ शैली ने शिकायत की.
‘‘तुम्हारा सवाल बिलकुल वाजिब है लेकिन मेरी अपनी वजह भी अपनी जगह सही है. दरअसल, जब मैं ने विनय का घर छोड़ा था उस समय मैं तुम दोनों के प्रति नफरत और गुस्से से भरी हुई थी. ‘मैं खुश नहीं हूं तो क्या, चैन से तुम्हें भी नहीं रहने दूंगी,’ की भावना मेरे भीतर उबाल मार रही थी, इसलिए मैं ने तुम दोनों को आजाद नहीं किया. फिर जब मैं ने तुम दोनों के रिश्ते को अलग नजर से देखना शुरू किया तब तक सिद्ध भी रिश्तों को सम झने लगा था. उसे विनय से ‘पापा’ वाला लगाव हो चुका था.
‘‘मैं विनय को तो छोड़ सकती थी लेकिन सिद्ध से उस के पापा को नहीं छीन सकती थी. बस, इसीलिए मैं तुम लोगों से दूर रह कर भी तुम्हारी जिंदगी में बनी रही. खैर, अब छोड़ो इन पुरानी बातों को. तुम अपना बैंक डिटेल मु झे दे दो ताकि मैं ये पैसे ट्रांसफर कर सकूं.’’ दामिनी ने एक गहरी सांस छोड़ कर अपनी बात खत्म की.
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