जब वह अपनी परीक्षा के बाद वापस ससुराल आई थी तब शैली ने कैसा बुरा सा मुंह बनाया था. दामिनी आज तक वह भंगिमा नहीं भूल सकी है, बल्कि कई बार अकेले में उस ने शीशे के सामने खड़े हो कर ठीक वैसी ही भंगिमा बनाने की कोशिश भी की थी और अपनी इस बचकानी हरकत पर खूब हंसी भी थी.
दामिनी ने शैली को ले कर सुमित्रा को विश्वास में लेना शुरू कर दिया और धीरेधीरे सास सुमित्रा के दिमाग में शैली की शादी करवाने की बात फिट कर दी थी. शैली के पास भी न कहने का कोई बहाना नहीं था. हार कर अपने सुमित्रा के सामने हथियार डाल दिए और एक दिन दामिनी ने शैली को अपने पति के घर से उसे उस के पति के घर विदा कर दिया.
2 साल बीत गए. शैली अपने पति के साथ रम नहीं पाई थी. रमती भी तो कैसे. दिल कहीं और दिमाग कहीं. ऐसे भी भला रमा जाता है कहीं. शैली के मायके के फेरे बढ़ने लगे. जब भी शैली आती, विनय उसी के आगेपीछे घूमता. दामिनी को कई बार लगता था जैसे कि दालभात में मूसलचंद शैली नहीं बल्कि वह खुद है जो उन दोनों के बीच अनचाही सी आ गई क्योंकि 2 साल बीतने पर भी वह विनय के दिल में अपने लिए जगह नहीं बना सकी थी.
इधर जब विनय का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया तो दामिनी ने राहत की सांस ली. वह विनय के साथ उस की नई पोस्ंिटग पर आ गई. यहीं आ कर एक दिन किन्हीं कमजोर पलों में विनय ने दामिनी को अपनी अंकशायिनी बनाया और फलस्वरूप सिद्ध का अंकुरण उस की कोख में हुआ.
लेकिन इस दौरान अपने पति को पूरी तरह से नकार कर शैली सुमित्रा के पास वापस आ गई और उधर दामिनी अपनी कोख की आहट से आहत थी. त्रिकोणीय रिश्ते से अनजान सुमित्रा ने दामिनी और शैली दोनों को राहत देने के मकसद से शैली को दामिनी के पास उस की देखभाल के लिए भेज दिया.
शैली को देखते ही दामिनी फिर से आशंकित हो उठी लेकिन विनय एकदम खिल गया था. गर्भवती दामिनी उन दोनों को एकसाथ उठतेबैठते, खातेपीते और घूमतेफिरते देखती तो सिर्फ कुढ़ कर रह जाती. चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रही थी.
सिद्ध के जन्म के बाद तो विनय पूरी तरह से शैली का हो गया था. उन दोनों के बीच जो सामाजिक मर्यादा की महीन रेखा थी वह भी अब मिट चुकी थी. दामिनी अपनेआप को बेहद अपमानित महसूस कर रही थी.
एक दिन हिम्मत कर के उस ने सारी बातें सास सुमित्रा को बता दीं लेकिन वहां से भी उसे आश्वासन के अतिरिक्त कुछ न मिला. तब अपने स्वाभिमान को बचाने की खातिर दामिनी सिद्ध को ले कर मायके आ गई और बैंक की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगी.
आवश्यकता आविष्कार की जननी ही नहीं होती बल्कि मेहनत और लगन की कुंजी भी होती है. दामिनी ने भी रातदिन मेहनत की और आखिर बैंक में उस का चयन हो ही गया. वह सिद्ध को ले कर अपनी पोस्ंिटग पर आ गई. विनय और शैली ने लाख चाहा लेकिन दामिनी विनय को तलाक देने को राजी नहीं हुई.
थोड़ा बड़ा होने पर दामिनी ने सिद्ध को होस्टल भेज दिया और खुद बैंक पीओ की परीक्षा की तैयारी करने लगी. यहीं मानव उस की जिंदगी में आया था. मानव उस कोचिंग संस्थान का मालिक था जिस में दामिनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. अकेलेपन और पति की बेवफाई से जू झती दामिनी के लिए मानव एक संजीवनी बन कर आया था.
मानव से रिश्ता जुड़ने के बाद धीरेधीरे दामिनी को विनय और शैली का रिश्ता सम झ में आने लगा था. मानव के जिंदगी में आते ही उसे यह महसूस हुआ कि प्यार किसी के चाहने या न चाहने की परिधि से बहुत बाहर का एहसास है. यह तो, बस, हो जाता है जैसे उसे हो गया मानव से. शायद ऐसे ही हुआ होगा विनय को शैली से.
अब दामिनी ने विनय और शैली की दुनिया से दूर जाने का फैसला कर लिया था लेकिन वह सिद्ध को पिता के साए से वंचित नहीं करना चाहती थी. वह उस के बचपन को अदालत के गलियारे में भटकने नहीं देना चाहती थी. इसलिए सब के बीच एक मौन अलिखित सम झौता हो गया था. दामिनी मानव के साथ खुश थी तो विनय और शैली अपनी दुनिया में. सिद्ध दामिनी और विनय सहित सब का चहेता था. यहां तक कि अब तो शैली और मानव का भी.
‘‘मु झे क्या सोचना था. मैं ने तो बरसों पहले ही सोच लिया था जो मु झे सोचना था. बस, एकदो दिन में चली जाऊंगी अपनी पोस्ंिटग पर,’’ दामिनी ने साफसाफ कहा.
‘‘तुम्हें जिस से शिकायत थी जब वह ही नहीं रहा तो अब नाराजगी छोड़ो और घर लौट आओ,’’ सुमित्रा ने आग्रह किया.
‘‘नहीं मां. अब संभव नहीं. हां, बीचबीच में विनय के क्लेम से जुड़ी फौर्मेलिटी पूरी करने आती रहूंगी,’’ कह कर दामिनी अपना सामान पैक करने लगी.
महीनेभर की भागदौड़ के बाद विनय के सारे क्लेम पूरे हो गए. आज दामिनी को पति की ग्रेच्युएटी और पीएफ के पैसे का चैक मिलना था.
‘‘शैली, यह चैक मेरे अकाउंट में जमा होते ही सारा पैसा मैं तुम्हारे नाम ट्रांसफर कर दूंगी,’’ दामिनी ने कहा तो सास सुमित्रा भी उसे आश्चर्य से देखने लगी.
‘‘नहीं दामिनी, विनय के पैसों पर तुम्हारा और सिद्ध का अधिकार है. उस के बाद चाची का, मेरा तो इस पर कोई भी हक नहीं बनता. न कानूनी न सामाजिक,’’ शैली ने इनकार कर दिया.